आशा पारेख : कोरे कागज पे लिख दे सलाम बाबू…
सत्येन्द्र मिश्र
23 अप्रैल, 2023
Mumbai : हिन्दी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख (asha Parekh) अपने जमाने में खूबसूरती और अभिनय की दिलकश अदाओं से लाखों प्रशंसकों के दिलों की धड़कन बनी रहती थीं. अपने चुलबुले अंदाज की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहनेवाली इस प्रतिष्ठित अभिनेत्री को 2020 का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (Dada Saheb Phalke Award) मिलने से उनके तमाम प्रशंसकों-शुभचिंतकों एवं सिनेमा प्रेमियों को सुखद अनुभूति हुई है. फिल्म जगत (Bollywod) का यह सर्वोच्च पुरस्कार हर साल प्रदान किया जाता है. 30 सितम्बर 2022 को आयोजित राष्ट्रीय फिल्म समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) ने आशा पारेख को यह पुरस्कार प्रदान किया. इसे उनके 80वें जन्म दिन पर अनुपम उपहार माना गया.
80वें जन्म दिन पर मिला
अनुपम उपहार
2021 में 2019 का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्रसिद्ध अभिनेता रजनीकांत (RajniKant) को मिला था. यहां गौर करनेवाली बात यह है कि 37 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद इस बार किसी अभिनेत्री को यह सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. वैसे, 1989 में प्रसिद्ध पार्श्व गायिका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ था. इससे पहले 1983 में अभिनेत्री दुर्गा खोटे को सम्मानित किया गया था. दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख का चयन आशा भोंसले, हेमा मालिनी, उदित नारायण झा, पूनम ढिल्लो और टीएस नागभरण की सदस्यता वाली दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समिति ने किया था.
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का
अवार्ड भी मिला
आशा पारेख साठ और सत्तर के दशक की सर्वाधिक चर्चित अभिनेत्रियों में एक रही हैं. सिर्फ हिन्दी ही नहीं, पंजाबी, गुजराती और कन्नड़ फिल्मों में भी उन्होंने काम किया था. बाद के दिनों में अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी लांच की और टीवी शोज भी बनाये. उन्हें 1992 में पद्मश्री (Padmashree )से सम्मानित किया गया था.1998 से 2001 तक केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) (Senasar Board) की अध्यक्ष रहीं. इस बोर्ड की वह
प्रथम महिला प्रमुख बनी थीं. ‘कटी पतंग’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड मिला था. आशा पारेख ने 95 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. ‘दिल दे के देखो’, ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘कारवां’,‘आ न मिलो सजना’, ‘कन्यादान’, ‘आया सावन झूम के’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ आदि खूब चली.
‘मां’ से हुई थी करियर की
शुरुआत
उनके करियर की शुरूआत बाल कलाकार के तौर पर हुई थी. तब उन्हें बेबी आशा पारेख के नाम से जाना जाता था. बात 1952 की है. प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक विमल रॉय ने स्कूल के एक कार्यक्रम में उन्हें डांस करते देखा. प्रभावित हो अपनी फिल्म ‘मां’ में काम दे दिया. उस वक्त वह सिर्फ 10 साल की
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कुदरत ने बनाया होगा फुर्सत से…
थीं. आशा पारेख के करियर के संदर्भ में एक बात की चर्चा लोग खूब करते हैं. आशा पारेख ने विजय भट्ट की फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में भूमिका के लिए उनसे संपर्क किया था. विजय भट्ट ने उनकी प्रतिभा को खारिज कर दिया. लेकिन, सप्ताह भर बाद ही फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन (Nasir Hussain) ने ‘दिल दे के देखो’ में अभिनेत्री की भूमिका दे दी. फिल्म सुपरहिट हुई.
‘दिल दे के देखो’ पर दर्शकों का
दिल आ गया
उसी फिल्म ने आशा पारेख को स्टार बना दिया. उसके बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा. कई फिल्मों में यादगार भूमिका अदा करने वाली आशा पारेख की निजी जिंदगी में तन्हाइयों का ही बसेरा रहा. उन्होंने शादी नहीं की. फिल्म निर्माता नासिर हुसैन के साथ प्यार परवान चढ़ा, बात शादी तक नहीं पहुंच पायी. आशा पारेख का कहना रहा कि ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि वह किसी के घर को तोड़ना नहीं चाहती थीं. नासिर हुसैन शादीशुदा थे. दो बच्चे भी थे. उनके परिवार के साथ रिश्ता ठीकठाक रहा, परन्तु वह उन्हें उनके परिवार से अलग नहीं करना चाहती थीं. इसलिए शादी नहीं की.
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