विधान परिषद में भाजपा : किस सिर पर सजेगा नेता पद का ताज!
संजय वर्मा
29 मार्च 2023
PATNA : भाजपा नेतृत्व के राजनीति को चकित कर देने वाले निर्णय के तहत सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) बिहार प्रदेश भाजपा (BJP) के अध्यक्ष बन गये. विधिवत पदभार संभाल भी नहीं पाये थे कि सियासी गलियारे में सवाल तैरने लगा – विधान परिषद में भाजपा विधायक दल का नेता अब कौन होगा? यह सवाल इसलिए कि इस पद पर अभी सम्राट चौधरी ही हैं. पर, ‘एक व्यक्ति, एक पद’ की नैतिकता के आधार पर तत्काल नहीं, तो कुछ दिनों बाद उन्हें यह पद छोड़ देना पड़ेगा. इसी के मद्देनजर नये नेता के बारे में कयास लगाये जा रहे हैं. मामला बिहार (Bihar) का है. सामान्य समझ में नेता चयन का आधार योग्यता-क्षमता और अनुभव तो नहीं ही होगा. चुनावों (Election) में लाभ पहुंचाने वाले सामाजिक समीकरण को दृष्टिगत रख होगा. वह सामाजिक समीकरण क्या हैे? उसके दायरे में आने वाले विधान पार्षदों में से किस्मत किसकी खुल सकती है? चर्चा यहां उसी की हैे.
मिल सकती है प्राथमिकता
यह पूरी तरह साफ है कि भाजपा 2024 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Election) में बिहार में अधिकाधिक सीट हासिल करने की रणनीति पर चल रही है. पार्टी नेतृत्व का मानना है कि कुशवाहा (Kushwaha) समाज को जोड़ लेने भर से मंशा फलीभूत नहीं हो पायेगी. मुकम्मल सफलता के लिए अत्यंत पिछड़ा समाज कोे साधना होगा, नया सामाजिक समीकरण गढ़ना होगा. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष (State BJP President) का पद कुशवाहा समाज को मिल गया. विधानसभा (Vidhan Sabha) में विधायक दल के नेता पद पर सवर्ण हैं ही, राजग (NDA) की पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) का पद संभालने वाले अत्यंत पिछड़ा समाज को वर्तमान में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं मिला है. विधान परिषद में नेता का पद देकर उसकेे जुड़ाव को मजबूती प्रदान की जा सकती है. ऐसा हुआ, तो मौका हरि सहनी (Hari Sahani) को मिल जा सकता है. किसी कारणवश उन्हें मायूसी मिली, तो मुस्कान डा. प्रमोद कुमार चन्द्रवंशी (Dr. Pramod Kumar Chandravanshi) की खिल जा सकती है. वैसे, इस वर्ग में प्रो. राजेन्द्र गुप्ता (Prof. Rajendra Gupta) के रूप में एक बड़ा राजनीतिक (Political) चेहरा भी है जिसे नजरंदाज करना नेतृत्व (Leadership) के लिए आसान नहीं होगा.
इनके हाथ भी हैं मूंछ पर
संभावित नेता के तौर पर गोपालगंज (Gopalganj) से सांसद (MP) और फिर बिहार में मंत्री (Minister) रहे जनक राम (Janak Ram) का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है. तर्क यह कि 2019 के संसदीय चुनाव में सिटिंग रहने के बावजूद गोपालगंज से बेदखल कर दिये जाने पर उनको गुस्सा नहीं आया. सहज भाव से भाजपा (BJP) में बनेे रहे. इसका प्रतिदान विधान परिषद की सदस्यता और फिर मंत्री के पद के रूप में मिला. अब विधान परिषद में भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मिल जाये, तो शायद वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. वैसे, विश्लेषकों की समझ है कि जनक राम को अवसर नहीं मिलता है, तो उसका बड़ा कारण राज्यपाल (Governor) पद पर राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर (Rajendra Vishwanath Arlekar) की पदस्थापना को माना जायेगा. हालांकि, यह कोई राजनीतिक पदस्थापना नहीं है. तब भी बिहार (Bihar) में लोग आमतौर पर इसको उसी नजरिये से देखते हैं.
जेपी नड्डा से है नजदीकी
चर्चा इस बात की भी खूब हो रही है कि प्रदेश अध्यक्ष पद से डा. संजय जायसवाल (Dr. Sanjay Jaiswal) की रुखसती का असर वैश्य समाज के ‘समर्थन-समर्पण’ पर नहीं पड़े, इसके मद्देनजर अवसर उसी समाज को उपलब्ध कराया जा सकता है. इसके मद्देनजर दो नाम लिये जा रहे हैं. एक प्रो. राजेन्द्र गुप्ता (Prof. Rajendra Gupta) का तो दूसरा डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dilip Jaiswal) का. प्रो. राजेन्द्र गुप्ता का छात्र जीवन से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (All India Student Council), राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) और भाजपा (BJP) से गहरा जुड़ाव है. इनकी बिहार के उस सीमांचल में धरातली पकड़ है, जहां केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) भाजपा के प्रभाव को और अधिक विस्तार देने के लिए पसीना बहा रहे हैं. प्रो. राजेन्द्र गुप्ता की भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) से नजदीकी रहने की बात कही जाती है. इस दृष्टि से इनके नाम पर सहमति बन सकती है.
दिख न जाये ‘आतिथ्य’ का कमाल
प्रो. राजेन्द्र गुप्ता (Prof. Rajendra Gupta) के पक्ष में एक और बात है कि वह वैश्य समाज की उस कानू बिरादरी से हैं जिसे अत्यंत पिछड़ा वर्ग में जगह मिली हुई है. विश्लेषकों के मुताबिक उन्हें मौका देकर वैश्य समाज और अत्यंत पिछड़ा वर्ग, एक साथ दोनों को साध लिया जा सकता है. डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dilip Jaiswal) की भी भाजपा में ऊंची पहुंच है. किशनगंज (Kishanganj) में अमित शाह (Amit Shah) उनके आतिथ्य का सुख प्राप्त कर चुके हैं. ऐसे में अवसर उन्हें मिल जाये तो वह भी कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी. वैसे, डा. दिलीप जायसवाल को पहले से ही संगठन में बहुत जिम्मेवारी मिली हुई है. विधान परिषद में भाजपा विधायक दल के उपमुख्य सचेतक तो हैं ही. इसके अलावा सिक्किम (Sikkim) प्रदेश भाजपा के प्रभारी भी हैं.
शायद ही सुखायेगी ‘गोइठा में घी ’
पटना शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से लगातार पांचवीं जीत हासिल करने वाले प्रो. नवल किशोर यादव (Prof. Nawal Kishor Yadav) भी नेता पद की ख्वाहिश रखते हैं. रखनी भी चाहिये. लेकिन, भाजपा की राजनीति में जो नया सामाजिक समीकरण उभर रहा है उसमें, रणनीतिकारों की नजर में वह ‘उपयुक्त’ नहीं समझे जा रहे हैं. आधार संभवतः यह कि भाजपा (BJP) ने अलग-अलग समय में नंदकिशोर यादव (Nandkishor Yadav) और नित्यानंद राय (Nityanand Ray) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. भूपेन्द्र यादव (Bhupendra Yadav) को लंबे समय तक बिहार भाजपा (BJP) का प्रभारी बनाकर रखा. लेकिन, यादव समाज के जुड़ाव की दृष्टि से चुनावों में कोई खास लाभ नहीं मिला. यह स्थापित तथ्य है कि 14 प्रतिशत यादव (Yadav) मतों की अखंड आस्था लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के राजद (RJD) से जुड़ी है. भाजपा के अंदर ही चर्चा होती है कि जब नंदकिशोर यादव और नित्यानंद राय राजद के इस जनाधार में सेंध नहीं लगा सके तो फिर प्रो. नवल किशोर यादव की वकअत क्या है? उस समाज को जितना साधा जा सकता है, वर्तमान में वह नित्यानंद राय (Nityanand Ray) से पूरा हो जा रहा है. ऐसे में पार्टी नेतृत्व प्रो. नवल किशोर यादव को नेता पद पर आसीन कर ‘गोइठा में घी सुखाने’ की जोखिम क्यों उठायेगा?
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आड़े न आ जाये अनुभवहीनता
अत्यंत पिछड़ा वर्ग के हरि सहनी (Hari Sahani) और डा. प्रमोद कुमार चन्द्रवंशी (Dr. Pramod Kumar Chandravanshi) दोनों पहली बार विधान पार्षद बने हैं. दरभंगा (Darbhanga) जिला निवासी हरि सहनी का संगठन से लंबा जुड़ाव है. वह दरभंगा जिला भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं. 2005 में विधानसभा का चुनाव लड़े हैं. 2020 में केवटी (Kewati) विधानसभा क्षेत्र से उनकी भाजपा की उम्मीदवारी घोषित हो गयी थी. अंतिम क्षण में डा. मुरारी मोहन झा (Dr. Murari Mohan Jha) को मिल गयी. उसी के एवज में उन्हें विधान परिषद की सदस्यता मिली. डा. प्रमोद कुमार चन्द्रवंशी (Dr. Pramod Kumar Chandravanshi) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आये हैं. जहानाबाद (Jehanabad) के रहने वाले हैं. मगध (Magadh) अंचल में चन्द्रवंशी समाज की बड़ी आबादी है. कई निर्वाचन क्षेत्रों में उनकी निर्णायक की भूमिका रहतीं है. उस समाज पर प्रभाव जमाने और पूर्व मंत्री प्रेम कुमार (Prem Kumar) का विकल्प तराशने के ख्याल से इन्हें अवसर उपलब्ध कराया जा सकता है. उनकी इस अनुकूलता में अनुभवहीनता आड़े आ जाये, तो वह अलग बात होगी. वैसे, उनके नाम की चर्चा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के दावेदार के तौर पर भी हुई थी.
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