बिहार : मत कह क्या-क्या हुआ यहां…!
विजयशंकर पांडेय
08 अप्रैल 2023
PATNA : क्या किसी निम्नवर्गीय लिपिक (एलडीसी) की विश्वविद्यालय निरीक्षक (क्लास-वन) के पद पर सीधी नियुक्ति (Appointment) हो सकती है? वह भी अनुकंपा पर बहाल सामान्य वर्ग की निम्नवर्गीय लिपिक (Clerk) की विश्वविद्यालय निरीक्षक के आरक्षित पद पर? शायद नहीं. लेकिन, बिहार (Bihar) में ऐसा हुआ है. निवर्तमान कुलाधिपति फागू चौहान (Fagu Chauhan) ने राज्यपाल सचिवालय की विश्वविद्यालय शाखा में कार्यरत निम्नवर्गीय लिपिक आकांक्षा की विश्वविद्यालय निरीक्षक के पद पर नियुक्ति कर दी. राजभवन (Raj Bhawan) से निकलते-निकलते वह जो कई विस्मयकारी निर्णय कर गये, उनमें एक यह भी है. न नियमों का ख्याल रखा गया और न नैेतिक मूल्यों का. आकांक्षा को वेतन लेवल दो से उठाकर सीधे वेतन लेवल ग्यारह में नियुक्त कर दिया गया. देश का संभवतः यह पहला उदाहरण है जिसने संपूर्ण उच्च शिक्षा (Higher Education) जगत को अचंभित कर रखा है. नियुक्ति का निर्णय सवालों केे घेरे में है ही, नियुक्ति-पत्र पर भी अंगुलियां उठ रही हैं.
पटना में नहीं थे उस दिन
संबद्ध कागजात बताते हैं कि विश्वविद्यालय निरीक्षक के पद पर आकांक्षा की नियुक्ति 11 फरवरी 2023 की तारीख में हुई. यानी 12 फरवरी 2023 को फागू चौहान के तबादले की अधिसूचना जारी होने से एक दिन पूर्व. नियुक्ति-पत्र पर राज्यपाल सचिवालय के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंग्थू (Robert L Chongthu) के हस्ताक्षर हैं. उनके ही हस्ताक्षर से इसे जारी भी होना चाहिये था. पर, अंगुलियां यह कह उठायी जा रही हैं कि नियुक्ति-पत्र पर दर्ज तारीख को रॉबर्ट एल चोंग्थू पटना में नहीं थे. 11 एवं 12 फरवरी 2023 को पारिवारिक कार्य से अपने गृह प्रदेश मेघालय (Meghalaya) में थे. यानी अवकाश पर थे. यदि यह सच है, तो 11 फरवरी की तारीख में उनके हस्ताक्षर से जारी नियुक्ति-पत्र पर सवाल उठना लाजिमी है. उस तारीख को शनिवार होने को लेकर भी. यह सर्वविदित है कि शनिवार और रविवार को राज्य मुख्यालय (State Headquarters) के सरकारी कार्यालयों में साप्ताहिक अवकाश रहता है. राज्यपाल सचिवालय में भी यह प्रावधान लागू है. तो क्या उस दिन सिर्फ इस कार्य को संपादित करने के लिए कार्यालय खुला था?
नियमानुकूल नहीं
बहुचर्चित आरटीआई कार्यकर्त्ता रोहित कुमार (Rohit Kumar) ने संबंधित तमाम तथ्यों को पत्र के जरिये नवपदस्थापित राज्यपाल-सह-कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर (Rajendra Vishwanath Arlekar) के समक्ष रखा है. तथ्यों के अवलोकन से यह संदेह पैदा होता है कि विश्वविद्यालय निरीक्षक के पद पर आकांक्षा की नियुक्ति फागू चौहान के तबादले की अधिसूचना जारी होने के बाद हुई. पत्र में इससे जुड़ीं और भी ऐसी बातें हैं जिनसे नियुक्ति नियमानुकूल प्रतीत नहीं होती है. मसलन, कुलाधिपति कार्यालय में विश्वविद्यालय निरीक्षक के दो पद हैं. एक सामान्य के लिए है तो दूसरा आरक्षित है. सामान्य पद पहले से भरा हुआ है. भैरवनाथ सिंह (Bhairavnath Singh) पदस्थापित हैं. इससे स्पष्ट हैे कि 14 फरवरी 2023 से विश्वविद्यालय निरीक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षा की नियुक्ति आरक्षित पद पर हुई, जो नियम का उल्लंघन है. पारदर्शिता दिखने वाली बगैर कोई बिहित प्रक्रिया अपनाये नियुक्ति के लिए संचिका बढ़ी, राज्यपाल सचिवालय (Governor’s Secretariat) की स्थापना शाखा ने आरक्षित कोटि के पद पर अनारक्षित कोटि के व्यक्ति की नियुक्ति को ‘विधि संगत’ नहीं बताया. इसके बावजूद नियुक्ति हो गयी. इन बातों की चर्चा 26 फरवरी 2023 को कुलाधिपति को प्रेषित रोहित कुमार (Rohit Kumar) के पत्र में है.
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इतनी ‘मेहरबानी’ क्यों?
पत्र के मुताबिक15 फरवरी 2023 को तत्संबंधी कार्यालय-आदेश जारी हुआ. विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं समस्त विभागों का औचक निरीक्षण करने और प्रतिवेदन प्रस्तुत करने की संपूर्ण जिम्मेवारी आकांक्षा को दे दी गयी. कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक एवं महाविद्यालय निरीक्षक से समन्वय तथा सहयोग स्थापित कर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों, स्नातक, स्नातकोत्तर की परीक्षाओं के संचालन, परीक्षाफल (Result) के प्रकाशन की देखरेख, पर्यवेक्षण और मॉनिटरिंग की भी. मतलब विश्वविद्यालय निरीक्षक का लगभग सारा काम वही देखेंगी, संभालेंगी. पहले से पदस्थापित विश्वविद्यालय निरीक्षक भैरवनाथ सिंह (Bhairav Nath Singh) क्या करेंगे, कार्यालय आदेश में इसकी कोई चर्चा नहीं है. यहां सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है कि आकांक्षा (Akansha) पर इतनी ‘मेहरबानी’ क्यों की गयी? क्या इन कार्यों के संपादन के लिए भैरवनाथ सिंह सक्षम नहीं हैं?
पद के लायक है शैक्षणिक योग्यता?
राज्यपाल सचिवालय की विश्वविद्यालय शाखा में निम्नवर्गीय लिपिक के रूप में आकांक्षा की नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर हुई थी. निर्णय 02 अगस्त 2016 को स्थापना समिति की बैठक में हुआ था. आकांक्षा के पिता निर्मल कुमार सिंह (Nirmal Kumar Singh) राज्यपाल सचिवालय में अवर सचिव थे. 19 जनवरी 2015 को अचानक हृदयगति रुक जाने से उनका निधन हो गया. यहां यह जानना भी जरूरी है कि निर्मल कुमार सिंह की भी नियुक्ति अनुकंपा पर ही हुई थी. उनके पिता मेदनी प्रसाद सिंह (Medani Prasad Singh) इसी कार्यालय में कार्यरत थे. उनका भी असामयिक निधन हो गया था. निर्मल कुमार सिंह की विधवा पूनम कुमारी (Punam Kumari) की शैक्षणिक योग्यता शायद निम्नवर्गीय लिपिक पद के लायक नहीं थी. उस वक्त उनकी पुत्री आकांक्षा 18 वर्ष की थी. शैक्षणिक योग्यता इंटर की थी. साथ में एडवांस डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन की भी. उसका भाई अनिकेत आनंद (Aniket Anand) तब 16 वर्ष का था. अवसर आकांक्षा को मिल गया. निवर्तमान कुलाधिपति फागू चौहान (Fagu Chauhan) ने विश्वविद्यालय निरीक्षक के पद पर नियुक्ति उसी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर कर दी या बीच के वर्षों में आकांक्षा ने उस लायक शैक्षणिक योग्यता (Educational qualification) हासिल कर ली, यह नहीं मालूम.
भ्रष्टाचार के मामले में हैं आरोपित
सरकार (Government) का नियम कहता है कि अनुकंपा पर बहाली वर्ग चार और वर्ग तीन में ही होगी. इसका दोबारा लाभ पदोन्नति अथवा संवर्ग परिवर्तन में नहीं मिलेगा. आकांक्षा की विश्वविद्यालय निरीक्षक के रूप में नियुक्ति में अनुकंपा का जिक्र नहीं है. मूल पद पर बहाली का आधार ‘अनुकंपा’ थी. इसलिए इसे ‘संवर्ग परिवर्तन’ के रूप में देखा और समझा जा रहा है. महत्वपूर्ण बात यह भी कि आकांक्षा का नाम उन 27 लोगों में शामिल है जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. निगरानी अन्वेषण ब्यूरो द्वारा इन सबके खिलाफ मांगी गयी कार्रवाई की अनुमति लंबे समय से कुलाधिपति कार्यालय में लंबित है. इन तमाम तथ्यों को देखते हुए इसे निवर्तमान कुलाधिपति की ‘करामात’ ही माना जा सकता है. बहरहाल, नये कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर (Rajendra Vishwanath Arlekar) ने पूर्व के कुछ निर्णयों की समीक्षा करने की बात कही है. उसके दायरे में आकांक्षा का मामला भी आयेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.
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