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आशा लकड़ा : बड़ी उम्मीद है झारखण्ड भाजपा को

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विष्णुकांत मिश्र
04 जनवरी 2024

Ranchi : द्रोपदी मुर्मू की तरह भाजपा में आदिवासी महिला नेता का एक और सौम्य, सुशील और सुघड़ चेहरा उभर रहा है, आशा लकड़ा के रूप में. भाजपा की राजनीति को समर्पित रहीं द्रोपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) वर्तमान में देश की राष्ट्रपति हैं. भारत गणराज्य के इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचना कोई साधारण बात नहीं है. खासकर जिस वंचित-दमित आदिवासी समाज (Tribal Society) से वह आती हैं, उस समाज की महिला के लिए तो यह आकाश कुसुम के समान ही है. संघर्ष से शिखर पर पहुंचीं द्रोपदी मुर्मू की कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी. इसके बावजूद लंबा राजनीतिक जीवन रहा. वह ओडिसा विधानसभा की सदस्य रहीं. नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली तब की राजग (NDA) सरकार में मंत्री बनीं.

राजभवन से रायसीना हिल्स
कालांतर में वहां राजग का अस्तित्व मिट गया. राज्य स्तरीय मुख्य घटक बीजू जनता दल (BJD) ने खुद के बूते सरकार बना ली. भाजपा की सत्ता की कोई संभावना नहीं बची तब द्रोपदी मुर्मू को झारखंड के राज्यपाल (Governor of Jharkhand) के पद पर आसीन करा दिया गया. रांची के राजभवन से ही वह रायसीना हिल्स पहुंचीं. वैसे तो राजभवन में विराजमान होते ही राजनीतिक सक्रियता (Political Activism) करीब-करीब सिमट जाती है, राष्ट्रपति भवन में आसन जमने के बाद प्रत्यक्ष रूप में इसे भूल ही जाना पड़ता है. कारण कि इस सर्वोच्च पद को सुशोभित करने के बाद इससे ऊपर हासिल करने के लिए कुछ बच नहीं जाता है. विश्लेषकों की समझ में द्रोपदी मुर्मू अपवाद नहीं होंगी. परन्तु, इससे भाजपा की राजनीति पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा.

मिल रहा महत्व
उनके रायसीना हिल्स से निकलते-निकलते आशा लकड़ा की राजनीति में और अधिक परिपक्वता आ जायेगी. ऐसा नहीं कि द्रोपदी मुर्मू के बाद वही राष्ट्रपति भवन में स्थापित हो जायेंगी. पर, इतना अवश्य हो जायेगा कि भाजपा (BJP) की सत्ता कायम रहने की स्थिति में ऐसे बड़े पदों के दावेदारों की फेहरिस्त में उनका नाम भी जुड़ जायेगा. बहरहाल, इन चर्चाओं के मद्देनजर हर किसी में यह जिज्ञासा अवश्य पैदा होगी कि आखिर यह आशा लकड़ा (Asha Lakda) हैं कौन?

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के साथ आशा लकड़ा.

मिलता-जुलता प्रारंभिक जीवन
आशा लकड़ा भाजपा की राष्ट्रीय सचिव हैं. पश्चिम बंगाल (West Bengal) भाजपा की सह-प्रभारी भी हैं. दो बार रांची नगर निगम की महापौर रही हैं. नगरवासियों की मानें, तो उनके कार्यकाल में रांची नगर निगम को अपने दायित्वों व कर्त्तव्यों का बोध हुआ. जिम्मेवारियों के निर्वहन का भी. नगर निगम भी कुछ है, इसका लोगों को अहसास हुआ. छात्र जीवन से ही राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत आशा लकड़ा का पारिवारिक एवं राजनीतिक जीवन राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के प्रारंभिक जीवन काल से मिलता-जुलता नजर आता है. सामान्य आदिवासी परिवारों की तरह इनके जीवन की शुरुआत भी समस्याओं के बीच ही हुई. गुमला जिले के चुरहू गांव के रहने वाले उनके पिता हरिचरण भगत केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में सिपाही थे. इस कारण आर्थिक स्थिति (Economic Condition) ज्यादा खराब नहीं थी. दो जून की रोटी पाने-खाने में कोई खास दिक्कत नहीं होती थी, आसानी से उपलब्ध हो जाती थी.

वक्त ने जोड़ दिया राजनीति से
परन्तु, अन्य मामलों में परेशानियों से समान रूप से जूझना पड़ता था. मां जयमनई देवी विशुद्ध रूप से घरेलू महिला थीं. पर, ज्यादा दिनों तक पति का साथ नहीं निभा पायीं. मध्यकाल में ही हाथ छोड़ गोलोकवासी हो गयीं. हरिचरण भगत की चार संतानों में बड़ी बेटी हाई स्कूल की शिक्षिका हैं. ऊंची शिक्षा पाने के बाद वक्त ने आशा लकड़ा को राजनीति से जोड़ दिया. एकलौता भाई ज्यादा पढ़ नहीं पाया. घर-गृहस्थी संभालता है, गांव में किसानी करता है. सबसे छोटी बहन ने अच्छी पढ़ाई-लिखाई कर रखी है. आशा लकड़ा की कष्टकर शिक्षा-यात्रा अपने आप में एक मिसाल है.


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वर्णनातीत कथा
आरंभिक दिनों में आशा लकड़ा गुमला (Gumla) जिले के ही घाघरा प्रखंड क्षेत्र के खटमा गांव स्थित ननिहाल में रहती थीं. नाना और नानी स्वर्ग सिधार गये थे. मौसी मालती देवी और मौसा महादेव भगत के साथ रह स्कूली शिक्षा पा रही थीं. 1990 में पांचवीं कक्षा में पढ़ रही थीं तभी उनकी मां का निधन हो गया. छोटी बेटी को जन्म दे वह स्वर्ग सिधार गयीं. बड़ी बहन इंटर की छात्रा थीं. आशा लकड़ा को घर संभालने के लिए पैतृक गांव चुरहू आना पड़ गया. दो छोटे भाई-बहन की देखभाल के ख्याल से पिता हरिचरण भगत पढ़ाई छोड़ देने का दबाव बना रहे थे. लेकिन, आशा लकड़ा ने घरेलू कार्यों को संभालते हुए पढ़ाई जारी रखीं. किन विषम परिस्थितियों (Adverse Circumstances) में उन्होंने शिक्षा पायी यह वर्णनातीत है.

हिम्मत नहीं हारीं
उनकी स्कूली शिक्षा गुमला जिले में संत यूथ उच्च विद्यालय, नवडीहा (घाघरा) में हुई. यह उच्च विद्यालय उनके घर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है. बस से आना-जाना होता था. चुरहू से तीन किलोमीटर पर खटमा में बस मिलती थी. 12 किलोमीटर की यात्रा बस से होती थी. बस पड़ाव से भी विद्यालय करीब पांच किलोमीटर दूर था. पैदल के सिवा कोई उपाय नहीं. इस दुरुहता के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारीं. घर-परिवार का काम और दो छोटे भाई-बहनों को देखते-संभालते हुए पूरी तन्मयता से स्कूली शिक्षा पूरी कीं. बाद में गुमला के कार्तिक उरांव कालेज से स्नातक की डिग्री हासिल कीं.

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