पटनाः इसलिए अंतर्धान हो गये थे रामचंद्रजी!
विशेष प्रतिनिधि
14 अप्रैल 2023
PATNA : बहुत लोग जानना चाह रहे होंगे कि दिल्ली-पटना का मोह त्याग कर रामचंद्रजी (Ramchandraji) कहां थे औेर क्या कर रहे थे? कभी-कभी राज्य के दूसरे हिस्से में नजर आ जाते थे, पर दिल्ली (Delhi) का रास्ता एक तरह से भूल ही गये थे. खरमास से पहले के घनघोर लगन में भी पटना में कभी कहीं नजर नहीं आये. ऐसे में उनसे जुड़े या बिछुड़े हुए लोगों के मन में यह सहज जिज्ञासा होती थी कि आखिर रामचंद्रजी कर क्या रहे हैं. इस सवाल (Question) का जवाब (Answer) आम आदमी नहीं दे रहा है. गांव के लोग दे रहे हैं. उनके ग्रामीण सहज भाव से बता देंगे-रामच्रंद्रजी उन दिनों ज्वाला निकाल रहे थे. धर्म-कर्म की भाषा में कहिये तो ज्वाला प्रकट कर रहे थे. न जानने वाले जिज्ञासु सवाल पूछ सकते हैं कि आखिर कैसे ज्वाला प्रकट कर रहे थे. इसका भी जवाब है.
गांव के टोले में मंदिरों का टोला
सबको पता है कि रामचंद्रजी ने ऐतिहासिक खंडहर वाले जिले के अपने गांव के टोले में मंदिरों का निर्माण कराया है. सभी देवी-देवता विद्यमान हैं. इसलिए कि पता नहीं कौन देवता (God) प्रसन्न होकर इच्छा पूर्ति का वरदान दे दें. ढेर सारे देवताओं की पूजा (Prayer) करने का शुद्ध लाभ यह होता है कि एकाध नाराज भी हुए तो दूसरे-तीसरे देवता प्रसन्न होकर क्षतिपूर्ति कर देते हैं. रामचंद्रजी ने यही सोचकर कई मंदिरों (Temples) का निर्माण कराया था. अब आइये, असली बात पर. मतलब ज्वाला निकालने या प्रकट होने पर. ऐसा है कि रामचंद्रजी अपने बनाये गये मंदिरों में पूजा-पाठ के अलावा नियमित रूप से हवन भी करते हैं.
अयोध्या में मंदिर निर्माण के नाम पर एक पार्टी देश के अलावा कई राज्यों में सरकार चला रही है. आप ढेर सारा मंदिर बना लें तो राज्य की सरकार को चला लेना कौन बड़ी बात है! वैसे, कई समझदार लोग मंदिर बना कर सरकार बनाने के आइडिया से सहमत नहीं हैं. रामचंद्रजी के साथ के लोग उदाहरण देकर समझा रहे हैं कि मंदिर का फंडा उनके लिए उपयुक्त नहीं है.
तो यह है उनकी मनोकामना
खूब मन लगाकर हवन करते हैं तो हवन कुंड से ज्वाला निकलने लगती है. रामचंद्रजी ज्वाला के साथ फोटो बनवाते हैं और उसे फेसबुक (Facebook) पर डाल देते हैं. पिछले पूर्णिमा को तो इतनी तीव्र ज्वाला प्रकट हो रही थी कि हवन करनेवाले पंडितजी ने कह दिया कि सभी मनोकामनाएं पूरी हो जायेंगी. अब उनकी मनोकामना के बारे में भी सुन लीजिये. उनकी मनोकामना बस इतनी भर है कि किसी तरह साहब की कुर्सी पर विराजमान हो जायें. क्योंकि उन्हें राज चलाने आता है.
राज की बात है …
राज चलाने का अनुभव है. आखिर, साथ रहने के दौरान वही राज चलाते थे. राज की बात यह भी है कि उन्होंने मंदिरों का निर्माण भी राज चलाने के लिए किया है. सलाह देने वालों ने भगवा पार्टी का फार्मूला समझा दिया था-देखिये, अयोध्या (Ayodhya) में मंदिर निर्माण के नाम पर एक पार्टी देश (Country) के अलावा कई राज्यों में सरकार चला रही है. आप ढेर सारा मंदिर बना लें तो राज्य (States) की सरकार को चला लेना कौन बड़ी बात है! वैसे, कई समझदार लोग मंदिर बना कर सरकार बनाने के आइडिया से सहमत नहीं हैं. रामचंद्रजी के साथ के लोग उदाहरण (Example) देकर समझा रहे हैं कि मंदिर का फंडा उनके लिए उपयुक्त नहीं है.
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दान से निकली दुर्दशा
सबसे पहले राम मंदिर (Ram Mandir) के निर्माण में एक लाख ग्यारह हजार रुपये का दान दिया था. उसी दिन से दुर्दशा की शुरुआत हो गयी. मंदिर के लिए भूमि पूजन के बाद ही हालत खराब होती गयी. मंदिर का निर्माण जैसे ही पूरा हुआ, राज्यसभा (Rajya Sabha) की मेंबरी चली गयी. साथ-साथ मंत्रालय भी चला गया. गुजरात (Gujarat) वाले शाहजी से उम्मीद बंधी थी. वहां से भी कुछ हासिल नहीं हुआ. वैसे, किस्मत के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है. फिलहाल रामचंद्रजी के पास तो ज्वाला प्रकट कराने का ही काम रह गया है.
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