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गन्ना किसान : ‘फर्जी’ केसीसी ऋण से हलकान!

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मदनमोहन ठाकुर
26 जनवरी 2024

Sitamarhi : रीगा चीनी मिल की तमाम गतिविधियों पर नजर रखने वालों की मानें, तो श्रमिक समस्या मिल बंदी का तात्कालिक कारण हो सकती है, पर इसकी मूल वजह यह नहीं थी. न अनियंत्रित श्रमिक आंदोलन था और न कामगारों का ज्यादा बकाया. ऐसे में कामगार मिल बंदी जैसी मारक स्थिति क्यों पैदा करते? हकीकत में यह गन्ना और चीनी के उत्पादन एवं उत्पादकता से जुड़ा मसला था जिसमें मिल प्रबंधन (Management) को घाटा ही घाटा दिखा. ईखोत्पादक संघ के अध्यक्ष नागेन्द्र प्रसाद सिंह के मुताबिक पहले इस चीनी मिल की वार्षिक पेराई क्षमता तकरीबन 40 लाख टन गन्ने की थी. बंदी से पूर्व लगभग 15 लाख टन पर आ गयी. प्रबंधन की समझ बनी कि इस पेराई क्षमता में मिल चलाने से 15 से 20 करोड़ रुपये का सालाना घाटा हो सकता है. यह घाटा वह क्यों उठाता? यहां सवाल यह खड़ा होता है कि गन्ने पर आश्रित किसान (Dependent Farmer) इसकी खेती से विमुख क्यों होने लगे कि पेराई की क्षमता घट गयी?

गन्ना किसानों का शोषण
नागेन्द्र प्रसाद सिंह का कहना रहा कि इसके लिए भी मिल प्रबंधन जिम्मेवार है. वह हमेशा गन्ना किसानों का शोषण करता रहा है. गन्ना कानून (केन एक्ट) का कभी पालन नहीं किया. गन्ना कानून (Sugarcane Law) में गन्ने की आपूर्ति के 14 दिनों के अंदर किसानों को भुगतान कर देने का प्रावधान है. रीगा चीनी मिल (Riga Sugar Mill) प्रबंधन ने इस कानून का कभी अनुपालन नहीं किया. हैरानी की बात यह कि राज्य सरकार ने भी इसके लिए उस पर कोई दबाव नहीं बनाया. परिणामतः किसानों के गन्ने का भुगतान अनियमित (Irregular) हो गया. असर इस रूप में हुआ कि जिन किसानों का पैसा अटक गया उनमें से अधिकतर ने गन्ने की खेती छोड़ दी. ऐसे किसानों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी. फिर तो यह एक सिलसिला-सा बन गया. धीरे-धीरे गन्ने का उत्पादन कम होने लगा.

बकाये का भुगतान
क्षेत्र के किसानों के अनुसार थोड़ी-बहुत दिक्कतों के बावजूद गन्ने का भुगतान पहले नियमित हो जाया करता था. 2015-16 से इसमें रुकावट पैदा होने लगी. 2017-18 पेराई सत्र से बकाया रहने लग गया. वर्तमान में गन्ना किसानों का 51.30 करोड़ का बकाया है. यह आंकड़ा मिल प्रबंधन का है. राज्य सरकार ने अपने स्तर से इस राशि के भुगतान की स्वीकृति प्रदान कर दी है. ईखोत्पादक संघ के अध्यक्ष नागेन्द्र प्रसाद सिंह और उत्तर बिहार संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक डा. आनंद किशोर (Dr. Anand Kishor) ने राज्य सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है. पर, उनका कहना है कि शेष बकाया राशि के भुगतान के लिए भी सरकार को पहल करनी चाहिये. उनके मुताबिक गन्ना किसानों का बकाया सवा सौ करोड़ से अधिक का था. इसके अलावा दस हजार से अधिक किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) ऋण का भी बड़ा मामला है. इसे मिल प्रबंधन की किसानों के साथ धोखाधड़ी (Fraud) के रूप में देखा जा रहा है. मामला 2016 का है.


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क्या होगा केसीसी ऋण का?
रीगा चीनी मिल प्रबंधन के द्वारा केसीसी का चौंकाने वाला खेल खेला गया. आरोपों के मुताबिक मिल प्रबंधन ने गन्ना मद की राशि के भुगतान के नाम पर किसानों का केसीसी लिमिट करा दिया. इस साजिश में कथित रूप से दो बैंकों की भी संलिप्तता (Involvement) रही. मिल प्रबंधन ने किसानों को जो भुगतान किया, वह गन्ना का बकाया था. लेकिन, बाद में पता चला कि किसानों को वह राशि गन्ना के एवज में नहीं, बल्कि केसीसी ऋण दिया गया था. इस तरह करीब दस हजार किसान तकरीबन 80 करोड़ रुपये के ऋणी बन गये. जबकि हकीकत में उनमें से एक ने भी केसीसी ऋण नहीं लिया था. ईखोत्पादक संघ के अध्यक्ष नागेन्द्र प्रसाद सिंह के मुताबिक गन्ना किसानों के नाम लिये गये ऋण सवा सौ करोड़ के हैं. इस ऋण (Loan) का निपटारा कैसे होगा, स्पष्ट रूप से कोई कुछ बता नहीं रहा है.

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