जाति आधारित गणना : हार यह नीतीश कुमार की हठधर्मिता की है!
बिहार में जाति आधारित गणना का मामला उलझ गया-सा दिखता है. उससे संबंधित किस्तवार आलेख की यह पहली कड़ी है:
महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
05 मई 2023
PATNA : जातीय जनगणना के कथित छद्म रूप जाति आधारित गणना पर पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) की अंतरिम रोक राज्य की वर्तमान सत्ता की ‘आदतन हठधर्मिता’ की हार है. हो सकता है, अंतिम सुनवाई में इस पर वैधानिकता की मुहर लग जाये, पर फिलहाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और उनकी सत्ता के घोषित उत्तराधिकारी उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) की तो किरकिरी हो ही गयी है. अंतरिम रोक के मुख्यतः तीन कानूनी आधार बताये गये हैं. पहला यह कि जनगणना (Census) का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार (Central Government) को प्राप्त है. नाम भले जाति आधारित गणना (Caste Based Enumeration) दिया गया हो, पर मूलतः यह जातीय जनगणना (Cast Census) ही है. दूसरा यह कि सर्वेक्षण कराने का अधिकार राज्य सरकार को तो है, पर इसके लिए कानून बनाना अनिवार्य है. इस मामले में वैसा कोई कानून नहीं बनाया गया है.
अदालत गयी सरकार
तीसरा आधार यह कि किसी की जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति आदि निजी बातें पूछने और उन्हें सार्वजनिक करने पर संवैधानिक मनाही है. जाति आधारित गणना में नीजता के इस अधिकार का उल्लंघन हो रहा है. इस कारण यह असंवैधानिक है. गंभीर सवाल इसके उद्देश्य और इस पर होने वाले पांच सौ करोड़ के व्यय पर भी उठे. अगली सुनवाई में इन बिंदुओं पर राज्य सरकार (State Government) का पक्ष कितना तार्किक होता है, जाति आधारित गणना का भविष्य बहुत कुछ उसी पर निर्भर करेगा. पटना उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई की तारीख 03 जुलाई 2023 तय की है. राज्य सरकार चाहती है कि अंतिम फैसला जल्द हो. इसके लिए अदालत (Court) में याचिका दाखिल की गयी है. इस पर निर्णय होना बाकी है. सरकार की परेशानी यह है कि गणना (Calculation) के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित हो गये. गणना काम अंतिम चरण में है. संग्रहित आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करने की कड़ी अदालती हिदायत है.
उद्देश्य क्या है?
लोग जो समझें, अदालत (Court) के इस अंतरिम आदेश से ‘जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी’ जैसे आक्रामक नारे से कथित रूप से हकमारी की आशंका में घुल रहे अत्यंत पिछड़ा वर्ग को सुकून मिला है. विश्लेषकों के मुताबिक ज्यादा बिलबिलाहट उन तबकों में है जो पिछड़ा वर्ग (Backward Class) को मिल रही सुविधाओं को दीर्घकाल से हड़प रहे हैं. जहां तक जाति आधारित गणना की बात है, तो उसका कोई आधिकारिक उद्देश्य घोषित नहीं है. पीछे छूट गयी जातियों को मुख्य धारा में लाने के लिए उनकी संख्या जानने की मौखिक बातें की जा रही है. पर, सत्तासीन शीर्ष नेताओं का अघोषित उद्देश्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण (Reservation) के आकार को बड़ा कराना है, और कुछ नहीं. इसमें सत्ता से जुड़ा उनका स्वार्थ है.
श्रेय लेने की होड़
‘सामाजिक न्याय’ के ढलान पर जातीय जनगणना की मुहिम राजद (RJD) ने चला रखी थी. पर, उसके खुद के समर्थक सामाजिक समूहों का संपूर्ण समर्थन नहीं मिल रहा था. इधर के दिनों में ‘अविश्वसनीयता’ में घिर जाने से नीतीश कुमार का जनाधार खिसक गया तब उन्होंने मुद्दे को हड़प ही नहीं लिया, अपनी जिद से भी जोड़ दिया. ‘सर्वदलीय निर्णय’ के रूप में उनकी जिद की प्रारंभिक जीत हुई, जश्न मना. कुछ समय बाद जाति आधारित गणना शुरू हो गयी. यहां गौर करने वाली बात है कि ‘सर्वदलीय निर्णय’ भाजपा (BJP) की सहभागिता वाले राजग (NDA) शासनकाल में हुआ. नीतीश कुमार ने ‘राजनीतिक भयादोहन’ से भाजपा को घुटने के बल ला अपना हठ पूरा तो कर लिया, पर राजद और जदयू (JDU) में श्रेय लेने की होड़ मच गयी. उस वक्त प्रतिपक्ष के नेता रहे तेजस्वी प्रसाद यादव ने इसका सारा श्रेय पिता लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के सिर बांध इसे राजद की ऐतिहासिक जीत करार दिया. उनका कहना रहा कि जातीय जनगणना का निर्णय राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के लंबे संघर्ष का सुफल है, नीतीश कुमार की भूमिका गौण रही है.
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जदयू का पलटवार
जदयू ने पलटवार किया. तर्क रखा कि यह किसी एक दल (Party) का नहीं, सर्वदलीय निर्णय है. जाति आधारित गणना के लिए नीतीश कुमार लंबे समय से प्रयासरत थे. प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष अभियान चला रहे थे. नीतीश कुमार ने खुद कहा कि 1990 से ही वह इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. इन दावों की सत्यता अपनी जगह है. पर, यह खुला सच है कि जातीय जनगणना के लिए ‘जाति की राजनीति’ करने वाले तमाम छोटे-बड़े दल गाहे-बगाहे आवाज बुलंद कर रहे थे. पलटी मारने की नयी तैयारी के दिनों में जदयू और राजद एक-दूसरे के करीब आ सिर कटा देने पर आमादा हो गये थे. नीतीश कुमार के समक्ष गठबंधन आधारित विवशता थी. सहयोगी भाजपा की ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ की अवधारणा अवरोध बनी हुई थी. तेजस्वी प्रसाद यादव को करीब ला वह इससे उबर गये.
जश्न भाजपा ने भी मनाया
‘आदमी का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता’, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए नीतीश कुमार क्षेत्रीय दलों के मूल चरित्र में आ गये. क्षेत्रीय दलों की राजनीति (Politics) का मुख्य आधार जाति है. यह हर कोई जानता-समझता और मानता है. नीतीश कुमार की जाति आधारित गणना से जातियों को कोई फायदा हो या नहीं, समाज में नये सिरे से जातिवाद का जहर घुलने से ऐसे दलों को मजबूती अवश्य मिल जायेगी. उस वक्त के जश्न का मूल तत्व यही था. जश्न भाजपा ने भी मनाया. सर्वदलीय बैठक का हिस्सा बन राजद और जदयू की ‘अखंड पिछड़ावादी रणनीति’ को पलीता लगा देने का जश्न!
टल गया बिखराव का खतरा
नीतीश कुमार और तेजस्वी प्रसाद यादव इस मुगालते में रहे कि हिन्दुत्व की धारा को कमजोर नहीं पड़ने देने के लिए भाजपा सर्वदलीय बैठक से दूर रहेगी. वैसे में उसे पिछड़ा विरोधी बताने, साबित करने का उन्हें ठोस सबूत मिल जायेगा. पर, सर्वदलीय बैठक में शामिल हो भाजपा ने उनका सारा खेल बिगाड़ दिया, श्रेय बटोरने में उलझा दिया. उसके लिए जश्न मनाने का आधार तो यह बनता ही था. यह भी कि राजद के प्रति बढ़ रहे आकर्षण से सवर्ण आधार मतों में बिखराव का जो खतरा मंडराने लगा था वह टल गया.
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