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इजरायल बनाम फिलिस्तीन : अड़े हैं सभी अपने-अपने दावे पर

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
14 अक्तूबर 2023

जरायल येरुशलम (Jerusalem) को अपनी राजधानी बनाना चाहता था. आधार यह कि उसकी पवित्रतम जगह, उसका टेम्पल माउंट यहीं है. परन्तु, यह उतना आसान नहीं था. यहूदियों की तरह मुसलमानों की भी इससे आस्था जुड़ी थी. मुसलमान पहले ही इजरायल (Israel) के गठन का विरोध कर रहे थे. ऐसे में येरुशलम और टेम्पल माउंट का नियंत्रण इजरायल को मिल जाता तो भयंकर खून-खराबा होता. साथ ही मुसलमानों के प्रति पक्षपात भी होता. इसी को दृष्टिगत रख संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की देखरेख में दुनिया के बड़े देशों ने एक मसौदा बनाया जिसे पार्टीशन रेजिल्यूशन कहा गया. इसमें फिलिस्तीन (Palestine) को दो भागों में बांट देने का प्रस्ताव था. येरुशलम पर अन्तर्राष्ट्रीय नियंत्रण की बात कही गयी. इस नियंत्रण का पहरेदार संयुक्त राष्ट्र ने खुद को बनाया.

1967 का ‘सिक्स डे वार’
इजरायल इस पर राजी था. परन्तु, अरब देशों ने इसे खारिज कर दिया. दोनों पक्षों के बीच संघर्ष हुआ. इसी संघर्ष का एक निर्णायक अध्याय था 1967 का ‘सिक्स डे वार.’ 5 जून से 10 जून 1967 तक चले इस युद्ध में एक तरफ इजरायल था तो दूसरी तरफ मिस्र, जोर्डन और सीरिया था. अमेरिकी सैन्य सामान से लैस इजरायल ने तीनों देशों को हरा दिया. मिस्र (Egypt) से गाजा पट्टी, सीरिया से गोलान की पहाड़ियां और जोर्डन से पूर्वी येरुशलम व पश्चिमी तट (वेस्ट बैंक) छीन लिया. पश्चिमी येरुशलम पर इजरायल का कब्जा पहले से था ही. पूर्वी येरुशलम पर कब्जे के बाद इस पवित्र भूमि पर उसका पूर्ण कब्जा हो गया, जिसका सपना यहूदी (Jewish) सदियों से देख रहे थे.

युद्ध के लिए मोर्चे पर इजरायली सेना.

नाखुश थे चरमपंथी
हालांकि, इजराइल बाद में गाजा पट्टी (Gaza Strip) से पीछे हट गया. इसके साथ ही टेम्पल माउंट के नियंत्रण में भी एक बड़ा बदलाव आया. एक समझौते के तहत इसके प्रबंधन का अधिकार जोर्डन (Jordan) को दे दिया गया. एक बड़ा बदलाव यह भी हुआ कि परिसर में प्रवेश की अनुमति यहूदियों को भी मिल गयी. इस रूप में कि पर्यटक के तौर पर वे आ तो सकते थे, पर वहां पूजा-पाठ नहीं कर सकते थे. इस समझौते से दोनों तरफ के चरमपंथी नाखुश थे. चरमपंथी मुस्लिम (Extremist Muslim) परिसर में गैर मुस्लिमों के घुसने तक से नाराज थे. दूसरी तरफ चरमपंथी यहूदी टेम्पल माउंट में प्रार्थना का अधिकार चाहते थे. इसको लेकर खूब फसाद हुआ. येरुशलम में दंगे हुए. टेम्पल माउंट (Temple Mount) के इर्द-गिर्द वर्षों तक तनाव बना रहा. छिटपुट संघर्ष और जोर आजमाइश की वारदातें भी होती रहीं.


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उभर आया कट्टर राष्ट्रवाद
इन सबके चलते इजरायल ने टेम्पल माउंट में कुछ समय के लिए मुस्लिमों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी. फिलिस्तीनी लीडरशिप ने इसे जंग का ऐलान माना. उसके बाद से ही फिलिस्तीनी इस परिसर को लेकर बेहद सशंकित रहते हैं. उनको लगता है कि इजरायल इस पर कब्जा करना चाहता है. यहूदी चरमपंथी भी इस आशंका को हवा देते रहते हैं. वैसे भी 1967 की जीत से यहूदियों में नफरत फैलाने वाले तत्वों को तरजीह मिलने लगी. एक तरह का कट्टर राष्ट्रवाद उभर आया जिसमें इजरायल के प्रति प्रेम कम, मुसलमानों और अरबों के प्रति नफरत ज्यादा थी. धीरे-धीरे इजरायल समाज और बौद्धिक वर्ग में ही नहीं, सेना जैसे प्रतिष्ठानों में भी यह नफरत जगह बनाने लग गयी. अंधराष्ट्रवाद (Jingoism) फैलने लगा. येरुशलम पर कब्जे के बाद यह लगभग मान लिया गया कि इजरायल अब पूर्वी येरुशलम को किसी भी हालत में खाली नहीं करेगा. यही वजह है कि यह राजनीतिक, रणनीतिक व भौगोलिक की जगह धार्मिक, भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक मुद्दा बन गया जिसपर कोई भी पक्ष एक इंच पीछे हटने को तैयार नहीं है. (शेष अगली कड़ी में )

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