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दिनकर भूमि सिमरिया : कविताओं से जुड़ा है गांव का बच्चा-बच्चा

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अश्विनी कुमार आलोक
20 सितम्बर 2023

सिमरिया के लोग अब किसी प्रकार का मांग-स्मार पत्र राजनेताओं को सौंपना बेमानी समझते हैं. यह गांव पहले तेघड़ा विधानसभा (Teghra Assembly) क्षेत्रातंर्गत था, फिर बरौनी और मटिहानी के अधीन आया. परंतु, मटिहानी (Matihani) के तत्कालीन विधायक प्रमोद शर्मा को छोड़कर किसी अन्य ने सिमरिया (Simaria) की सुधि नहीं ली. इन दिनों यह गांव तेघड़ा विधानसभा क्षेत्रांतर्गत है. विधायक रामरतन सिंह का कोई ध्यान नहीं है. सिमरिया के लोगों का भरोसा राजनेताओं पर से उठ गया है. पर, अपने ऊपर वैसे ही भरोसा है, जिस तरह दिनकर जी कविताओं में आत्मशक्ति का ज्वार उठाते थे. गांव के लोगों में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (Ramdhari Singh ‘Dinkar’) के प्रति अद्भुत श्रद्धा है. प्रायः हर घर की दीवारों पर दिनकर की काव्य पंक्तियां लिखी हुई हैं. बच्चा-बच्चा कविताओं से जुड़ा हुआ है.

विधवा ने दी थी जमीन
1976 में स्थापित हुआ दिनकर हाई स्कूल भले बाद के दिनों में राजकीयकृत हुआ, परन्तु इसकी स्थापना का श्रेय किसी राजनेता या सरकार को नहीं जाता. कुछ स्थानीय युवकों ने फूस की झोपड़ी बनाकर विद्यालय संचालन आरंभ किया. बाद के दिनों में तीन-चार कमरों का पक्का मकान भी बनवाया था. दिनकर जी के टोले की एक विधवा ने विद्यालय (School) के लिए भूमि दी थी और दियारे में तत्कालीन मुखिया श्रीराम राय ने पांच बीघा जमीन लिख दी थी. दिनकर जी के इस स्मारक के अतिरिक्त मल्हीपुर का दिनकर द्वार, पंचायत भवन एवं जीरो माइल की दिनकर प्रतिमा सभी जन-सहयोग का प्रतिफल है.

ऐसे बना पुस्तकालय
दिनकर की कविताओं से अनुराग रखनेवाले स्थानीय दिनेश प्रसाद सिंह और चंद्रकुमार शर्मा ‘बादल’ ने इन स्मारकों की स्थापना का नेतृत्व किया था. दिनकर स्मृति विकास समिति ने अपने राष्ट्रकवि की श्रद्धा को संरक्षित करने का जो बीड़ा उठाया था, वह कुछ और बढ़ता. लेकिन, दो पक्षों की गोलीबारी के बीच दिनेश प्रसाद सिंह अकारण भेंट चढ़ गये और बाद में कोरोना काल ने एक उत्साही युवक मुचकुंद मोनू को भी लील लिया. ग्रामीणों ने दिनकर पुस्तकालय (Dinkar Library) की स्थापना की थी. उसके लिए उनके परिजनों ने चौदह कट्ठा जमीन दी थी, शेष जमीन किसी विधवा ने लिखी थी. ग्रामीण विकास विभाग (Rural Development Department) की किसी योजना से हुए निर्माण के बाद तत्कालीन सांसद कृष्णा शाही (Krishna Shahi) ने उसका लोकर्पण किया था. सरकार की ओर से सिर्फ इतनी उपलब्धि कही जा सकती है.


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स्मारक पर गतिरोध
दिनेश प्रसाद सिंह के प्रयास से बरौनी रिफाइनरी (Barauni Refinery) ने दिनकर ग्राम के विकास के लिए अनेक पहल की. दिनेश प्रसाद सिंह की हत्या के एक दिन पूर्व दिनकर आवास को स्मारक का रूप देने के लिए शिलान्यास किया गया था. लेकिन, दिनेश प्रसाद सिंह की हत्या के बाद बरौनी रिफाइनरी ने दिनकर जी के परिजनों से एनओसी मांगा, कहते हैं कि दिनकर के छोटे पुत्र केदारनाथ सिंह और बड़े पुत्र के बेटे अरविंद कुमार सिंह के बीच मतभेद होने के कारण कार्य में गतिरोध आ गया. केदारनाथ सिंह ने आवास को तोड़कर हॉल बनवाया, परन्तु अरविंद कुमार सिंह की हिस्सेदारी की मांग अनसुनी कर दी. दिनकर ने दालान बनवाया था और आगंतुकों (Visitors) से उसी में बैठकर बोलते-बतियाते थे. वह जीर्ण अवस्था में है.

विरासत पर विवाद
केदारनाथ सिंह ने अरविंद कुमार सिंह को उसी दालान पर अपनी हिस्सेदारी कायम करने की बात कह रखी है. उसी जगह से एक सड़क निकालने की भी कोई योजना चल रही है, उसमें भी अरविंद कुमार सिंह के हिस्से की जमीन जा रही है. दोनों बेटों के परिवारों के लिए पटना में दो अलग-अलग मकान दिनकर जी छोड़ गये हैं, परन्तु अरविंद कुमार सिंह का दर्द यह है कि वह साल में दो-चार बार अपने गांव जायें, तो रहने का ठिकाना नहीं है. इधर, अरविंद कुमार सिंह के हिस्से वाले दालान के सौंदर्यीकरण की भी योजना बरौनी रिफाइनरी ने बनायी है, दिनकर जी के परिजनों की सहमति का इंतजार है.

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