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रामवृक्ष बेनीपुरी : कायम रहा ‘कलम के जादूगर’ का जादू

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बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों , जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है और न वंशजों को. ‘शैली सम्राट’ के रूप में चर्चित राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह और पं.. जनार्दन प्रसाद झा द्विज की साहित्यिक विरासत की उपेक्षा को उजागर करने के बाद अब ‘कलम के जादूगर’ रामवृक्ष बेनीपुरी की स्मृति के साथ समाज और सरकार के स्तर से जो व्यवहार हो रहा है उस पर दृष्टि डाली जा रही है. संबंधित किस्तवार आलेख की यह दूसरी कड़ी है.


अश्विनी कुमार आलोक
03 जनवरी 2023

ह गांव, जो अब रहा ही नहीं, उसके अन्य बाशिंदों की तरह बांध की दूसरी ओर सरकार ने बेनीपुरी जी के नाम पर एक बड़ा भूखंड उपलब्ध कराया है. हालांकि, अनेक बार लेखकों को उसकी जाति के अनुसार राजनीति के लोग जानने-समझने लगते हैं और इस प्रकार जातिविहीन (Casteless) समरस समाज की संकल्पना के लिए सूत्रों को व्याख्यायित करने वाला व्यक्ति राजनीति के संबंधों और गणितों की भेंट चढ़ जाता है. यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि कुछ बिंदुओं पर रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri) के भूमिहार होने पर पिछड़े वर्ग की राजनीति (Politics) करनेवाले कुछ राजनेताओं ने उनकी उपेक्षा करने की चेष्टा की. किंतु ‘कलम के जादूगर’ का जादू कायम रहा.

रामवृक्ष बेनीपुरी महिला महाविद्यालय में आयोजित स्वर्ण जयंती समापन समारोह.

वैकल्पिक बंदोवस्त
उनके पुत्र महेन्द्र बेनीपुरी की साहित्य सतर्कता, साहित्यकार डा. राजेश्वर प्रसाद सिंह के निःस्वार्थ सहयोग, नाती महंथ राजीव रंजन दास की प्रतिबद्धता और विधान परिषद के सभापति देवेशचंद्र ठाकुर (Deveshchandra Thakur) के राजनीतिक समर्थन ने मिलकर रामवृक्ष बेनीपुरी के घर की खिसकी हुई जमीन के बदले उनके स्थायी स्मरण का वैकल्पिक बंदोबस्त करा दिया, जहां से उन्हें लंबे समय तक क्रांति, साहित्य चिंतन एवं समाजसेवा का उद्घोष मुखर करने वाले व्यक्तित्व के रूप में जाना-समझा जाता रहेगा. उनके साहित्य का भी इधर के दिनों में प्रचुर प्रकाशन हुआ है. ग्रंथावलियां प्रकाशित की गयी हैं, अप्रकाशित पांडुलिपियां (Manuscripts) पुस्तक के रूप में सामने लायी जा सकी हैं.


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महत्वपूर्ण रही भूमिका
इस कार्य में महेन्द्र बेनीपुरी और राजेश्वर प्रसाद सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण रही. रामवृक्ष बेनीपुरी की प्रायः सभी अप्रकाशित पांडुलिपियों को पुस्तकाकार प्रकाशित कर लिया गया. कुछ पांडुलिपियां जो दुर्लभ थीं, उन्हें पहली बार प्रकाशन का अवसर प्रदान किया गया. ‘डायरी के पन्ने’ में पुस्तक में कुछ अप्रकाशित पन्ना-पत्रों को प्रकाशित किया गया. उनकी पुस्तक के पन्ने प्रकाशित थी, ग्रंथावली (Bibliography) में उन्हें स्थान दिया गया था. उनके साथ कुछ अप्रकाशित दुर्लभ (Rare) पत्रों को ‘डायरी के पन्ने’ शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया गया.

पत्रों का प्रकाशन
रामवृक्ष बेनीपुरी अपने द्वारा संपादित ‘हिमालय’, ‘नई धारा’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में पत्र-साहित्य के रूप में प्रकाशित करते थे. उन पत्रों को डायरी के पन्ने में अब तक समाहित नहीं किया जा सका है. वैसे पत्र रामवृक्ष बेनीपुरी के नाम अनेक शीर्षस्थ साहित्यकारों के द्वारा भेजे जानेवाले पत्र थे. उन पत्रों को भी बेनीपुरी ग्रंथावली से अलग स्वरूप में प्रकाशित (Published) करने की योजना है. डा. राजेश्वर प्रसाद सिंह के अस्वस्थ हो जाने के कारण उसमें विलंब हो रहा है.

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