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सतह पर साक्ष्य : यही था विशाखा का भद्दीय नगर!

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शिवकुमार राय
04 जून 2023

Banka : अंगभूमि बांका की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पौराणिकता विवादरहित है, अकाट्य है. धार्मिक एवं पुरातात्विक रहस्यों से भरे इस ऐतिहासिक क्षेत्र में सभ्यता-संस्कृति एवं महर्षियों व महात्माओं से संबद्ध अवशेषों का प्राकट्य होना अचरज की कोई बात नहीं होती. आमतौर पर इसे सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया ही मानी जाती है. परन्तु, पूर्व रामायणकालीन चांदन नदी (Ramayanakaleen Chandan Nadee) के गर्भ से अमूल्य धरोहर के रूप में प्रकट पुरावशेष में स्वर्णिम अतीत की स्पष्ट झलक दिखी. इतिहासकारों के अध्ययन और स्थलीय साक्ष्यों के आधार पर चांदन नदी की कोख में अतीत को पुनरावृत करने को अकुलाते-कुलबुलाते भग्नावशेष (Bhagnavashesh) को नदी घाटी सभ्यता (river valley civilization) के रूप में देखा और समझा गया. पुरातात्विक दृष्टि से परखने की जरूरत महसूस हुई. तात्कालिक तौर पर इसे बौद्धकालीन पुरावशेष माना गया. अनुमान लगाया गया कि विस्तृत पुरातात्विक (archaeological) खुदाई से बौद्धकालीन इतिहास (Buddhist History) के साथ-साथ अंग सभ्यता (Ang Sabhyata) की पौराणिकता की भी नये सिरे से पुष्टि हो सकती है.

दिखा भवनों का अवशेष
चांदन नदी के गर्भ में यह भग्नावशेष भदरिया (Bhadriya) गांव के समीप नजर आया. यह गांव बांका जिले के अमरपुर प्रखंड में है. चांदन नदी भदरिया गांव के पूरब में बहती है. नवम्बर 2020 के मध्य में छठ पर्व के लिए घाट बनाने के क्रम में प्राचीन शैली की ईंटों से निर्मित भवनों की शृंखला के अवशेष नदी के तल में दिखे. घाट बनाने वाले युवकों ने उत्सुकतावश इसके फैलाव की पैमाइश की तो वह तकरीबन डेढ़ हजार वर्गफीट में फैला पाया गया. तात्कालिक समझ बनी कि यह बौद्धकालीन भवनों के अवशेष हो सकते हैं जो काल के प्रवाह में चांदन नदी के गर्भ में समा गये होंगे. इस समझ का ऐतिहासिक आधार भी है. बौद्ध साहित्य और धर्म ग्रंथों में ऐसी चर्चा है कि भगवान बुद्ध की प्रथम महिला शिष्या विशाखा (Visakha) इसी भदरिया (भद्दीय) गांव की थीं. भगवान बुद्ध (Lord Buddha) के भी इस गांव में आने, ठहरने और धर्म का प्रचार करने का उल्लेख है.

बालू के लिए इस तरह होती है बेतरतीब खुदाई

बौद्धकालीन भद्दीय
इसके मद्देनजर यह माना जा रहा है कि उक्त भग्नावशेष महात्मा बुद्ध के काल में बनाये गये बौद्ध धर्म का प्रचार केन्द्र या विहार का हो सकता है. शोध और खोज का अंतिम निष्कर्ष जो आये, मौजूदा भौगोलिक साक्ष्य से प्रथम द्रष्टया इसकी पुष्टि तो हो ही जाती है कि भदरिया गांव ही बौद्धकालीन भद्दीय है. भग्नावशेष के प्रकटीकरण की सूचना बांका जिला प्रशासन को मिली. पुरातात्विक खोज की बाबत प्रशासनिक सक्रियता बढ़ी. अमरपुर के  जद(यू) विधायक जयंत राज (JDU MLA Jayant Raj) के जरिये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी इससे अवगत हुए. भग्नावशेष का स्वरूप बहुत कुछ राजगीर (Rajgir) के बौद्ध भवनों से मिलता-जुलता है.


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कैसे हुआ दृश्यमान?
सामान्य लोगों के मन में यह सवाल जरूर कौंध रहा होगा कि चांदन नदी के गर्भ में सदियों से समाया यह भग्नावशेष अचानक नदी तल पर कैसे दृश्यमान हो गया? गांव वालों का नदी तट पर नियमित आना-जाना होता होगा. इस पर पहले किसी की नजर क्यों नहीं गयी? बांका के पत्रकार मनोज उपाध्याय इन सवालों को इस रूप में सुलझाते हैं. उनके मुताबिक बालू माफिया (sand mafia) की काली करतूतों ने अनजाने में इस बेशकीमती पुरावशेष को दुनिया के सामने ला दिया. महात्मा बुद्ध के इस क्षेत्र से गहरे जुड़ाव की चर्चा धर्मग्रंथों में है, पर भदरिया में चांदन नदी में बौद्धकालीन इतिहास दफन है, इसकी पुख्ता जानकारी शायद किसी को नहीं थी.

इलाकाई लोगों को नहीं था भान
संभवतः इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को भी नहीं. जानकारी होती तो खुदाई बहुत पूर्व हो गयी रहती. भदरिया (Bhadriya) का पिछड़ापन मिटाने और इसे भगवान बुद्ध से जुड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कराने के लिए लंबे समय से प्रयासरत डा. अजीत कुमार पाठक  का तो यहां तक कहना रहा कि 2008 से पहले इलाकाई लोगों (इक्के-दुक्के को छोड़) को इसका भी भान नहीं था कि विशाखा इसी भदरिया गांव की थी. बौद्ध साहित्य एवं धर्मग्रंथों में ऐसी चर्चा जरूर थी, पर सर्वजन के बीच मुख्य रूप से उन्होंने ही इसे स्थापित किया, ऐसा उनका दावा है.

चांदन नदी की बेतरतीब खुदाई
स्थानीय लोगों के अनुसार चांदन नदी में वर्षों से बालू की खुली लूट मची है. बालू माफिया ने इस संपूर्ण क्षेत्र में बड़ी बेरहमी से नदी की बेतरतीब खुदाई की है. इससे उसका तल काफी नीचे पहुंच गया है. जमीन के अंदर की चीजें ऊपर आ गयी हैं. उसी क्रम में उक्त भग्नावशेष भी सतह पर आ गया. प्रकटीकरण का सच शोध का विषय है, पर इस तर्क में काफी दम है. सच भी संभवतः यही है. भदरिया गांव के पास चांदन नदी की चौड़ाई करीब नौ सौ मीटर है. गांव की ओर वाले तट से लगभग चार सौ मीटर की दूरी पर भग्नावशेष है. पुरातत्वविदों की प्रारंभिक पड़ताल में इसके भगवान बुद्ध के समय के होने का अनुमान लगाया जा रहा है. वैसे, संभावना पांच हजार वर्ष पूर्व की सभ्यता के रूप में भी जतायी जा रही है. नदी की बीच धारा में भवन शृंखला के भग्नावशेष को नदी घाटी सभ्यता के रूप में भी चिन्ह्ति किया गया है.

पहला मामला है यह
जानकारों की मानें, तो भारत में इससे पहले हरियाणा की राखीगढ़ी और गुजरात के लोथल में ऐसी सभ्यताओं के प्रमाण मिले हैं. वहां नदी के किनारे छोटी-मोटी ऐसी कुछ संरचनाएं मिलीं जिन्हें ‘नगर अवशेष’ के तौर पर स्थापित किया गया है. नदी के बीचो-बीच मुख्य जल बहाव क्षेत्र में अतिप्राचीन भवनों की शृंखला के अवशेष मिलने का संभवतः यह पहला मामला है. भदरिया में जो अवशेष दिखे हैं, उनकी दीवारों की चौड़ाई 20 से 30 फीट नापी गयी है.

अनुमान कुछ और भी
उसमें पायी गयीं ईंटों की लंबाई 15 इंच, चौड़ाई 10 इंच और मोटाई 2.5 इंच है जो हाथ से थाप कर बनायी गयी और पुआल से पकायी गयी प्रतीत होती हैं.1.3 इंच व्यास के मिट्टी के छोटे घड़े भी मिले हैं. यहां मिले कुछ बर्तन, बटखरा, खिलौने और मृदभांड करीब-करीब पांच हजार वर्ष पूर्व की सभ्यता में प्रयोग किये जाने वाले खिलौनों, बर्तनों, बटखरों और मृदभांडों से मेल खाते हैं. वैसे, अभी इसे बौद्धकालीन अवशेष (Baudhakaaleen avashesh) ही माना जा रहा है. ऐसा समझा जाता है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में ही इन भवनों का निर्माण हुआ होगा.

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