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क्या कहेंगे, आस्था के इस सैलाब को!

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राजकिशोर सिंह
28 जनवरी, 2023

DEOGHAR : अथाह आस्था से जुड़े श्रावणी मेला (Shravani Mela), बसंत पंचमी उत्सव (Basant Panchami) और शिवरात्रि महोत्सव (Shivratri Mahotsava) देवघर की धार्मिकता से जुड़ी संस्कृति है. पीढ़ियों से चली आ रही पवित्र परंपरा है. इन सबका आयोजन हर साल होता है. यह अलग बात है कि दो वर्षीय कोरोना (Corona) संक्रमण काल में यह परंपरा पंडा-पुरोहितों (Panda-Purohiton) की विवशता भरी औपचारिकताओं में सिकुड़ी-सिमटी रही. आम श्रद्धालुओं की कोई सक्रियता-सहभागिता नहीं रही. इस साल पावन सावन में यह दो वर्षीय सन्नाटा टूटा. कांवर यात्रा निकली, श्रावणी मेला (Shravani Mela) का आयोजन हुआ. लाखों लोगों ने बाबा मंदिर में जलाभिषेक किया. परंपरा फिर से जीवंत हो उठी. सुस्त-सुप्त सुलतानगंज-देवघर-बासुकीनाथ के लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर लंबे यात्रा पथ में हुए ‘बोल बम’ के अनवरत उद्घोष ने जनभावना को पुनर्जागृत कर दिया.


मिथिलांचल की यह धारणा रही है कि दामाद के घर में रहना और खाना निषेध है. इसी समझ के तहत अधिकतर श्रद्धालु देवघर के किसी होटल या विश्रामगृह में पड़ाव नहीं डालते हैं. खुले मैदान या सड़कों के किनारे जम जाते हैं. खुद खाना बनाते और खाते हैं.


धान की बाली और घर का घी
बसंत पंचमी (Basant Panchami) उत्सव का महत्व शिवरात्रि महोत्सव (Shivratri Manotsava) से जुड़ा है. उस दिन मुख्य रूप से उत्तर बिहार के सनातनी श्रद्धालु द्वाद्वश ज्योर्तिलिंग पर जलाभिषेक के साथ अपने खेत में उपजे धान (Paddy) की पहली बाली और घर में तैयार घी (Ghee) के रूप में भोले बाबा को तिलक (Tilak) चढ़ाकर फाल्गुन कृष्ण चतुदर्शी को बारात लेकर आने का न्यौता देते हैं. सनातन विरोधी इसे अंधविश्वास कह सकते हैं. परन्तु, वास्तव में यह पुश्तैनी संस्कार रूपी श्रद्धा है जो खुद-ब-खुद पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों के हृदय (Heart) में जगह बना ले रही है.

उमड़ पड़े लाखों लोग
इस साल 18 फरवरी को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) है. भगवान शिव (Shiv) का तिलक अभिषेक हो गया है. मिथिलांचल (Mithilanchal) और नेपाल (Nepal) के तराई क्षेत्र से दो लाख से अधिक की संख्या में सुलतानगंज (Sultanganj) से पवित्र गंगाजल (Gangajal) भर परंपरागत ‘मैथिली कांवर’ लिये पांव-पैदल आये श्रद्धालुओं ने 26 जनवरी 2023 को बसंत पंचमी के दिन महादेव (Mahadev) ज्योर्तिलिंग पर जलार्पण एवं पूजा-अर्चना के बाद अबीर-गुलाल से सराबोर हो तिलकोत्सव मनाया. इस क्षेत्र विशेष के लोगों की मान्यता है कि देवी पार्वती (Parvati) पर्वतराज हिमालय (Himalaya) की पुत्री हैं . इसलिए भगवान शंकर (Shankar) को वे दामाद मानते हैं.


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नहीं रहते होटल या विश्रामगृह में
आधुनिकता में रमे लोग भले अब इसे नहीं मानते हों, मिथिलांचल की यह धारणा रही है कि दामाद (Son in Law) के घर में रहना और खाना निषेध है. इसी समझ के तहत अधिकतर श्रद्धालु देवघर (Deoghar) के किसी होटल (Hotel) या विश्रामगृह में पड़ाव नहीं डालते हैं. खुले मैदान या सड़कों के किनारे जम जाते हैं. खुद खाना बनाते और खाते हैं. बहरहाल, तिलक चढ़ा लोग लौट गये हैं. शिवरात्रि (Shivratri) के दिन उस क्षेत्र के लोगों का फिर जुटान होगा. उससे पहले माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima) के दिन भी ऐसी ही आस्था उमड़ी दिखेगी, उस दिन बाबा मंदिर परिसर में मां जगत जननी की विशेष पूजा होती है. ऐसा पंडा-पुरोहितों का कहना है.

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