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गन्ना किसान : खिल पायेगी कभी मुस्कान?

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सात-आठ साल पहले तक रीगा चीनी मिल इलाकाई खुशहाली का वाहक थी. बाद के दिनों में उसकी चिमनियों से दुर्दिन के धुआं निकलने लगे, देर-सबेर बंद हो जाने की आशंकाएं गहराने लगीं. राज्य सरकार बेपरवाह रही. गन्ना किसानों एवं कामगारों के बकाये का भुगतान कैसे हो, मिल चालू कैसे रहे, इस बाबत कभी कोई गंभीर पहल नहीं की. अंततः धुक-धुककर चीनी मिल बंद हो गयी. क्यों और कैसे? इसकी पड़ताल तीन किस्तों के इस आलेख में की जा रही है:


मदनमोहन ठाकुर
24 जनवरी 2024

Sitamarhi : तकरीबन तीन साल से बंद रीगा चीनी मिल की खामोश चिमनियों से फिर कभी धुआं निकल पायेगा? दिवालिया घोषित चीनी मिल की नीलामी के बाद भी यह सवाल अपनी जगह कायम है, जो कामगारों और गन्ना उत्पादक किसानों के चेहरों पर मुस्कान खिलने नहीं दे रहा है. मिल की नीलामी और इसके फिर से चालू होने की संभावनाओं से क्षेत्र में हर्ष की जो लहर पैदा हुई थी, वह अब लगभग लुप्त हो गयी है. ऐसी रुग्न औद्योगिक इकाइयों के पूर्व के हस्र के मद्देनजर उम्मीदों पर आशंकाओं की धुंध छा गयी है. इसका बड़ा कारण नीलामी के बाद की प्रक्रियाओं में गति नहीं आना है. कृषि योग्य भूमि और लंबे-चौड़े परिसर सहित अरबों की चल-अचल संपत्ति की धारक रीगा चीनी मिल की मात्र एक सौ एक करोड़ में नीलामी (Auction) भी कई तरह के संदेह पैदा करती है, आशंकाओं को विस्तार देती है.

किस्सा नीलामी का
ऐसी आशंकाओं के निवारण-निस्तारण की कोई आधिकारिक पहल नहीं होने और निकट भविष्य में चीनी मिल के चालू होने का भरोसे लायक ठोस आश्वासन (Concrete Assurance) नहीं मिलने से चिंता गहरा गयी है. अगस्त 2023 में हुई नीलामी के बाद रीगा चीनी मिल का स्वामित्व कोलकाता (Kolkata) की हल्दिया स्टील प्रा. लि. एवं अहमदाबाद की भारत एग्रो बायोटेक लि. को मिल गया है. नीलामी में विभिन्न राज्यों की 11 कंपनियों के हिस्सा लेने की बात कही जाती है. परन्तु, जानकार बताते हैं कि उसमें सिर्फ उक्त दो कंपनियों ने ही हिस्सा लिया था. अन्य किसी ने कोई रुचि नहीं दिखायी थी. मिल की बंदी का मामला कोलकाता के संबंधित न्यायाधिकरण में विचाराधीन था. उसी के आदेश पर नीलामी हुई. ऐसा न्यायाधिकरण द्वारा परिसमापक (लिक्विडेटर) घोषित नीरज जैन का कहना रहा.

वजूद पर सवाल
चीनी मिल की आरक्षित कीमत एक सौ एक करोड़ निर्धारित की गयी थी. उसी न्यूनतम कीमत पर उसके बिक जाने से उक्त बातों को आधार मिलता है. बहरहाल, नीलामी की राशि अभी तक (संवाद लिखने तक) जमा नहीं हुई है, नये स्वामियों को राज्य सरकार का अनापत्ति-पत्र भी नहीं मिला है. रीगा चीनी मिल का वजूद रहेगा या इतिहास में सिमट जायेगा, उक्त प्रक्रियाओं के पूरा हो जाने के बाद ही तय होगा. तब तक कामगार और गन्ना किसान चिंताओं- दुश्चिंताओं में डूबते-उपलाते रहेंगे. इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं!

जानिये इतिहास
भारत की चंद पुरानी चीनी मिलों में स्थान रखने वाली रीगा चीनी मिल की स्थापना 1933 में हुई थी. आजादी से लगभग 14 साल पूर्व अंग्रेजों के शासनकाल में. बांगुर ब्रदर्स ने लखनदेई नदी के किनारे इसे स्थापित किया था. एक साल बाद 1934 के भूकंप (Earthquake) में चीनी मिल ध्वस्त हो गयी थी. उसी साल मरम्मत करा उसे फिर से चालू कराया गया था. स्वर्णिम इतिहास सहेज रखी सीतामढ़ी की यह धरोहर 1950 में धानुका समूह के स्वामित्व में आ गयी. एम ए बांगुर ब्रदर्स ने इसे पुरुषोत्तम लाल धानुका को सौंप दिया. मिल बंदी के वक्त पुरुषोत्तम लाल धानुका के पुत्र ओमप्रकाश धानुका इसके अध्यक्ष- सह-प्रबंध निदेशक थे.


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स्टीम रेल इंजन
मिल से जुड़ा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि 1930 में हॉड्सवेल क्लार्क ने इंगलैंड में तीन लोकोमोटिव स्टीम रेल इंजन का निर्माण किया था. उनमें से एक रीगा चीनी मिल प्रबंधन ले आया था. वह स्टीम रेल इंजन 1933 से 2010 तक चीनी मिल की सेवा में रहा. सीतामढ़ी-नरकटियागंज रेलखंड के बड़ी लाइन में परिवर्तित हो जाने के बाद उस इंजन को रीगा चीनी मिल (Riga Sugar Mill) परिसर में प्रदर्शनी के तौर पर रख दिया गया था. मिल बंद होने के तकरीबन चार साल पूर्व मिल प्रबंधन ने उसे भारतीय रेल (Indian Rail) को सौंप दिया. तब इसे ‘विश्व धरोहर’ बताया गया.

कई उतार-चढ़ाव देखे
सात दशक से अधिक समय तक धानुका समूह के स्वामित्व (Ownership) में रही इस चीनी मिल ने कई उतार-चढ़ाव देखे. कामगार संघों, गन्ना किसान संघों और किसान नेताओं की उचित-अनुचित मांगों से जूझते हुए प्रबंधन मिल चलाता रहा. इस दरम्यान मिल परिसर में तीन नये संयत्र (Plant) स्थापित किये गये. चीनी, इथनॉल के अलावा डिस्टिलरी और जैविक खाद (Organic Fertilizer) तैयार करने वाली मशीन.  (जारी)

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