समस्तीपुर : उदासीनता से झांकता परिणाम!
विकास कुमार
10 मई 2024
Samastipur : समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. चुनाव की बाबत सामान्य वर्ग में कोई खास दिलचस्पी नहीं रहने के कारण जातीयता में ज्यादा आक्रामकता नहीं दिख रही है. मतों का कोई जातिवार आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. अनुमानित आंकड़ों में सबसे अधिक संख्या मुसलमानों के रहने की बात कही जाती है. कुछ लोग यादवों की आबादी को सबसे बड़ी मानते हैं. वैसे, दोनों के मतों में अंतर कुछ ज्यादा का नहीं है. थोड़ा-बहुत ऊपर-नीचे के साथ दो-दो लाख के आसपास है. ‘माय’ समीकरण में बंधे ये दोनों सामाजिक समूह राजद (RJD) के आधार मत माने जाते हैं. परन्तु, इस बार इनकी प्रतिबद्धता थोड़ी डगमगाती दिख रही है.
‘राम के नाम’ पर
विश्लेषकों की मानें तो यादवों में मुखरता है, पर मुसलमानों में मायूसी जगह बनाये हुए है. मतदान केंद्रों पर यह मायूसी मिट जाये तो वह अलग बात होगी. स्वजातीय उम्मीदवार (Candidate) नहीं रहने से यादव समाज का एक तबका ‘राम के नाम’ से भी प्रभावित है. इसका असर चुनाव (Election) पर पड़ सकता है. तब भी राजद के ‘माय’ से काग्रेस (Congress) उम्मीदवार सन्नी हजारी को मजबूती मिल रही है. सूचना एवं जन-सम्पर्क मंत्री महेश्वर हजारी (Maheshwar Hazari) के पुत्र सन्नी हजारी पासवान बिरादरी से हैं. तकरीबन डेढ़ लाख मत इस समाज के हैं.
विभाजन का खतरा
वैसे तो पासवान समाज को लोजपा-आर सुप्रीमो चिराग पासवान (Chirag Pawan) का समर्थक माना जाता है, पर स्थानीय स्तर पर पकड़ हजारी परिवार की भी है. इस आधार पर पासवान मतों में विभाजन की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता. सवर्णों में सर्वाधिक मत ब्राह्मणों के हैं. संख्या पौने दो लाख के करीब है. एक लाख मत राजपूतों के और पौने लाख भूमिहारों के रहने का दावा किया जाता है. ये मत एनडीए (NDA) समर्थक माने जाते हैं. दो लाख से कुछ अधिक कुर्मी-कुशवाहा मत हैं. इन मतों पर जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का प्रभाव माना जाता रहा है. लेकिन, अब वैसा नहीं है.
इस पर है निर्भर
महागठबंधन के रूप में कुशवाहा मतों के समर्थन का दूसरा मजबूत कोण बन गया है. पूर्व सांसद अश्वमेध देवी (Ashwamegh Devi) उन्हें उस ओर मुखातिब होने से कितना रोक पाती हैं, चुनाव का रूख बहुत कुछ उस पर भी निर्भर करेगा. कुर्मी मतों की अनुमानित संख्या सवा लाख है. ऐसा माना जा सकता है कि इन मतों की निष्ठा नीतीश कुमार से जुड़ी हुई है. लगभग डेढ़ लाख की संख्या में वैश्य मत हैं. भ्रमित करने की तमाम कोशिशों के बाद भी करीब-करीब पूर्व के रूख पर कायम हैं. एक लाख से कुछ अधिक रविदास हैं. इसी बिरादरी के हैं पूर्व मंत्री डा. अशोक कुमार (Dr Ashok Kumar). वह समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हुआ करते थे. इस बार उम्मीदवारी नहीं मिली. उनकी जगह सन्नी हजारी (Sanny Hazari) ने ले ली है.
ये भी पढ़ें :
समस्तीपुर का संदेश … चढ़ जायेगी बलि!
यही है सामाजिक न्याय का गणित?
पप्पू यादव और कांग्रेस : इतनी बेइज्जती तो तेजस्वी ने भी नहीं की !
तेजस्वी हैरान : मुंह मोड़ रहे मुसलमान?
उपेक्षा बर्दाश्त नहीं
डा. अशोक कुमार खुद तो मन मसोस कर रह गये, बेटा कुमार अतिरेक को पिता की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं हुई. कांग्रेस से नाता तोड़ जदयू (JDU) में शामिल हो गये. ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी (Ashok Chaudhary) की पुत्री एनडीए प्रत्याशी शांभवी चौधरी (Shambhavi Chaudhary) को इसका लाभ कितना मिलेगा, यह कहना कठिन है. ऐसा इसलिए कि रविदास मतों पर डा. अशोक कुमार की पकड़ पहले जैसी नहीं रह गयी है. तब भी जो कुछ है उसका झुकाव एनडीए की ओर हो सकता है. वैसे, विश्लेषकों का मानना है कि इस समाज पर नरेन्द्र मोदी का प्रभाव बहुत हद तक कायम है.
नहीं टूटी तब
दलित वर्ग की और भी जातियां हैं जिनके मत अच्छी संख्या में हैं. अत्यंत पिछड़ी जातियों की आबादी भी बहुत बड़ी है. यह वर्ग नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का समर्थक माना जाता है. हालांकि, इस बार पू्र्व जैसा उत्साह नहीं दिख रहा है. बहरहाल, वर्तमान चुनावी तस्वीर को देखते हुए कहा जा सकता है कि थोड़ा बहुत बदलाव के साथ गहरी उदासीनता के बीच राजनीतिक (Political) एवं सामाजिक हालात 2019 जैसे ही हैं. उदासीनता एनडीए (NDA) समर्थकों में अधिक दिख रही है. विश्लेषकों का आकलन है कि यह उदासीनता नहीं टूटी तो उम्मीदों का चिराग (Chirag) बूझ जा सकता है. टूट गयी तो महागठबंधन (Mahagathbandhan) में हाथ मलने जैसी स्थिति पैदा हो जा सकती है.
#TapmanLive