आयुर्वेद में भी है घाव का कारगर उपचार
तापमान लाइव ब्यूरो
25 जनवरी 2024
Patna : शल्य क्रिया (surgery) में घाव का उपचार भी एक क्षेत्र है जिसमें आयुर्वेद (Ayurveda) का योगदान असाधारण है. 100 से ऊपर विधियां और पाउडर, पेस्ट, पत्तों के ताजा रस, मरहम एवं औषधीय तेल (medicinal oil) तथा घी से बनी सामग्रियों के रूप में अनेक प्रकार की दवाएं (medicines) उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग करके पुराने और आसानी से नहीं भरने वाले घावों को ठीक किया जा रहा है. घाव के उपचार का आयुर्वेद का मूलभूत सिद्धांत है- दुष्ट व्रण (घाव) को शुद्ध व्रण में परिवर्तित कर दिया जाये. इसके लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रकार की दवाइयों की जरूरत होती है.
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दोनों चरणों में उपयोगी
दुष्ट व्रण या खराब घाव आमतौर पर निर्जीव उत्तकों से भरे ऐसे संक्रमित घाव होते हैं जिससे दुर्गंध और मवाद आती है. नीम, करंज, पपीता, हरिद्रा आदि वनस्पतियां दुष्ट व्रण को शुद्ध व्रण में बदल देती हैं इसलिए इन्हें व्रण शोधन दवाएं भी कहा जाता है. जबकि चमेली, हरिद्रा, मंजिष्ठा, दूर्वा तथा चंदन घावों को तीव्रता से भरने में सहयोगी होते हैं. इसलिए इन्हें व्रण रोपण दवाएं कहा जाता है. कुछ दवाएं ऐसी भी हैं जो घावों की चिकित्सा (Treatment) के दोनों चरणों में उपयोगी होती हैं. पंचवल्कल (पंच-पांच, वल्कल-छाल), जो आयुर्वेद में घाव भरने हेतु लाभकारी प्रभाव के लिए वर्णित है, वट, उदुबंर, पीपल, पारीष और पलक्ष जैसे पांच पौधों की छाल शामिल हैं. ये पौधे पूरे देश में सामान्य रूप से और प्रचुरता से उपलब्ध हैं.
जोंक का प्रयोग
इस यौगिक दवा का वैज्ञानिक मानकों (scientific standards) पर मूल्यांकन किया गया और पाया गया कि दवा सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकती है, नयी रक्त वाहिका के गठन को बढ़ाती है, कोलेजन संश्लेषण में वृद्धि करती है और घाव के त्वरित उपचार के लिए जरूरी कारकों को बढ़ाती है. जोंक का प्रयोग एक अन्य पैरा सर्जिकल तकनीक है जिसका आयुर्वेदिक सर्जन नहीं सूखने वाले घावों को ठीक करने के साथ ही साथ प्लास्टिक सर्जरी में त्वचा को जोड़ने में प्रयोग करते हैं. इनका प्रयोग संक्रमित घाव के चारों तरफ से आवश्यकता अनुसार रक्त को चूसकर निकालने के लिए किया जाता है. इससे रक्त का संचरण बढ़ता है और घाव को तेजी से भरने में मदद मिलती है. जोंक (leech) का प्रयोग एग्जिमा और गंजेपन जैसी बीमारियों को ठीक करने में भी बहुत कारगर है.
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