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भूल गये नीतीश कुमार इस भग्नावशेष को !

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राजेन्द्र सिंह
05 जून 2023

Bhagalpur : इसमें दो मत नहीं कि काल के प्रवाह (kal ke Pravah) में भूगोल (Geography) का स्वरूप भी बदल जाता है और तब इतिहास (History) में दर्ज बातें इसलिए अटकलों में शुमार हो जाती हैं कि उसका कोई भौगोलिक साक्ष्य मौजूद नहीं होता. लेकिन, जब इतिहास के कब्रिस्तान (Kabristan) में दफन कोई भौगोलिक साक्ष्य कब्रें फाड़ कर चीख मारने लगे और हवा में हाथ लहराते हुए अपने होने की दुहाई देने लगे तब? तब न तो संदेह की कोई गुंजाइश शेष बचती है और न अटकलों-कयासों के लिए कोई जगह. कुछ ऐसा ही हुआ गांवों की भीड़ में एक गांव के रूप में खड़े आज के भदरिया उर्फ बौद्धकालीन भद्दीय (Bhadaiya Urf Budhist Bhadiya) से जुड़े अतीत के साथ. कहना गलत नहीं होगा कि जिस भद्दीय उर्फ भदरिया की यह चर्चा कि ‘वैदिककालीन अंग महाजनपद के तब के नगर महासेठ मेण्डक (Nagar Mahaseth Mendak) थे और जो सच्चाई इतिहास की पुस्तकों के हाशिये पर या चंद शोधकर्ताओं की शोध पुस्तकों अथवा बौद्ध ग्रंथों (Budhist texts) तक सिमटी हुई थी, उसे उगल कर इसने इस तथ्य पर मुहर लगा दी कि आज का भदरिया गांव ही तब एक अति विकसित, समृद्ध और सोलह महाजनपदों में एक अंग का भद्दीय नगर था, जहां चंपा प्रवास कर रहे भगवान बुद्ध (Lord Budha) ने अपने शिष्यों संग भदरिया पधार कर उस माटी को धन्य किया था’.


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और भी बहुमूल्य रत्न पड़े हैं…
आमतौर पर तो कोई पुराना टीला या डूह ही ऐसे अवशेष उगलते देखे गये हैं, लेकिन यह शायद पहली बार है, जब यहां की किसी नदी ने इतिहास से जुड़ा कोई भौगोलिक साक्ष्य उगला हो और भारत में प्रचलित इस मान्यता को पुष्ट किया हो कि नदियां ही सभ्यता के उद्भव और विकास की जननी हैं. कह सकते हैं कि चांदन नदी (Chandan Nadi) ने तो पुरावशेष (puravashesh) उगल कर प्रत्यक्ष तौर पर एक प्रकार से यह आमंत्रण दे ही दिया है कि ‘मेरे गर्भ में अभी और भी ऐसे बहुमूल्य रत्न पड़े हैं … मेरे पास आओ … और झांक कर देखो तो सही.’ चांदन की यह आवाज सूबे के मुखिया नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के कानों से भी टकरायी और 12 दिसंबर 2020 को सच का दीदार करने वह भदरिया पहुंच गये, जहां अवशेष देखने के बाद उन्होंने ‘टूरिस्ट स्पॉट बनाने, विस्तृत खोदाई के लिए चांदन की धारा बदलने, आसपास के इलाकों में भी पुरातात्विक खोज करने और भदरिया के इतिहास का साक्षी बनने जैसी कई घोषणाएं कर दीं, जिससे भदरिया के वाशिंदों सहित इस मुहिम की लगातार झंडाबरदारी करने वाले समाजवादी नेता लखन लाल पाठक की लंबित मुरादें झटके में पूरी हो जाने की उम्मीदें हरी हो गयीं.

उम्मीदें हरी हो गयीं
कमाल की बात यह हुई कि 12 दिसंबर को मुख्यमंत्री ने पुरास्थल की विस्तृत खोदाई की घोषणा की और 14 दिसंबर को नदी किनारे जेसीबी की दहाड़ें गूंजने लगीं इससे भदरिया सहित समस्त अंग क्षेत्र के लोगों के चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित खुशी की लकीरें खिंच गयीं कि आमतौर पर ऐसी घोषणाएं इतनी जल्दी सरजमीन पर नहीं उतरतीं.इसकी जो इकलौती वजह समझ में आयी, वह मुख्यमंत्री का पुरातत्व प्रेम और इस प्रेम की वजह है भदरिया के पास बहने वाली चांदन नदी में उस अमूल्य धरोहर का निकलना, जो कम से कम बौद्धग्रंथों में दर्ज भद्दीय नगर, वहां निवास करने वाले नगर महासेठ मेण्डक और उनकी पौत्री विशाखा (Visakha) द्वारा भगवान बुद्ध का अपने संघ के साथ भदरिया (Bhadriya) आगमन पर स्वागत की कथा का एक साथ भौगोलिक साक्ष्य उगल रही है. इतिहास को भौगोलिक साक्ष्य मिल जाये, इससे ज्यादा उसे चाहिए भी क्या? भदरिया देखने लगा इस आईने में भद्दीय के रूप में अपने अतीत का अक्स देखने लगा और मन ही मन फिर से अपने उस स्वर्णिम अतीत के साकार होने का जोड़-घटाव भी करने लगा. पर, यह सब वहीं तक सिमटा रह गया, ख्वाब खंडित हो गया.

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