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तिरहुत उपचुनाव : जात न पात तब भी खा गये मात

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मदनमोहन ठाकुर
11 दिसम्बर 2024

Patna : बिल्कुल अकल्पित व अप्रत्याशित परिणाम आया विधान परिषद के तिरहुत स्नातक क्षेत्र (Tirhut Graduate Constituency) के उपचुनाव (By-Election) का. सेवा से बर्खास्त शिक्षक नेता बंशीधर ब्रजवासी (Banshidhar Brajwasi) ने जात न पात, सिर्फ जज्बात पर सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधनों के उम्मीदवारों को पछाड़ बड़ी जीत हासिल कर ली. इससे स्वाभाविक रूप से राजनीति चौंक गयी, सत्तारूढ़ दल जदयू (JDU) सदमे में आ गया. सहयोगी भाजपा (BJP) निराशा में डूब गयी.

देवेश चन्द्र ठाकुर की प्रतिष्ठा
निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बंशीधर ब्रजवासी ने सत्तारूढ़ एनडीए (NDA) के जदयू उम्मीदवार ईंजीनियर अभिषेक झा (Abhishek Jha) की दुर्गति करा सांसद देवेश चन्द्र ठाकुर (MP Devesh Chandra Thakur) की प्रतिष्ठा तो मिट्टी में मिला ही दी, महागठबंधन (Mahagathbandhan) के राजद प्रत्याशी गोपी किशन (Gopi Kishan) की खटिया खड़ी कर पार्टी के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) को भी अपने निर्णय की हार पर आत्ममंथन करने को बाध्य कर दिया. इसी तरह विधानसभा के उपचुनाव की तरह इस उपचुनाव में भी प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की जन सुराज पार्टी (Jan Suraj Party) की दाल नहीं गल पायी. थोड़ी बहुत इज्जत इस रूप में बच गयी कि उसके उम्मीदवार डा. विनायक गौतम (Dr. Vinayak Gautam) दूसरा स्थान पाने में सफल रहे.


‌‌लुढ़क गये चौथे स्थान पर
उपचुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधनों के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर भी नहीं आ पाये. राजद के गोपी किशन को तीसरा स्थान मिला. इच्छा के विपरीत सांसद देवेश चन्द्र ठाकुर के कंधे पर लाद दिये गये जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा (Sanjay Jha) के कथित करीबी उम्मीदवार ईंजीनियर अभिषेक झा चौथे स्थान पर लुढ़क गये. यहां गौर करने वाली बात है कि तिरहुत स्नातक क्षेत्र के पिछले चार चुनावों में लगातार देवेश चंद्र ठाकुर की जीत हुई थी. 2020 में जीते देवेश चंद्र ठाकुर के सीतामढ़ी से जदयू का सांसद बन जाने के कारण उपचुनाव हुआ.

वाकई गंभीर चिंता की बात
इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि क्षेत्र पर मजबूत पकड़ रहने और चुनाव के बहुत पहले से सघन अभियान चलाने के बाद भी जदयू को शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ गया. विश्लेषकों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व के लिए यह वाकई गंभीर चिंता की बात है. वैसे तो इस परिणाम से सरकार की सेहत पर सीधे तौर पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, पर इससे संबद्ध वर्ग के राजनीतिक रुझान का अंदाज तो लग ही जाता है. चूंकि यह प्रबुद्ध तबके के मतदाताओं का रुझान है इसलिए इसे उपचुनाव का परिणाम मान अनदेखी कर देना सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए हितकर नहीं होगा.


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टूट गया मिथक
बिहार में चुनाव कोई भी हो, अनुमानित परिणाम का आकलन आमतौर पर‌ जातीय समीकरण के आधार पर किया जाता है. अगड़ा-पिछड़ा भी एक मुद्दा बन जाता है. इस चुनाव को लेकर भी वैसा ही कुछ अनुमान लगाया गया था. पर, परिणाम ने उस मिथक को तोड़ दिया. निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित सहनी समाज के वंशीधर ब्रजवासी को कम या अधिक, सभी जातियों के स्नातक मतदाताओं के मत मिले. विशेष कर शिक्षकों के मत.

कम बड़ी उपलब्धि नहीं
उधर, मुख्य विपक्षी दल राजद को माय समीकरण के अलावा अपने उम्मीदवार गोपी किशन के स्वजातीय वैश्य मतों पर भरोसा था, तो जदयू के ईंजीनियर अभिषेक झा को एनडीए के आधार मतों से उम्मीद थी. दोनों को अचंभित कर देने वाली निराशा मिली. दूसरी तरफ जन सुराज पार्टी का कुछ भी दांव पर नहीं था. मुख्य मुकाबले में वही रही. उसके उम्मीदवार डा. विनायक गौतम को राजद और जदयू से अधिक मत मिल गये. राजनीति के टीकाकारों की समझ में उसके लिए यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है.

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