सहरसा: मठाधीशी टूटी, गुमान ढहा!
तेजस्वी ठाकुर
22 जून 2023
Sarhasa : कयास लगाये जा रहे थे कि पूर्व सांसद आनंद मोहन (Ex. MP Anand Mohan) की जेल से समय पूर्व रिहाई से सहरसा की राजनीति का रंग बदल जायेगा. वैसे तो जेल में रहते हुए भी अप्रत्यक्ष रूप से वह हस्तक्षेप करते ही थे, स्वतंत्र सक्रियता से तमाम समीकरणों के उलट-पलट जाने की संभावना जतायी जा रही थी. स्थानीय सत्ता और सियासत पर कायम एकाधिकार टूट जाने की बात भी कही जा रही थी. सहरसा नगर निगम (Saharsa Municipal Corporation) के चुनाव में इसकी झलक दिख जाने की उम्मीद जतायी जा रही थी. झलक दिखी, एकाधिकार टूटा, पर उसमें आनंद मोहन के खुली हवा में विचरण का शायद कोई असर नहीं रहा. सामान्य धारणा है कि सहरसा की राजनीति और चुनावों के परिणामों के रुख जदयू सांसद दिनेश चन्द्र यादव (JDU MP Dinesh Chandra Yadav) तय करते रहे हैं. नगर निगम के चुनाव में यह मिथक टूट गया.
तब भी खा गये थे गच्चा
हालांकि, हालिया संपन्न जिला परिषद के अध्यक्ष पद के चुनाव में भी वह गच्चा खा गये थे. अपने स्थापित प्रताप के बल पर जदयू नेता अमर यादव (Amar Yadav) की पत्नी मधुलता (Madhulata) को अध्यक्ष पद पर काबिज नहीं करा पाय थे . सहरसा नगर निगम के चुनाव में उनकी पत्नी की ही लुटिया डूब गयी. लोग जो मानें, इसकी आशंका विधान परिषद के स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में पूर्व मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू (Ex. Minister Neeraj Kumar Singh Bablu) की पत्नी नूतन सिंह (Nutan Singh) की पराजय के साथ ही पैदा हो गयी थी. कहा जाता है कि उस पराजय में सांसद दिनेश चन्द्र यादव की भी अप्रत्यक्ष भूमिका थी. महापौर (mayor) पद के चुनाव में दिनेश चन्द्र यादव की पत्नी रेणु सिन्हा (Renu Sinha) की हार से हिसाब बराबर हो गया.
बेन प्रिया ने दर्ज की जीत
पूर्व में सहरसा नगर परिषद के सभापति पद पर 20 वर्षों तक काबिज रहीं रेणु सिन्हा की महापौर पद के चुनाव में विपक्षी नेताओं ने राह अवरुद्ध करने की कोई कसर नहीं छोड़ी. इस चुनाव में भाजपा के दिवंगत पूर्व विधायक संजीव कुमार झा (Ex. MLA Sanjeev Kumar Jha) की पत्नी बेन प्रिया (Ben Priya) ने बड़ी जीत हासिल की. सर्वोच्च अदालत की अधिवक्ता बेन प्रिया को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी पूर्व विधायक ने ही कर रखी थी. दुर्भाग्य रहा कि उस तैयारी के अंजाम को वह देख नहीं पाये. बेन प्रिया को पति संजीव कुमार झा की लोकप्रियता का लाभ तो मिला ही, समाज की सहानुभूति भी साथ रही. दूसरे स्थान पर रहे नजीर मियां रहे.
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हो गयी दुर्गति
सांसद दिनेश चन्द्र यादव की पत्नी रेणु सिन्हा को तीसरा स्थान मिला. दुर्भाग्य यह कि अपने वार्ड में निगम पार्षद का चुनाव भी वह नहीं जीत पायीं. ऐसा ही हश्र महापौर पद की उम्मीदवार रहीं पूर्व उपाध्यक्ष रंजना सिंह का भी हुआ. वह भी निगम पार्षद का चुनाव नहीं जीत पायीं. दिलचस्प बात यह कि महापौर पद के चुनाव में सहरसा के पूर्व राजद विधायक अरुण कुमार (Ex. RJD MLA Arun Kumar) भी उम्मीदवार थे. उनकी भी मिट्टी पलीद हो गयी. दिनेश चन्द्र यादव के साथ-साथ अरुण कुमार का भी गुमान ढह गया.
समझने की जरूरत
चुनाव मैदान में वैश्य बिरादरी के रामकृष्ण साह उर्फ मोहन साह भी थे. उनके अरमान भी अधूरे रह गये. बेन प्रिया की जीत में पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना (Ex. MLA Kishor Kumar Munna) का अपूर्व योगदान रहा. वैसे, यह जानकर आश्चर्य होगा कि अप्रत्यक्ष रूप से जदयू नेतृत्व भी उनकी जीत चाहता था. क्यों, यह बताने की शायद जरूरत नहीं. उपमहापौर पद पर उमर हयात गुड्डू की जीत हुई. महापौर और उपमहापौर के चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवारों को मिले इस व्यापक समर्थन का संकेत क्या है, इसे गहराई से समझने की जरूरत है. खासकर उन नेताओं को जिन्होंने इस समुदाय को ‘वोट बैंक’ समझ रखा है.
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