किस्मत इन्हें कहां ले आयी…आगे कुआं,पीछे खाई!
विजय कुमार राय
23 जून 2024
Dumka: सीता सोरेन (Sita Soren) का राजनीतिक (political) भविष्य अब क्या होगा? भाजपाई संस्कार (BJP Values) में रच-बस जायेंगी या दूसरे बागी नेताओं की तरह झामुमो (JMM) में लौट जायेंगी? भाजपा उम्मीदवार के रूप में दुमका में उनकी हार के बाद यह सवाल झारखंड की राजनीति (politics of jharkhand) में खासे चर्चा का विषय बना हुआ है. इस पर बात आगे की जायेगी. पहले संसदीय चुनाव के फलाफल पर नजर डालते हैं.
रह गयी थोड़ी कसक
संताल परगना में यह चुनाव झामुमो के लिए सुकूनदायक रहा. पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन (Shibu Soren) की कर्मभूमि दुमका में उसका सिक्का फिर से जम गया. 2019 में किसी और को नहीं, शिबू सोरेन को ही परास्त कर भाजपा इस पर काबिज हुई थी. दुमका की बड़ी कामयाबी के बीच झामुमो को कसक इस बात की जरूर रह गयी कि गोड्डा (godda) में उसकी रणनीति कारगर नहीं हो पायी. ‘कमल’ की मुस्कुराहट बनी रह गयी.
वैसा कुछ नहीं हुआ
उधर, दुमका के हाथ से फिसल जाने से भाजपा को गहरा सदमा पहुंचा. बड़ी उम्मीद लिये सीटिंग सांसद सुनील सोरेन (Sunil Soren) को हाशिये पर डाल शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रवधू सीता सोरेन (Sita Soren) को उसने उम्मीदवार बनाया था. मकसद दुमका पर कब्जा बरकरार रखने के साथ अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में उनके प्रभाव का लाभ उठाना था. पर, वैसा कुछ नहीं हुआ. सीता सोरेन खुद पराजित हो गयीं.
सीता सोरेन का आरोप
उनकी आयातित उम्मीदवारी से समर्पित भाजपाइयों में असंतोष तो जगह बनाये हुए था ही, हार का ठिकरा उन्हीं के माथे फोड़ उन्होंने ऐसा विवाद खड़ा कर दिया है जो आसन्न विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की संभावनाओं को गहरे रूप से प्रभावित कर दे सकता है. सीता सोरेन ने खुले तौर पर आरोप लगाया है कि चुनाव में प्रदेश भाजपा संगठन का ‘जीत दिलाऊ सहयोग’ उन्हें नहीं मिला. अप्रत्यक्ष रूप से उनका यह हमला पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) पर है. अभी वही झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं.
असहयोग न भितरघात
सीता सोरेन ने खुले तौर पर यह भी कहा कि पूर्व मंत्री लुईस मरांडी (luis Marandi), रणधीर सिंह (Randhir Singh) और निवर्तमान सांसद सुनील सोरेन (Sunil Soren) ने भितरघात किया. उनके इस आरोप पर भाजपा के अंदर तीखी प्रतिक्रिया हुई. पार्टी के कई नेताओं ने साफ शब्दों में कहा कि कहीं कोई असहयोग या भितरघात नहीं हुआ. चुनाव प्रबंधन की खामियों की वजह से सीता सोरेन की हार हुई. इसके लिए दूसरा कोई नहीं, खुद वही जिम्मेदार हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
अब आंकड़ों पर नजर दौड़ाते हैं. सीता सोरेन की हार 22 हजार 527 मतों के अंतर से हुई. उन्हें 05 लाख 25 हजार 843 मत मिले जो 2019 में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन को प्राप्त 04 लाख 84 हजार 923 मतों से 40 हजार 920 अधिक हैं. दूसरी तरफ 2019 में झामुमो प्रत्याशी शिबू सोरेन को 04 लाख 37 हजार 333 मत मिले थे. इस बार नलिन सोरेन को 05 लाख 47 हजार 370 मत मिले हैं, जो 2019 की तुलना में 01 लाख 10 हजार 037 अधिक हैं.
तीन क्षेत्रों में बढ़त
सीता सोरेन का आरोप है कि सुनील सोरेन, लुईस मरांडी और रणधीर सिंह की दलघाती भूमिका की वजह से झामुमो के मतों में यह बढ़ोतरी हुई है. सीता सोरेन के आरोप का आधार क्या है यह नहीं कहा जा सकता, पर विश्लेषकों को इसमें कोई खास दम नहीं दिखता है. लुईस मरांडी दुमका विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ती हैं तो रणधीर सिंह सारठ से विधायक हैं. संसदीय चुनाव में इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा को बढ़त मिली है. दुमका से सीता सोरेन के देवर बसंत सोरेन (Basant Soren) झामुमो के विधायक हैं.
रहना अब मुश्किल
सीता सोरेन को बढ़त जामा विधानसभा (Jama Assembly) क्षेत्र में भी मिली जहां से सीता सोरेन खुद विधायक थीं. इस तथ्य को नजरंदाज कर जिस ढंग से वह भाजपा के पूर्व मंत्रियों और पूर्व सांसद पर भितरघात का आरोप मढ़ रही हैं उससे उनके इस पार्टी में बने रहना अब मुश्किल-सा दिख रहा है. ऐसे में झामुमो और विधानसभा, दोनों की सदस्यता त्याग भाजपा में शामिल हुईं सीता सोरेन के झामुमो में लौट जाने की संभावना को बल मिल रहा है.
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सुनना पड़ सकता है ताना
पर, समाज की जो सामान्य रीति है उसके मद्देनजर उनके देवर पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) और उनकी विधायक पत्नी कल्पना सोरेन (Kalpana Soren) ऐसा शायद ही होने देना चाहेंगे. वैसे, शिबू सोरेन के हस्तक्षेप से झामुमो में उनकी वापसी तो हो जा सकती है, पर अहमियत पूर्व जैसी रह पायेगी, इसमें संदेह है. सामान्य समझ है कि उस स्थिति में ज्यादा से ज्यादा जामा विधानसभा क्षेत्र से उन्हें या उनकी पुत्री को झामुमो की उम्मीदवारी मिल जा सकती है. इसके अलावा कुछ नहीं. बल्कि प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष ताना ही सुनना पड़ जा सकता है.
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