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यक्ष प्रश्न : उनकी रुखसती के बाद क्या होगा?

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अविनाश चन्द्र मिश्र
10 अगस्त 2024

Patna : बिहार (Bihar) में दीर्घकाल से पीढ़ियों का भविष्य बर्बाद कर रही सड़ांध भरी शिक्षा-व्यवस्था में त्वरित सुधार की जरूरत हर जागरुक की व्यग्रता है. विशेष कर उस अभावग्रस्त तबके की जिसकी पहुंच महंगे विकल्प तक नहीं है. ऐसे लोगों को सुकून देने के लिए लम्बे अरसे बाद विभाग के स्तर से एक पहल हुई है. पर, सड़ांध में भी खूशबू महसूस कर रहे खास सुविधाभोगी शिक्षक (Teacher) वर्ग के लिए कड़क मिजाज विभागीय अपर मुख्य सचिव के के पाठक (K K Pathak) की इस सख्ती में सुधार के नाम पर शिक्षकों के साथ ज्यादती नजर आ रही है. पठन-पाठन का मूल दायित्व निभाने के निर्देश-आदेश से यह वर्ग लांछित और अपमानित महसूस कर रहा है. परन्तु, इस पर चिंतन करने को बिल्कुल तैयार नहीं है कि आखिर डंडा चलाने और खाने की यह स्थिति क्यों और कैसे पैदा हुई? वैसे, ऐसी विषम परिस्थितियों के लिए सिर्फ शिक्षक वर्ग ही जिम्मेवार नहीं है, व्यवस्था का भी दोष है.

स्थायित्व की संभावना शून्य
जो हो, शिक्षा में सुधार की आवश्यकता का यह सैद्धांतिक पक्ष है. व्यावहारिक रूप में देखें तो अपर मुख्य सचिव के के पाठक के अभियान में किसी को बिगड़े हालात में बदलाव की झलक दिखती है, बेहतरी की उम्मीद बंधती है तो वह उनकी खुशफहमी है. इसलिए कि राज्य सरकार (State Government) की अव्यावहारिक कार्य-संस्कृति और संकीर्ण सोच आधारित सत्ता शीर्ष की अन्यमनस्कता के मद्देनजर शिक्षण-व्यवस्था में तात्कालिक तौर पर कुछ सुधार हो भी जाता है, तो उसमें स्थायित्व की संभावना शून्य है. इसके बाद भी जो बेहतरी की बाबत आशान्वित हैं, वे ज्यादा नहीं पन्द्रह-सोलह साल पहले का इतिहास पलट लें, खुशफहमी खुद-ब-खुद दूर हो जायेगी, भ्रम टूट जायेगा. विशेष कर उच्च शिक्षा के मामले में, जहां के के पाठक की कार्रवाई को लेकर वैधानिकता और नैतिकता का भी सवाल खड़ा है.

पटरी पर तो आ गयी थी व्यवस्था!
पन्द्रह-सोलह साल पहले 2005 में सत्ता परिवर्तन के बाद बिहार में ‘सुशासन’ की बुनियाद डाली जा रही थी. संयोग ही कहेंगे कि उसी दरम्यान 2006 में राज्यपाल  (Governor) के रूप में शिक्षा प्रेमी आर एस गवई का पदार्पण हुआ. उद्देश्य से भटक चुकी उच्च शिक्षा को उसकी गरिमा लौटाने के ख्याल से उन्होंने डा. आर कृष्ण कुमार (Dr. R Krishn Kumar) को नागपुर (Nagpur) से बुला अपना विशेष कार्य पदाधिकारी बना दिया. इस महकमे की कमान उन्हें सौंप दी. उस समय सुशासन की सोच में संकीर्णता नहीं समायी थी. राज्यपाल की इस पहल का सरकार ने स्वागत किया और डा. आर कृष्ण कुमार को विशेष सचिव का दर्जा दे अनके प्रति सम्मान भी प्रदर्शित किया. उस कालखंड में भी उच्च शिक्षा की स्थिति वर्तमान जैसी ही थी. महाविद्यालयों में नियमित पढ़ाई नहीं होती थी. सत्र अनियमित थे. परीक्षा में कदाचार छात्रों के संस्कार में समा गया था. शिक्षकों का एक बड़ा तबका ट्यूशन-कोचिंग के धंधे से जुड़ा था. कई विश्वविद्यालयों में फर्जी डिग्रियों का अबाध कारोबार चल रहा था. डा. आर कृष्ण कुमार ने इसे चुनौती के रूप में ले गंभीरता दिखायी तो थोड़े ही समय में सब कुछ पटरी पर आ गया.


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दुहरा रहा इतिहास
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में समय से नियमित अध्ययन-अध्यापन होने लगे. कदाचार (Misconduct) मुक्त परीक्षाएं होने लगीं. समय पर परीक्षाफल के प्रकाशन का सुखद क्रम बन गया. सबसे बड़ी बात यह हुई कि राज्य के तकरीबन 150 अंगीभूत महाविद्यालयों में वर्षों से बंद प्रयोगशालाओं के ताले खुल गये. इसे इस राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उच्च शिक्षा जगत सुकून की सांस लेना शुरू ही किया कि राज्यपाल आर एस गवई की बिहार (Bihar) से विदाई हो गयी. कुछ समय बाद डा. आर कृष्ण कुमार भी चले गये. इसके साथ ही उनके सुधार कार्यक्रम पर पूर्णविराम लग गया. बाद के दिनों में जो घिनौना खेल हुआ उसकी चर्चा करने में भी शर्म आती है. पूर्व कुलाधिपति देवानंद कुंवर (Devanand Kunwar) और फागू चौहान (Fagu Chauhan) के कार्यकाल में शिक्षा के मूल्यों एवं मानदंडों में भारी गिरावट आ गयी. लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकलाज काफी मायने रखती है. उस दौरान इसका भी ख्याल नहीं रखा गया. इस परिप्रेक्ष्य में के के पाठक शिक्षा और शिक्षालयों की पवित्रता लौटाने का जो अभियान चला रहे हैं वह निस्संदेह सराहनीय है. पर, यहां यक्ष प्रश्न यह है कि उनकी रूखसती के बाद इस सुधार कार्यक्रम का क्या होगा? इतिहास (History) दुहराकर तो नहीं रह जायेगा?

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