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बड़ा सवाल : नीतीश कुमार को क्यों स्वीकार करेगा फूलपुर?

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संजय वर्मा
03 अगस्त 2023

Patna : इन दिनों गाहे – बगाहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के संसदीय चुनाव लड़ने की चर्चा उठ जाती है. राजनीति की गहरी समझ नहीं रखने वाले लोग ऐसी चर्चाओं को सच समझ उनमें रुचि लेने लग जाते हैं. हिचकोले खाते राजनीतिक हालात में ऐसा स्वाभाविक है. पर, विश्लेषकों की नजर में ऐसी चर्चाओं का कोई ठोस आधार नहीं होता. कल क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता, वर्तमान बताता है कि नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) विरोधी विपक्षी दलों के गठबंधन का संयोजक बनाया जाये या नहीं, प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का चेहरा घोषित किया जाये या नहीं, 2024 का संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) वह नहीं लड़ेंगे. इसकी तस्दीक उनके मन- मिजाज और स्वभाव पर शोध करने वाले भी करते हैं.

वह अलग बात होगी
वैसे, प्रधानमंत्री पद के लोभ और विपक्ष के बड़े नेताओं के सुझाव- दबाव पर इरादा बदल जाये तो वह अलग बात होगी. वैसा होता है तो उसे ‘राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है’ सूत्र वाक्य का एक और उदाहरण ही माना जायेगा. चर्चाओं में नीतीश कुमार के उत्तर प्रदेश के फूलपुर संसदीय क्षेत्र (Phulpur Parliamentary Constituency)  से चुनाव लड़ने की बात कही जाती है. तरह-तरह के तर्क रखे जा जाते हैं. मसलन जदयू (JDU) ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के चेहरा के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का मन ही नहीं बनाया है, इसको हकीकत में बदलने के लिए वहां सियासी जमीन भी तैयार कर रहा है.

फूलपुर ही क्यों?
आधार तैयार करने की जिम्मेवारी बिहार (Bihar) के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार (Srawan Kumar) को सौंपी गयी है. साथ में नालंदा के जदयू सांसद कौशलेन्द्र कुमार (Kaushalendra Kumar) और विधान पार्षद संजय सिंह (Sanjay Singh) को भी लगाया गया है. तीनों नीतीश कुमार के करीबियों में शुमार हैं. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajeev Ranjan Singh urf Lalan Singh) भी वहां अपनी ऊर्जा खपा रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि फूलपुर में संभावनाओं की तलाश के क्रम में जदयू ने कई दृष्टिकोण से आंतरिक सर्वे कराया था. निष्कर्ष उत्साह बढ़ाने वाला रहा. राजनीति महसूस कर रही है कि नीतीश कुमार का तो कम, उनके लगुए – भगुए का जोश तब से उफना रहा है. यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि फूलपुर ही क्यों? राजनीति की हल्की – फुल्की समझ में भी यह जिज्ञासा जरूर पैदा हुई होगी.

बन जा सकते हैं चुनौती
फूलपूर ही क्यों के संदर्भ में कई तरह की बातें रखी जा रही हैं. एक तो यह कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) इसी फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते थे. मुकाबला डा. राममनोहर लोहिया (Dr. Ram Manohar Lohia) से होता था. 1989 में तब के कांग्रेस विरोधी दलों की एकजुटता से देश की राजनीति को नयी दिशा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishvanath Pratap Singh) भी एक बार इस क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए थे. जदयू के रणनीतिकारों का मानना है कि इस परिप्रेक्ष्य में नीतीश कुमार फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं तो खुद को विपक्ष का सबसे मजबूत चेहरा के रूप में स्थापित कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती बन जा सकते हैं.

नालंदा से क्यों नहीं?
आंतरिक सर्वे में ऐसी कोई बात आयी है या नहीं, जदयू अशान्वित है कि नीतीश कुमार के फूलपुर के मैदान में उतरने से उत्तर प्रदेश के दो दर्जन से अधिक संसदीय क्षेत्रों में विपक्षी गठबंधन को लाभ मिलेगा. असर उत्तर पूर्व के अन्य संसदीय क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. क्या होगा क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. फिलहाल उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व के विधानसभा चुनावों में थोक के भाव में जमानत गंवाने वाले जदयू की इस समझ को खुशफहमी से ज्यादा कुछ नहीं माना जा सकता. यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि नीतीश कुमार का जब मन डोल जायेगा तब फूलपुर से क्यों, गृह संसदीय क्षेत्र नालंदा (Nalanda) से क्यों नहीं?

दो क्षेत्रों से लड़ेंगे!
इस बाबत ऐसा कहा जाता है कि नालंदा से तो वह लड़ेंगे ही, फूलपुर में भी उनकी संभावना संवारी जा रही है. नरेन्द्र मोदी दो क्षेत्रों से लड़ते हैं, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी. नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री पद (Prime Ministership) का चेहरा हैं. दो क्षेत्रों से क्यों नहीं लड़ सकते हैं. नालंदा की तरह फूलपुर भी कुर्मी बहुल है. इस आधार पर भी इसे नीतीश कुमार के लिए मुफीद माना जा रहा है. ऐसा बताया जाता है कि इस संसदीय क्षेत्र में तीन लाख से अधिक कुर्मी मतदाता हैं. यादव और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक संख्या में हैं. ऐसा ही सामाजिक समीकरण नालंदा का है. इसके बाद भी प्रतिद्वंद्वियों की नजर में नीतीश कुमार के लिए न नालंदा सुरक्षित है और न फूलपुर.


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हार गये तब…!
फूलपुर संसदीय क्षेत्र से अब तक नौ बार कुर्मी समाज के सांसद निर्वाचित हुए हैं. नालंदा से अपवाद स्वरूप ही गैर कुर्मी सांसद चुने गये हैं. तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो नीतीश कुमार के लिए नालंदा कुछ अधिक सुरक्षित है. पूर्व में वह वहां से सांसद निर्वाचित भी हुए हैं. विश्लेषकों की मानें तो इसके बावजूद वहां के मैदान में उतरने का जोखिम वह शायद ही उठाना चाहेंगे. जबकि सरकार उनकी अपनी है. खतरा संभवतः इसलिए मोल लेना नहीं चाहेंगे कि आशंका सीधे मुकाबले में गैर कुर्मी और गैर मुस्लिम सर्वजातीय गोलबंदी हो जाने की है. जोखिम नहीं उठाने का सबसे बड़ा कारण हार स्वीकार करना उनके स्वभाव में शामिल नहीं होना है. भय यह कि हार गये तो सारा खेल खत्म!

कैसे कायम होगी स्वीकार्यता
फूलपुर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के शासनाधीन है. भाजपा (BJP) की केशरी देवी पटेल वहां की सांसद हैं. स्वजातीय कुर्मी समाज पर उनकी अच्छी पकड़ है. इस समाज का जुड़ाव अभी भाजपा और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) की पार्टी अपना दल (एस) से है. कुर्मी जाति से रहने और प्रधानमंत्री पद की बयार बांधने के अलावा नीतीश कुमार में ऐसी क्या खासियत है कि सांसद केशरी देवी पटेल (Keshari Devi Patel) और केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की जगह वहां उनकी (नीतीश कुमार) स्वीकार्यता कायम हो जायेगी? यह सवाल फूलपुर की ओर बढ़े उनके कदम को रोक दे सकता है.

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