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प्रदेश भाजपा कार्यालय : नहीं चलती अब किसी की चौधराहट

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विभेष त्रिवेदी
01 सितम्बर 2023

Patna : राजधानी पटना के वीरचंद पटेल पथ की चर्चा शुरू होते ही दिमाग में बड़े राजनीतिक दलों के कार्यालयों की तस्वीर उभर आती है. इसी पथ पर स्थित राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जनता दल यूनाइटेड (JDU) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कार्यालयों में सालों भर चहल-पहल रहती है. यहीं से पार्टियां अपने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को लामबंद करती हैं. नेताओं की राजनीतिक तकदीर लिखी जाती है. नये-नये नारे और सियासी चेहरे गढ़े जाते हैं. इन कार्यालयों में बैठे नेता जी जब-जब खुश हुए, आगंतुक की किस्मत बदल गयी. नाराज हुए, उम्मीदवारी से वंचित कर दिये गये, कुर्सी चली गयी. इनमें से एक कार्यालय का नजारा आजकल बदला हुआ है.

फिर ली भाजपा की सदस्यता
कुछ ही दिनों पहले पश्चिम चंपारण (West Champaran) के पुराने चुनावी अखाड़ेबाज दिलीप वर्मा (Dilip Verma) ने फिर से भाजपा की सदस्यता ग्रहण की. पार्टी के तमाम बड़े-छोटे नेताओं ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया. सबकी आंखों में विश्वास है कि चंपारण का यह लड़ाका 2024 की जंग में भाजपा को अतिरिक्त ताकत मुहैया करायेगा. उस दिन भाजपा कार्यालय में भीड़ छंट नहीं रही थी. कुछ ही देर में पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव (Nandkishore Yadav) की पुस्तक का विमोचन होना था. विधायक दल की बैठक होने वाली थी. सदस्य एक कक्ष से निकलकर दूसरे कक्ष में आ जा रहे थे. हर चेहरे पर मुस्कान थी, चमक थी और जल्दबाजी भी. कार्यालय परिसर से दस से अधिक नेताओं-कार्यकर्ताओं का एक जत्था निकलता था तो दर्जनभर नेताओं का दूसरा जत्था प्रवेश करता था.

बदल गया है हवा का रुख
देखने वालों का कहना रहा कि यहां सब कुछ पहले जैसा नहीं है. बहुत बदला-बदला सा नजर आ रहा है. प्रदेश भाजपा कार्यालय परिसर में और अलग-अलग कक्ष में गर्मजोशी तो है, लेकिन अंदर के वातावरण  (Environment) में अनुशासन का एक अदृश्य गंध महसूस किया जा रहा है. दीवारें वही हैं, हवा का रुख बदल गया है. कोई किसी पर आंख कड़ी नहीं कर रहा. किसी को चेतावनी नहीं दी जा रही, लेकिन सब के सब अपनी सीमाओं में हैं. एक भय का वातावरण है, जिसे आतंक का माहौल नहीं कहा जा सकता है. दूरदराज के जिलों से आ रहे नेता और कार्यकर्ता फुसफुसाते हैं, ‘अब यहां मिलने और अपनी बातें रखने की सहूलियत बढ़ गयी है.

जब दिलीप वर्मा भाजपा में शामिल हुए.

बातें अब सिर्फ काम की
कक्ष (Room) में बेमतलब की लंबी गपबाजी के बजाय काम की बातें होती हैं. कार्य-संस्कृति बदल गयी है. प्रदेश भाजपा कार्यालय का माहौल अचानक नहीं बदला है. जब से भीखूभाई दलसानिया (Bhikhubhai Dalsania) ने प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री की बागडोर संभाली है, परिसर का दस्तूर बदल गया है. यह सब एक-दो दिनों में नहीं हुआ है, बल्कि धीरे-धीरे होता चला गया है. कैंपस (Campus) के हर चेहरे पर नजर है. हर छोटे-बड़े पदाधिकारी के काम की अदृश्य समीक्षा हो रही है.

समय पर बैठ रहे
भीखूभाई दलसानिया ठीक दस बजे अपने कार्यालय कक्ष में पहुंच जाते हैं. प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी (Samrat Chowdhary) अगर पटना में होते हैं तो वह भी ग्यारह बजे कार्यालय पहुंच जाते हैं. हालांकि, संगठन महामंत्री का आवास कार्यालय परिसर में ही है, लेकिन अनावश्यक रूप से सुबह-सुबह उनके घर पर मजमा लगाने की इजाजत नहीं है. वह सुबह में अकेले ही टहलते हैं. पूर्ववर्ती संगठन महामंत्री नागेंद्र नाथ (Nagendra Nath) के साथ सुबह में टहलने के लिए पटना के नेता बेचैन रहते थे. उनके कान में कुछ बातें डालने का यह अच्छा मौका होता था. अब जिसे भी भीखूभाई दलसानिया से मिलना हो, अपनी पर्ची भेजकर कार्यालय में मिल सकता है. पहले प्रायः नेता और कार्यकर्ता को अकेले में अपनी बात रखने का मौका आसानी से नहीं मिलता था.


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तब बोल नहीं पाते थे
नागेंद्र नाथ, सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) और नंदकिशोर यादव जैसे वरिष्ठ नेता किसी आगंतुक (Visitor) से सबके सामने प्रयोजन पूछने लगते थे-‘बोलिए क्या कहना चाहते हैं?’ ‘सर आपके दर्शन करने आ गया था.’ नहीं-नहीं कोई इतनी दूरी से यूं ही नहीं आता है. बोलिये क्या बात है? देखिये आप जो बात कहने आये हैं, उसके लिए आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है. निर्णय की एक प्रक्रिया है, आपके कहने या किसी की पैरवी से कुछ नहीं होता है.’ बेचारे सबके सामने खुलकर बोल भी नहीं पाते थे. सबको पता होता था कि किन तक बात पहुंचाने के लिए किसे माध्यम बनाना ठीक रहेगा.

‘उपहार’ की परिपाटी खत्म
भिखूभाई दलसानिया से अलग से, आसानी से और सीधी बात हो जाती है. वे व्यक्तिगत हाल-चाल पूछ लेते हैं और आने का प्रयोजन  (Purpose) जान लेते हैं. जवाब में सिर्फ इतना बोलते हैं-‘ठीक है देखता हूं.’ हां अब मिठाई, तिलकुट, आम, घड़ी या मोबाइल जैसे सस्ते-महंगे उपहार (Gift) लेकर यहां आने की गलती नहीं करनी है. किसी को डांट-फटकार नहीं लगती. जो सांसद, विधायक या नेता उनसे आवास पर मिलना चाहते हैं, उन्हें पहले समय निर्धारित कराना पड़ता है.

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