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भाजपा : संगठन और सरकार में रविशंकर की दरकार नहीं

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 -राधामोहन सिंह की छुट्टी, ऋतुराज की पहचान पूछ रहे लोग
 -भाजपा की राष्ट्रीय कमेटी में बिहार से सिर्फ एक चेहरा
 -उत्तर प्रदेश से आठ, झारखंड से दो पदाधिकारी बनाये रखने


विभेष त्रिवेदी
29 जुलाई 2023

Patna : भारतीय जनता पार्टी (BJP) की राष्ट्रीय कमेटी घोषित होते ही बिहार (Bihar) भाजपा के नेताओं को करारा झटका लगा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राधामोहन सिंह (Radhamohan Singh) की छुट्टी कर दी गयी है. सूची से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा संगठन और सरकार को पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद (Ravishankar Prasad) की कोई जरूरत नहीं रह गयी है. केंद्रीय मंत्रिमंडल से पहले ही उनका इस्तीफा लिया जा चुका है .अब संगठन में उनके उपयोग की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है. ऐसा लगता है कि भाजपा नेतृत्व ने रविशंकर प्रसाद को उनके ही स्वजातीय, ऋतुराज सिन्हा (Rituraj Sinha) से रिप्लेस कर दिया है. राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सूची की अलग-अलग ढंग से व्याख्या चल रही है.

मौका नहीं मिला
राधामोहन सिंह बिहार भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं. वह लगातार पूर्वी चंपारण (East Champaran) से सांसद निर्वाचित होते रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के पहले कार्यकाल में वह कृषि मंत्री बनाये गये थे. दूसरे कार्यकाल में उन्हें मौका नहीं मिला और वह संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये गये. उत्तर प्रदेश के प्रभारी की हैसियत से उन्होंने वहां के विधानसभा चुनाव में सक्रिय भूमिका निभायी. इसके बावजूद उनके राजनीतिक कैरियर को विस्तार मिलने की गुंजाइश नहीं दिख रही है. चर्चा है कि उम्र के आधार पर उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिल पायेगा. राष्ट्रीय कमेटी में जगह नहीं मिलने से इस आशंका को और भी बल मिला है. राष्ट्रीय कमेटी में पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi), पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकिशोर यादव (Nandkishor Yadav) और प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल (Dr. Sanjay Jaiswal) को भी जगह नहीं मिली है. सुशील कुमार मोदी के राजनीतिक पुनर्वास की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है.

नाप दी औकात
बिहार में भाजपा सरकार का ख्याली पुलाव बनाने वाले नेताओं में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की लंबी कतार लग सकती है, लेकिन अगर बिहार भाजपा के तथाकथित कद्दावर नेताओं की औकात देखनी हो तो पार्टी की राष्ट्रीय कमेटी पर नजर दौड़ायी जा सकती है. जहां उत्तर प्रदेश से 8 पदाधिकारी बनाये गये हैं और छोटे से राज्य झारखंड (Jharkhand) से दो पदाधिकारी बनाये गये हैं, वही बिहार से सिर्फ एक पदाधिकारी बने हैं. ऋतुराज सिन्हा को सचिव का पद दिया गया है. ऋतुराज सिन्हा की बिहार के जिलों में कोई पहचान नहीं रही है. वह बिहार के 40 में से किसी भी लोकसभा क्षेत्र की चुनावी सभाओं में प्रभाव डालने वाली छवि नहीं रखते हैं. उनकी योग्यता सिर्फ इतनी है कि जाति से कायस्थ हैं और पूर्व सांसद आरके सिन्हा (R K Sinha) के पुत्र हैं
.
सिर्फ सचिव का पद
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में लोकसभा की 80, बिहार में 40 और झारखंड में 14 सीटें हैं. अगर संसदीय सीटों को भी आधार बनाया जाये तो बिहार से चार पदाधिकारी बनाये जाने चाहिए, लेकिन बिहार को सिर्फ सचिव के पद से संतोष करना पड़ा है. केंद्रीय नेतृत्व को बिहार भाजपा के नेताओं से कोई परहेज नहीं है. सच्चाई यह है कि बिहार भाजपा में ऐसा कद्दावर चेहरा है ही नहीं, जिसे राष्ट्रीय कमेटी में जगह दी जा सके. बिहार भाजपा में ऐसा कोई नेता नहीं दिखता जो सूबे से बाहर अपनी पहचान और प्रभाव रखता हो. तीन चेहरे ऐसे हैं, जिनकी बड़ी पहचान रही है. तीनों आज की तारीख में राष्ट्रीय नेतृत्व और खासकर अमित शाह (Amit Shah) की नजर में विश्वसनीयता नहीं रखते हैं. रविशंकर प्रसाद, सुशील कुमार मोदी और राजीव प्रताप रूड़ी (Rajeev Pratap Rudy) का राजनीतिक कद और अनुभव ऐसा है कि वे राष्ट्रीय पदाधिकारी बन सकते थे, परंतु अलग-अलग कारणों से वे मोदी- शाह के विश्वासपात्र नहीं हैं.


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विश्वासपात्र नहीं
और सरकार में अपने लंबे कार्यकाल में एकाधिकार रखने के लिए सुशील कुमार मोदी ने विरोधियों की बड़ी फौज खड़ी कर ली. बिहार में उन नेताओं को बड़ी दुश्वारियां झेलनी पड़ी जो सुशील कुमार मोदी के विश्वासपात्र नहीं थे.सुशील कुमार मोदी सिर्फ अपने चहेते दरबारियों को ही आजमाते रहे. ऐसी स्थिति में सुशील कुमार मोदी को बड़ा पद दिये जाने से भाजपा के अंतः पुर में सांसदों, विधायकों और कार्यकर्ताओं को बड़ी नाराजगी हो सकती है. सुशील कुमार मोदी के सियासी वनवास से बिहार भाजपा का एक बड़ा वर्ग राहत की सांस ले रहा है. उनकी वापसी हुई तो पार्टी नेताओं पर पुरानी तलवार लटक सकती है. बिहार भाजपा में ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है जो बेताल को फिर से डाल पर बैठाना नहीं चाहते. इसलिए नेतृत्व उन्हें दोबारा आजमाने के मूड में नहीं है.

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