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महागठबंधन की सरकार : रूखा सूखा ही लिखा है उनकी किस्मत में !

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विशेष प्रतिनिधि
28 अप्रैल, 2023
PATNA : प्रयोग वैज्ञानिक हो या सामाजिक अथवा राजनीतिक, सबके लिए फार्मूले की जरूरत होती है. फार्मूला सही हो तो प्रयोग का परिणाम भी सही आता है. फार्मूला (Formula) गलत हुआ तो परिणाम खराब हो जाता है. समझदार लोग या वैज्ञानिक किसी एक प्रयोग के विफल होने से परेशान नहीं होते हैं. दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवा फार्मूला का इस्तेमाल कर मनमाफिक परिणाम हासिल कर लेते हैं. बिहार (Bihar) की राजनीति (Politics) में लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने एक फार्मूला बनाया था. उस आधार पर प्रयोग किया. वह सफल रहा. याद कीजिये. राजपाट के दिनों में वह बड़ी संख्या में मंत्री बनाने के लिए मजबूर हुए थे. वैसा नहीं करते तो उनकी सरकार धड़ाम से गिर जाती.

तो यह है फार्मूला
लालू प्रसाद ने जंबो मंत्रिपरिषद बनाया. विधायक लोग बहुत खुश हुए. ऐसे विधायक जो मंत्री नहीं बन पाये थे, उन्हें बोर्ड और निगम में बिठा दिया गया. लालू प्रसाद इत्मीनान हो गये कि अब कोई भाग कर इधर-उधर नहीं जायेगा. हुआ भी वैसा ही. पांच साल तक सरकार चली. लालू प्रसाद ने मंत्रियों को


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अपनी मर्जी से हांकने के लिए कौन-सा फार्मूला अपनाया. बेकाबू होने लायक मंत्रियों के विभाग में भरोसे के अफसरों (Officers) को बिठा दिया. मंत्री जिस किसी फाइल (File) में गड़बड़ी करते थे, विभागीय सचिव उस पर अपना दस्तखत नहीं करते थे. फाइल अंततः सुप्रीमो के पास चली जाती थी. वह मन लायक फैसला कर लेते थे.

नहीं मिला कभी सुख
इस प्रक्रिया में कई मंत्री ऐसे रह गये, जिन्हें पूरे कार्यकाल में तबादले से ‘अर्जन’ का सुख कभी नहीं मिला. क्योंकि, सचिव के पास जून महीने की आखिरी तारीख तक फाइल पड़ी रह जाती थी. वह अगले दिन लालू प्रसाद के पास चली जाती थी. लालू प्रसाद सत्ता से अलग हो गये. उनकी सत्ता के उत्तराधिकारी बने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने उस फार्मूला को बेहिचक अपना लिया. वह उसी फार्मूले से शासन चला रहे हैं. खासकर दूसरे दलों के मंत्रियों के विभाग में ऐसे ही सचिव रखे गये हैं, जो विभागीय मंत्री के बदले मुख्यमंत्री के आदेश का पालन करते हैं. आज भी ढेर सारे मंत्रियों (Miniters) के विभागों का फैसला इन्हीं सचिवों (Secretary) के माध्यम से नीतीश कुमार करते हैं.

नहीं आ रहा मजा
आम मंत्रियों की बात छोड़ दीजिये. भाजपा कोटे के उपमुख्यमंत्रियों का यह अरमान कभी नहीं पूरा हो सका कि कम से कम उनका कोई एक भी आदेश सचिव मान लें. बेचारे अरमान लिये सत्ता से विदा हो गये. उनकी तुलना में वर्तमान वाले उपमुख्यमंत्री थोड़ा खुशनसीब हैं. इसकी खास वजह है. लालू प्रसाद की पार्टी के बिना नीतीश कुमार की सरकार नहीं चल सकती है. इसलिए इस फार्मूले से उन्होंने इन्हें करीब-करीब मुक्त कर रखा है. लेकिन, समय का चक्र चला. लेकिन, महागठबंधन की सरकार में मंत्री बनाये गये अन्य नेताओं के साथ कमोबेश वही फार्मूला अपनाया जा रहा है. इस कारण उन्हें मजा नहीं आ रहा है. दो लोगों के लिए तो शुरुआत ही खराब हुई.

यह है असली कारण
अब मंत्री बने नेताओं के बेमजा होने का असली कारण समझिये. केंद्र में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की व्यवस्था यह है कि सभी मंत्रालयों में उनके खास अधिकारी तैनात हैं. कोई भी फाइल पहले उस अधिकारी के पास जाती है. वह फाइल को नरेन्द्र मोदी के चश्मे से देखता है. उसकी नजर में अगर सब ठीक है, तभी वह फाइल मंत्री तक अंतिम निर्णय के लिए जा पाती है. अगर गड़बड़ी अधिक है तो फाइल सीधे पीएमओ को भेज दी जाती है. कुल मिला कर यह प्रक्रिया किसी फाइल को गतालखाता में पड़े रहने के लिए मजबूर कर देती है.

नहीं कर पाते विरोध
इस प्रक्रिया में केंद्र के किसी मंत्री को अपवाद में नहीं रखा गया है. लगभग यही प्रक्रिया राजद कोटे के मंत्रियों के विभागों में अपनायी जा रही है. सभी विभागों के लिए सरकारी आप्त सचिवों की नियुक्ति कर दी गयी है. मंत्रीजी चाह कर भी अपने मन से कोई निर्णय नहीं ले पाते हैं. कुल मिला कर मंत्री के ऊपर सुपर सेक्रेटरी बिठा दिये गये हैं. कुछ विभागों में तो ये सुपर सेक्रेटरी इतने पावरफुल हो गये हैं कि समझदार लोग पैरवी के लिए सीधे इन्हीं के पास पहुंच जाते हैं. मंत्री विरोध तक नहीं कर पाते हैं. विरोध करने पर मंत्री पद भी चला जायेगा.

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