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चूक गयीं झारखंड की सीता और गीता

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विजय कुमार राय
08 जून 2024

Ranchi : बात बाबन साल पहले की है.1972 में हास्य हिन्दी फिल्म ‘सीता और गीता ’ (‘Sita and Geeta’) आयी थी. फिल्म में सीता और गीता के रूप में हेमा मालिनी (Hema Malini) की दोहरी भूमिका थी. फिल्म खूब चली. काफी चर्चा में भी रही. पर, यहां उस फिल्मी ‘सीता और गीता’ की नहीं, झारखंड (Jharkhand) की राजनीति में बड़ी पहचान रखने वाली ‘सीता और गीता’ की बात की जा रही है. इस प्रसंग में कि फिल्म में ‘सीता और गीता’ की भूमिका निभाने वाली हेमा मालिनी तो लगातार तीसरी बार मथुरा से सांसद निर्वाचित हो गयीं, पर झारखंड की ‘सीता और गीता’ को पराजय का मुंह देखना पड़ गया. गौर करने वाली बात यह भी कि हेमा मालिनी तीनों ही बार भाजपा उम्मीदवार के तौर पर निर्वाचित हुईं. झारखंड (Jharkhand) की ‘सीता और गीता’ (‘Sita and Geeta’) भाजपा (B J P) प्रत्याशी के तौर पर पहली बार मैदान में उतरीं और मात खा गयीं.

शिबू सोरेन की पुत्रवधू

पति दुर्गा सोरेन के असामयिक निधन के बाद इत्तिफाकन राजनीति में आयीं झारखंड की सीता यानी सीता सोरेन झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन (Shibu Soren) की पुत्रवधू हैं. जामा से विधायक और झामुमो की केन्द्रीय महासचिव रही हैं. हर स्तर पर उपेक्षा से ऊबीं सीता सोरेन ने संसदीय चुनाव के दरमियान पार्टी और परिवार से बगावत कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. शिबू सोरेन परिवार में बिखराव को खुद के लिए बेहतरीन अवसर मान भाजपा नेतृत्व ने आनन- फानन में दुमका (Dumka) के घोषित प्रत्याशी सुनील सोरेन (Sunil Soren) को हाशिये पर धकेल सीता सोरेन (Sita Soren) को उम्मीदवार बना दिया.

सुनील सोरेन की हाय

हड़बड़ाहट में उठाये गये कदम का जो हश्र होता है वैसा ही वहां हुआ. भाजपा और सीता सोरेन को सुनील सोरेन की हाय लग गयी. भाजपा की संपूर्ण शक्ति भी उस हाय को काट नहीं पायी. अनुकूल परिस्थितियों को भी सीता सोरेन जीत में परिवर्तित नहीं कर पायीं. 2019 में सुनील सोरेन विजयी हुए थे. उन्होंने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को शिकस्त दी थी. अपनी ही कर्मभूमि में शिबू सोरेन 47 हजार 590 मतों से मात खा गये थे. हालांकि, उनके लिए यह कोई पहला अनुभव नहीं था. पूर्व में भी वह वहां हार का स्वाद चख चुके थे. इस चुनाव में 05 लाख 24 हजार 843 मत हासिल करने के बाद भी सीता सोरेन 22 हजार 527 मतों से पिछड़ गयीं.

अकुशल चुनाव प्रबंधन

सीता सोरेन के अति आत्मविश्वास को तोड़ झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन (Nalin Soren) 05 लाख 47 हजार 370 मत बटोरने में सफल हो गये. सीता सोरेन का अकुशल चुनाव प्रबंधन उनका मददगार साबित हुआ. बात अब झारखंड की गीता यानी गीता कोड़ा (Geeta Koda) की. वह झारखंड के ‘निर्दलीय मुख्यमंत्री’ के रूप में राष्ट्रीय रिकार्ड धारण कर रखे पूर्व सांसद मधु कोड़ा (Madhu Koda) की पत्नी हैं. ‘पति से बगावत’ का दाग इन पर भी लगा था. वाकया मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री बनने से पहले का है. पति की किस्मत चमकी और मुख्यमंत्री का पद मिल गया तब उनके रिश्ते फिर से प्रगाढ़ हो गये.


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वैसा नहीं हुआ


गीता कोड़ा 2019 में सिहभूम (Sihbhum) से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांसद निर्वाचित हुई थीं. उन्होंने किसी और को नहीं, झारखंड प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा (Laxman Giluva) को परास्त किया था. बाद में लक्ष्मण गिलुवा दिवंगत हो गये. सिंहभूम का मैदान खुला देख फरवरी 2024 में गीता कोड़ा कांग्रेस से रिश्ता तोड़ भाजपा में शामिल हो गयीं. इस उम्मीद में कि भाजपा की ताकत से उनकी जीत आसान हो जायेगी. लेकिन, वैसा हुआ नहीं. 2019 में गीता कोड़ा की जीत 72 हजार 155 मतों के अंतर से हुई थी. 2024 में वह 01 लाख 68 हजार 402 मतों के विशाल अंतर से धूल चाट गयीं. ऐसी शर्मनाक पराजय उन्हें जोबा मांझी (Joba Manjhi) से मिली जो झामुमो (JMM) की उम्मीदवार थीं. जोबा मांझी को 05 लाख 20 हजार 164 मत मिले तो गीता कोड़ा 03 लाख 51 हजार 762 मतों में सिमट गयीं.

भविष्य अब क्या?

2019 में दिवंगत भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण गिलुवा (Laxman Giluva) को 03 लाख 59 हजार 660 मत प्राप्त हुए थे. विश्लेषकों का मानना है कि इस बार गीता कोड़ा को जो मत मिले हैं उनमें अधिसंख्य वही हैं. बदले हालात में मधु कोड़ा और गीता कोड़ा का जनाधार झामुमो के साथ जुड़ गया है. झारखंड की ‘सीता और गीता’ का भविष्य अब क्या होगा यह वक्त के गर्भ में है, फिलहाल दोनों की इस अप्रत्याशित हार से भाजपा को जो गहरा सदमा पहुंचा है उससे तत्काल उबर पाना कठिन प्रतीत होता है.

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