दरभंगा एम्स : खोट ही खोट दिखा सरकार की नीयत में!
विजयशंकर पांडेय
26 नवम्बर 2024
Darbhanga : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने दरभंगा में एम्स (AIIMS) की आधारशिला रख दी. संपूर्ण उत्तर और पूर्वोत्तर बिहार (North and North-East Bihar) में बेहतर चिकित्सा सुविधा की उपलब्धता की चमक छा गयी. पर, एम्स के निर्माण की घोषणा से लेकर शिलान्यास तक यह किस तरह अनिश्चितताओं में झूलता रहा, वह किस्सा कम रोचक नहीं है.खलनेे वाली सबसे बड़ी बात यह रही कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार कभी इसके प्रति गंभीर नहीं दिखी . सामान्य समझ में सिर्फ घमंड आधारित घटिया राजनीति करती दिखी . जनता के हित का तनिक भी ख्याल नहीं रखा. उसकी नीयत में खोट ही खोट नजर आयी.यह कोई गप नहीं, हकीकत है जिसे संबंधित तथ्यों से आसानी से समझा जा सकता है.
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का पहला पत्र
2015-16 के बजट में बिहार (Bihar) में दूसरा एम्स खोलने की घोषणा हुई, तो 01 जून 2015 को तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा (J P Nadda) ने मुख्यमंत्री (Chief Minister) नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इसकी स्थापना के लिए कम से कम 200 एकड़ वैसी जमीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया, जहां आवागमन, बिजली और पानी की समुचित व्यवस्था-उपलब्धता हो. उस कालखंड में राज्य में भाजपा (BJP) से अलग राजद (RJD) के तब के कमजोर कंधे पर टिकी नीतीश कुमार की ‘जुगाड़ू बहुमत’ वाली ‘स्वतंत्र सरकार’ थी. जानकारों के मुताबिक उस सरकार ने जे पी नड्डा के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया. उसके बाद विधानसभा (Assembly) का चुनाव आ गया. चुनाव बाद नवम्बर 2015 में नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में महागठबंधन (grand alliance) की सरकार सत्ता में आ गयी.
जवाब नहीं दिया पत्रों का
भाजपा के नेताओं का कहना रहा कि तब ‘संघ मुक्त भारत’ का अलख जगा रहे नीतीश कुमार ने दरभंगा में एम्स के निर्माण का श्रेय नरेन्द्र मोदी को न मिल जाये, मामले को उसके हाल पर छोड़ दिया. विश्लेषकों को हैरानी इस बात पर हुई कि बाद के दिनों में भाजपा के साथ हो जाने के बाद भी वह उस मानसिकता से उबर नहीं पाये . प्रमाण सबके सामने है. जो लोग एम्स की स्थापना में केन्द्र सरकार की आनाकानी की बात करते रहे हैं, उन्हें यह जानने की जरूरत है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के 01 जून 2015 के पत्र का बिहार सरकार ने जवाब देना मुनासिब नहीं समझा तब 10 दिसम्बर 2015 को दोबारा पत्र भेजा गया.
दिलचस्पी नहीं दिखायी
सूत्रों के अनुसार राह रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो गये नरेन्द्र मोदी से सियासी खुन्नस पाल रखे नीतीश कुमार की सरकार ने उस पत्र का भी जवाब नहीं दिया. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने तब भी धैर्य नहीं खोया. जनता के व्यापक हित में पूर्व के अपने पत्रों को उद्धृत करते हुए राज्य सरकार को ‘स्मरण-पत्र’ भेजा. उस ‘स्मरण-पत्र’ का अहंकार-उपहास भरा जवाब मिला-‘केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय खुद ही तय कर ले कि एम्स के लिए उसे जमीन कहां चाहिये.’ स्पष्ट है कि इस जवाब से राज्य सरकार की मंशा उजागर हो गयी कि दरभंगा में एम्स के निर्माण में उसकी दिलचस्पी नहीं थी.
सच्चाई सामने आ गयी
इस रुखे जवाब और व्यवहार पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकार को उसके दायित्व का बोध कराते हुए 08 दिसम्बर 2016 को जवाबी पत्र भेजा. उसमें कहा गया – ‘बिहार में दूसरा एम्स स्थापित करने के लिए जमीन उपलब्ध कराने की मुख्य जिम्मेवारी राज्य सरकार की है. राज्य सरकार ही तीन या चार जगहों को चिन्ह्ति कर सुझाव दे’. पत्रों का यह आदान-प्रदान बताता है कि एम्स किसके अहं में अटका रहा. नीतीश कुमार और उनके रणनीतिकार बिहार और बिहारवासियों के हितों की बातें करते अघाते नहीं हैं. परन्तु, उन बातों की धरातली सच्चाई क्या रहती है, दरभंगा एम्स प्रकरण से बिल्कुल साफ हो गया.
नागवार गुजरा
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तीन या चार जगहों की बाबत सुझाव मांगा तो राज्य सरकार ने पूर्व की बातों को दुहरा कर इसे फिर नजरंदाज कर दिया. ‘तीन या चार जगहों’ का सुझाव ‘एको अहम् द्वितीयो नास्ति’ के अहंकार को नागवार गुजरा. इस रूप में कि स्थल का चयन केन्द्र नहीं करेगा, राज्य सरकार जो जगह उपलब्ध करायेगी उसी पर एम्स का निर्माण हो. राजशाही जिद! 29 मार्च 2017 को राज्य सरकार ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को जवाब भेज स्पष्ट तौर पर कह दिया कि केन्द्र सरकार जमीन का चयन खुद कर ले. भाजपा के नेताओं ने सवाल उठाया कि यह सोची-समझी रणनीति के तहत दायित्व निर्वहन से पलायन नहीं, तो और क्या था?
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सिर्फ पत्रों का आदान-प्रदान
दरभंगा में एम्स की स्थापना जल्द से जल्द कराने के प्रति अधिक गंभीर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 12 अप्रैल 2017 को बिहार सरकार को फिर स्मरण-पत्र प्रेषित किया. राज्य सरकार ने पूर्व की तरह उस पत्र को भी तवज्जो नहीं दिया. लगभग दो वर्षों तक ऐसे ही पत्रों का आदान-प्रदान होता रहा. इसी बीच जुलाई 2017 में नीतीश कुमार के पलटी मार लेने से राज्य की सत्ता राजनीति (state power politics) बदल गयी. उनके ही नेतृत्व में राजग (NDA) की सरकार बन गयी. और कुछ हो या नहीं, इससे दरभंगा की एम्स की बाबत मुरझाई उम्मीदें हरी हो उठीं. पर, वह खुशफहमी ही साबित हुई. इसके प्रति नीतीश कुमार के रुख में कोई विशेष बदलाव नहीं आया. 12 अप्रैल 2017 के स्मरण-पत्र का जवाब भी राज्य सरकार ने नहीं दिया.
सख्ती का कोई असर नहीं
राज्य सरकार के इस कथित जनविरोधी आचरण से क्षुब्ध केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने थोड़ी सख्ती दिखायी. 02 फरवरी 2018 को नया पत्र भेजा. पुरानी बातों को रखते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि 15 दिनों के अंदर जवाब नहीं मिला, तो बिहार में दूसरे एम्स की स्थापना कठिन हो जा सकती है. इसे घटिया राजनीति ही कहेंगे कि बिहार सरकार की घठा गयी मोटी चमड़ी पर इस सख्ती का भी कोई असर नहीं पड़ा. भाजपा के सत्ता में साझीदार होने और स्वास्थ्य विभाग उसके ही जिम्मे रहने के बावजूद नीतीश कुमार की सरकार ने इस चेतावनी को भी धूल की तरह झाड़ दिया, जवाब नहीं दिया.
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