आस्था : क्यों बांधी जाती है मांगलिक आयोजनों में मौली
तापमान लाइव डेस्क
02 दिसम्बर, 2022
मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है. पूजा-पाठ व मांगलिक (Manglik) कार्यों के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो है ही, इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में भी बांधा जाता है. इसे बांधने का मंत्र यह है :
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल.
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दायें हाथ में मौली (Molly) बांधनी चाहिए. विवाहित स्त्रियों के लिए बायें हाथ में बांधने का नियम है. मौली बंधवाते समय जिस हाथ में उसे बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ (Hand) सिर पर होना चाहिए. मौली के सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए.
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पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन मौली बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार (Saturday) का दिन शुभ माना जाता है. हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नयी मौली बांधना उचित माना गया है. उतारी हुई पुरानी (Old) मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें. मौली इस रूप में रक्षा करती है. हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं. भाग्य व जीवन रेखा (Life Line) का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है.
इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है. इन मणिबंधों के नाम शिव (Shiva), विष्णु (Vishnu) व ब्रह्मा (Brahma) हैं. इसी तरह शक्ति (Shakti), लक्ष्मी (Laxmi) व सरस्वती (Saraswati) का भी यहां वास रहता है. जब हम मौली का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है.
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