तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

पमरिया : लुप्त हो रही पुश्तैनी लोक कला !

शेयर करें:

शिवकुमार राय
02 जून , 2023

Patna : पमरिया (Pamaria) मुस्लिम धर्म के अनुगामी हैं. बहुत कम आबादी वाले इस समुदाय की आजीविका पुश्तैनी (Ancestral) लोक कला (नाचना,गाना व कवित रचना) पर आश्रित है. पमरिया मुख्य रूप से बच्चों के जन्म पर नाचते-गाते हैं, बच्चियों के जन्म (Birth) पर शायद कभी नहीं. यही इसकी सामाजिक विसंगति (Discrepancy) है. पमरिया नाच तीन पुरुषों का दल होता है. मुख्य कलाकार घाघरा-चुनर में होते हैं. एक के हाथ में ढोलकी और दूसरे के हाथ में झालर होते हैं. नाचते-गाते नवजात को गोद में ले सहलाते-दुलारते हैं. तेल से मालिश कर आशीष देते हैं. गौर करने वाली बात यह कि मुस्लिम (Muslim) होने के बावजूद नाचने-गाने के एवज में उपहार पाने के लिए हिन्दू (Hindu) आंगन को भी अपनी कला से गुलजार करते हैं.

अलग ढंग है जीने का
वैसे तो पमरिया नाच की यह लोक कला प्रायः लुप्त (Almost Extinct) हो गयी है, तब भी जहां कहीं भी इस बिरादरी के लोग रहते हैं और पुश्तैनी काम करते हैं वहां जीने का इनका अपना अलग ढंग है. महत्वपूर्ण बात यह कि इन लोगों का क्षेत्र बंटा होता है. इस बात की कड़ी हिदायत होती है कि कोई दूसरा व्यक्ति किसी और के क्षेत्र में जाकर पुत्र जन्मोत्सव (Birth) पर बधाई नहीं दे सकता है. यजमान से उपहार नहीं ले सकता है. ऐसा करने पर बिरादरी के लोगों की बैठक कर उस पमरिया को दंड दिया जाता है. यह दंड आमतौर पर पांच सौ से हजार रुपये तक का होता है. इन लोगों के क्षेत्र बंटवारे में एक और विशेष बात होती है. यह कि उस क्षेत्र का उनके नाम का रजिस्ट्री-पत्र (Registry-Paper) होता है.

पमरिया नाच : मिट रही परंपरा.

खरीद-बिक्री भी होती है 
कभी-कभी कोई आर्थिक तंगी यथा बीमारी अथवा बेटी या बहन की शादी के इंतजाम की खातिर अपने क्षेत्र को दूसरे पमरिया को बेच देता है. इसके लिए भी रजिस्ट्री (Registry) अनिवार्य होती है. कभी-कभी पिता, जिसके पास कई-कई क्षेत्र होते हैं, अपनी पुत्री की शादी में वह इसे दहेज में भी देता है. हालांकि, इधर मजिस्ट्रेट  (Magistrate) के आदेश से वर्ष 2003 से इस तरह की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गयी है. अब रजिस्ट्री की जगह स्टाम्प पेपर (Stamp Paper) से काम चलाते हैं जो गांव के सरदार या बुजुर्गों की उपस्थिति में तैयार किये जाते हैं. मधुबनी (Madhubani) जिले के लखनौर (Lakhnaur) प्रखंड के मिथिलादीप गांव में पमरिया बिरादरी के चार सौ घर हैं. तमाम तरह की मुश्किलों के बावजूद ये लोग खुशमिजाज और लतीफ ढंग से बात करनेवाले होते हैं. इनके सामने की मुश्किलें बड़ी कठिन है.


ये भी पढ़ें :

सवा लाख की है यह खटिया!

बड़ी चिंता : विलुप्त हो जायेगी गंगा तब…?


करने लगे हैं मजदूरी
आबादी कम है, सरकार पर किसी विशेष सुविधा के लिए दबाव नहीं बना सकते. अपने पेशे को लेकर ग्लानि बढ़ती जा रही है. ओबीसी (OBC) में हैं मगर सरकारी नौकरी में बहुत कम लोग हैं. अपने पेशे को लेकर दोचित्तापन (Ambivalence) है जिसके कारण ये समझ नहीं पाते कि यह कला पुश्तैनी गुण है या पुश्तैनी गुनाह. शहरों की तरफ पलायन बढ़ा है. वहां ये अकुशल मजदूर की तरह काम करते हैं. नयी तरह की आजीविका-रणनीतियां ये बना रहे हैं जिसमें किसी बैंड पार्टी में जाकर गाने के साथ-साथ किन्नरों के साथ मिलकर अपने काम के तरीकों को बदलने की कोशिश तक शामिल है. जानकारी यह भी है कि दरभंगा (Darbhanga) शहर के रहमगंज मोहल्ले में इनकी आबादी के बीच किन्नर (Transgender) भी बस गये हैं. इन तमाम बातों के बीच पमरिया नाच की लोककला एकदम से विलुप्त न हो जाये इस पर गंभीरता से सोचने और आर्थिक सहयोग के रूप में कुछ करने की जरूरत है.

#tapmanlive

अपनी राय दें