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इस औचक निरीक्षण में है सम्मान का भाव

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विशेष प्रतिनिधि
12 अक्तूबर 2023

Patna : महागठबंधन की सरकार में और कुछ हो या नहीं, छापेमारी खूब हो रही है. ‘बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुबहान अल्लाह’ के अंदाज में. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) तो छापेमारी कर ही रहे हैं, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक (K K Pathak) भी अपने महकमे की ऊर्जा ज्यादातर इसी में खपा रहे हैं. अभी चर्चा नीतीश कुमार की. के के पाठक की बात बाद में. नीतीश कुमार की छापेमारी की सूचना पहले से नहीं रहती है. छापे के समय ही पता चलता है कि यह पड़ गया है. इसका उद्देश्य होता है और जिसके घर यह पड़ता है, उसका पूरा खानदान उस घटना को याद रखता है. स्मरण में बातें अवश्य होंगी ही,लालू प्रसाद का राजपाट जब चरम पर था, खुद छापामारी करने निकल जाते थे. सरकारी विभागों ने इसे ‘औचक निरीक्षण’ का नाम दिया था. लालू प्रसाद (Lalu Prasad) कभी-कभी अपने मंत्रियों के घर का भी औचक निरीक्षण कर लेते थे.

मिल जाती है खबर अधिकारियों को
हाल के दिनों में लोग देख रहे हैं कि नीतीश कुमार भी औचक निरीक्षण (Surprise Inspection) करने लगे हैं. वह विभाग से अधिक अपने करीबी लोगों के घरों का औचक निरीक्षण कर रहे हैं. अंतर यह है कि जब कभी वह विभागीय कार्यों का औचक निरीक्षण करने पहुंचते हैं, अधिकारियों को पहले खबर दे दी जाती है. सावधान हो जाइये. संभव हो तो जल्दी से स्पाट की तरफ भागिये. साहब जा रहे हैं. विभागीय प्रधान को तो जरूर औचक निरीक्षण की सूचना (Information) दी जाती है. नीतीश कुमार स्पाट पर पहुंचते हैं. अपने ज्ञान का कुछ हिस्सा अधिकारियों को दान करके लौट जाते हैं. फर्क यह भी पड़ता है कि सुस्त चल रहा काम तेजी से दौड़ने लगता है.


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बहुत अंतर है दोनों में
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के कार्यकाल की छापेमारी (Raid) को देखने वाले लोग दोनों में बहुत अंतर बताते हैं. लालू प्रसाद का औचक निरीक्षण या छापेमारी का कार्यक्रम उसी हालत में किसी मंत्री के घर के लिए बनता था, जब यह पक्की सूचना मिलती थी कि वहां कुछ विशेष रखा हुआ है. एक मंत्री के यहां ऐसे मौके पर वह पहुंच गये जब मंत्रीजी एक खास पेटी को ठिकाने लगाने की तैयारी कर रहे थे. यह बताना जरूरी नहीं है कि उस पेटी में क्या रहा होगा और उसके साथ क्या हुआ. वह मंत्रीजी के घर में पड़ी रही या लालू प्रसाद के साथ निकल गयी. खैर, उस दौर में ऐसी चर्चाएं खूब होती थी.

तब डर का भाव होता था
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की छापेमारी या औचक निरीक्षण की प्रक्रिया का विश्लेषण (Analysis) करें तो दोनों में बहुत अंतर मिलेगा. लालू प्रसाद के औचक निरीक्षण में डर का भाव होता था. वह जिसके घर पहुंचते थे, वह आदमी डर जाता था. नीतीश कुमार के औचक निरीक्षण में डर नहीं, सम्मान का भाव होता है. वह जिसके यहां जाते हैं, पूरा परिवार धन्य हो जाता है. मय खानदान फोटो उतारता है. उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म (Social Media Platform) पर डालता है. दूसरे मंत्रियों के मन में जलन का भाव रहता है कि हमारे घर क्यों नहीं आ रहे हैं. एकाध बार औचक निरीक्षण हो जाता तो इज्जत बढ़ जाती. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सिर्फ चार मंत्रियों को औचक निरीक्षण वाला सुख प्राप्त हो चुका है. देखिये आगे किसकी किस्मत खुलती है.

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