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पुनौरा धाम : जानकी मंदिर के प्रति ऐसी उदासीनता क्यों?

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29 अप्रैल 2023 को है जानकी नवमी. यानी सीता नवमी. इस अवसर पर सीता प्राकट्य स्थल पवित्र पुनौरा धाम में परंपरा के अनुरूप सात दिवसीय भव्य जानकी उत्सव आयोजित होगा. तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य की रामकथा होगी. अन्य बड़े-बड़े लोग भी शिरकत करेंगे. पर, पुनौराधाम के हालात सुधारने की चिंता शायद ही किसी को होगी. इस धाम की धार्मिकता, पवित्रता, ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता पर आधारित आलेख की यह पहली किस्त है:


महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
22 अप्रैल, 2023

SITAMARHI : भारतीय संस्कृति में नारी (Woman) की सर्वोच्चता सदा से सर्वस्वीकार्य है. जगत जननी आदि शक्ति स्वरूपा के रूप में श्रेष्ठता स्थापित है. श्रुतियों, स्मृतियों और पुराणों में आत्म उन्नति और कल्याण के लिए आधारभूत तत्व ‘ज्ञान’, ‘ऐश्वर्य’ तथा ‘शौर्य’ की अधिष्ठात्री नारी रूपों में प्रकट देवियों को ही माना गया है. संतान को संस्कार देते समय वह ‘सरस्वती’ स्वरूपा दिखती हैं तो गृह प्रबंधन की दक्षता-कुशलता में ‘लक्ष्मी’ रुपेण नजर आती हैं. अन्याय व अत्याचार के प्रतिकार के लिए वही नारी ‘दुर्गा’ के रूप में प्रकट हो जाती हैं. यही विधाता प्रदत्त विशिष्टता है कि सनातन धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य नारी (पत्नी) की सदेह सहभागिता के बगैर अपूर्ण माना जाता है. हर धार्मिक अनुष्ठान और शुभ कार्य में परम्परानिष्ठ भारतीय आचार-विचार व संस्कार के अनुरूप ‘पत्नी’ का साथ होना अनिवार्य है. मनु स्मृति में कहा गया है:
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता।
यत्रेतास्तु न पूजयन्ते
सर्वास्तफला क्रिया।।
मतलब जहां नारी का समादर होता है वहां देवता प्रसन्न रहते हैं और जहां ऐसा नहीं है वहां समस्त यज्ञादि क्रियाएं व्यर्थ होती हैं.

नहीं रखा गया इसका ख्याल
इस सामाजिक मान्यता को दृष्टिगत रख सीता (Sita) वनवास के दौरान दशरथ पुत्र अयोध्या नरेश राम जब अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे तब पत्नी की अनुपस्थिति के पूर्णता में बाधक न बनने देने के लिए यज्ञपीठ में उनकी (सीता) मूर्ति स्थापित कर दी गयी थी. पर, अयोध्या (Ayodhaya) में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण और सरयू तट पर भगवान राम (Ram) की मूर्ति स्थापना के मामले में इसका तनिक भी ख्याल नहीं रखा गया. यह अकाट्य है कि सीता के बिना राम की कल्पना नहीं की जा सकती. भगवान राम का स्मरण-उच्चारण आमतौर पर लोग सियापति राम, सियावर राम, सियाराम, सीताराम… जय श्रीराम आदि के तौर पर ही करते हैं. जयश्री राम में ‘श्री’ सीता ही हैं. सिर्फ राम का नाम लोग शायद ही लेते हैं. इस परिप्रेक्ष्य में अयोध्या में सरयू तट (Saryu Bank) से जल की लहरों को निहारती मर्यादा पुरुषोत्तम राम की एकांकी मूर्ति को लोग किस दृष्टि से देखेंगे? यही न कि सीता वनवास से लौटी ही नहीं! लौटी होतीं तो राम का यह एकाकीपन नहीं दिखता. सीता की प्राकट्य भूमि (जन्मभूमि) पुनौरा (सीतामढ़ी) में भव्य जानकी मंदिर (Mndir) के निर्माण में दीर्घ उदासीनता भी बहुत कुछ इस अवधारणा को पुष्ट करती है.

बार-बार उठ रहा यह मुद्दा
5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण की बाबत भूमि पूजन के बाद बिहार, विशेषकर मिथिलांचल (Mithilanchal) में यह मुद्दा बार-बार उठ रहा हैै कि इस रूप में इतिहास रचनेवालों का ध्यान पुनौरा धाम (Punaura Dham) की ओर भी क्यों नहीं जा रहा है? भव्य राम मंदिर की तरह ही जानकी मंदिर के निर्माण की उच्चस्तरीय पहल क्यों नहीं हो रही है? भारतीय संस्कृति में स्त्री सदा अग्रणी रही है. इसके मद्देनजर अयोध्या में मंदिर निर्माण से पहले सीता प्राकट्य स्थल पर भव्य जानकी मंदिर (Janaki Mndir) का निर्माण होना चाहिये था. बिहार की उत्कट अभिलाषा थी कि पहले नहीं तो कम से कम एक साथ ही अयोध्या में राम मंदिर और पुनौरा में सीता मंदिर के शिलान्यास के साथ निर्माण का कार्य शुरू होता. परन्तु, वैसा नहीं हुआ. यह हर कोई जानता-समझता है कि भगवान राम को ससुराल से कुछ अधिक आत्मीय लगाव था. जगत जननी सीता से अगाध प्रेम था. इतना कि जब-जब वियोग हुआ वह रो पड़े. वाल्मीकि कृत रामायण (Ramayan) में उनके तीन बार रोने की चर्चा है. पहली बार जब रावण (Rawan) ने सीता का हरण कर लिया. दूसरी बार जब उन्होंने अनुज लक्ष्मण (Laxman) को सीता को जंगल में छोड़ आने के लिए कहा और तीसरी बार जब सीता क्षोभ में रोती हुईं धरती में समा गयीं.


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सीता के बिना अधूरा
मिथिला (Mithila) की धारणा है कि अब वह चौथी बार रो रहे होंगे, जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के मामले में सीता की उपेक्षा पर. रामचरित मानस (Ramcharit Manas) के अरण्य कांड और किष्किंधा कांड में राम का सीता के प्रति अनुराग और विरह की वेदना का जैसा वर्णन है, उससे भी स्पष्ट होता है कि सीता के बिना राम खुद को अधूरा महसूस करते थे. अरण्य में विचरण करते लक्ष्मण से वह कहते हैं-
नारि सहित सब खग मृगवृंदा
मानहू मोरि करत हहिं निंदा.
इससे उनके हृदय की पीड़ा का आभास मिलता है. इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि हमारे पितृ सत्तात्मक समाज ने त्रेता युग से आज तक राम को भगवान (God) मान जो मान-सम्मान और हृदय में स्थान दिया वैसा राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाली पृथ्वी पुत्री सीता माता को नहीं मिला. यही वह मानसिकता है जिसने सीता (Sita) की दुर्दशाग्रस्त प्राकट्य भूमि-पुनौरा धाम (Punaura Dham) के पुनरुद्धार को अवरुद्ध कर रखी है.

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