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पटना : साहब तो साहब, मैडम भी कम नहीं!

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विशेष प्रतिनिधि
16 अप्रैल2023

PATNA : अपनी सरकार के लिए लोग यूं ही नहीं जान लगा देते हैं. सरकार (Government) के फायदे ही फायदे हैं. उसमें साहब और उनकी बीवियों की हर तरह की शौक पूरी हो जाती है. सरकार का दो हिस्सा होता है. एक मंत्री (Minister) वाला और दूसरा अफसर (Officer) वाला. दूसरे वाले को साहब कहा जाता है. असली सरकार का मजा यही हिस्सा लेता है. खासियत यह होती है कि पकड़े जाने की नौबत आने पर यह फरीक बेदाग बच जाता है. मंत्री वाला फरीक बदनाम होता है और बाज मौके पर जेल भी चला जाता है. बिहार (Bihar) में ऐसे उदाहरणों की भरमार है. अपने सुप्रीमो और उनके कई मंत्री रहे लोग इसके गवाह हैं. असल में यह किस्सा तीन साहबों की बीवियों का है.

रेल से जाना, हवाई जहाज से लौट आना
एक साहब प्रशासनिक महकमे के सबसे बड़े ओहदे से रिटायर हुए. वर्षों पहले रिटायर हो चुके हैं. फिर भी शासन में इकबाल बुलंद है. दूसरे साहब पुलिस महकमा के प्रधान रहे हैं. ये भी रिटायर हो चुके हैं. तीसरे साहब अभी सेवा में हैं और पूरा माल खींच रहे हैं. किस्सा यह कि इन तीनों साहबों की बीवियां आपस में पक्की दोस्त हैं. शौक भी एक जैसा है-रेलगाड़ी से दिल्ली (Delhi) जाना. वहां कुछ दिन रह कर हवाई जहाज से पटना लौट आना. आप कहेंगे कि ये तो अजीब शौक है. भला हवाई जहाज (Aeroplane) में सफर करने की औकात है तो रेलगाड़ी (Train) को क्यों तकलीफ दे रही हैं. अगर रेलगाड़ी का सफर दिल्ली जाने के लिए करती हैं तो लौटने के लिए क्यों हवाई जहाज का सहारा लेती हैं?

शौक नहीं, मजबूरी
सवाल बहुत वाजिब है. क्या पटना से दिल्ली रेल में जाना इन सबकी कोई मजबूरी है? यहां आकर सही पकड़ रहे हैं. सचमुच, रेल का सफर ये तीनों शौक से नहीं, मजबूरी में करती हैं. क्योंकि जाने के समय इनके पास रुपयों से भरा झोला होता है. सप्ताह या पखवारे में इनके साहबों की जो अतिरिक्त

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कमाई होती है, वही उनके झोले में रहता है. अब हवाई जहाज के साथ दिक्कत यह है कि एयरपोर्ट पर एक्सरे मशीन लगी रहती है. मशीन में झोला के जाते ही गांधी बाबा सत्य का पाठ पढ़ने लगते हैं. पटना रेलवे स्टेशन पर यह झंझट नहीं रहता है. झोला में आप क्या लेकर जा रहे हैं, उससे स्टेशन वालों को कोई मतलब नहीं रहता है.

बहुत आसान है इनकी पहचान
इनके साथ साहबों के लिए आवंटित पुलिस के जवान भी दिल्ली तक जाते हैं. ये दिल्ली जाती हैं. रुपये को ठिकाने लगाती हैं और पहले के निवेश का हिसाब-किताब करके पटना लौट आती हैं. फिर अगले सफर की तैयारी शुरू होती है. सरकार बदल जाये तो इनकी पहचान भी हो सकती है. कुछ खास नहीं करना है. एक ही पीएनआर पर खास रेलगाड़ी में निश्चित अंतराल पर यात्रा करने वाली तीन महिलाओं की सूची निकाल लेनी है. बस, उसी से पता चल जायेगा कि सुशासन बाबू के करीबी अफसर क्या गुल खिला रहे हैं. पता लगाने का दूसरा उपाय भी है. इन तीन साहबों की सुरक्षा में तैनात बिहार पुलिस के जवानों के मोबाइल के लोकेशन से भी पता चल सकता है कि आखिर महीने में दो या तीन बार क्या करने दिल्ली जाते हैं. फिलहाल तो यहां अपनी सरकार है. कौन किसकी जांच करेगा!

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