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इजरायल बनाम फिलिस्तीन : किसकी ताकत है हमास के पीछे?

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विकास कुमार झा
16 अक्तूबर 2023

शिया के पश्चिमी हिस्से में एक छोटा-सा देश है फिलिस्तीन (Palestine). यह नाम उसे फिलिस्तिया से मिला है. फिलिस्तिया पांच शहरों- गाजा, ऐस्केलॉन, ऐशडोड, गाथ और एक्रॉन का एक समूह था. इस पर फिलिस्तिाइन्स नाम के लोगों का नियंत्रण था. फिलिस्ताइन्स संभवतः शरणार्थी (Refugees) थे, जो नये घर की तलाश में यहां आये थे.इतिहास में जिक्र है कि एक दफा फिलिस्ताइन्स और इजरायलियों में युद्ध हुआ. फिलिस्तिाइन्स सेना का नेतृत्व गोलायथ कर रहा था. इजरायली सेना का लीडर डेविड था. डेविड ने गुलेल के जरिये बलशाली गोलायथ को मार दिया. कालांतर में वही डेविड किंग ऑफ इजरायल बना. इजरायल और फिलिस्तीन का इतिहास हिंसा से भरा है. यह सब इजरायल (Israel) के गठन के पहले से चल रहा है. इजरायल के बनने के बाद भी इसमें कमी नहीं आयी, बल्कि इसका स्वरूप और विकराल ही होता जा रहा है. उसी विकरालता का एक खूनी अध्याय है हमास.

इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन
हमास (Hamas) का पूरा नाम हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया है. यानी इस्लामिक रेजिस्टन्स मूवमेंट (Islamic Resistance Movement). रेजिस्टन्स का मतलब होता है प्रतिरोध-इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन. हमास का गठन शेख अहमद यासीन नाम के एक फिलिस्तीनी मौलाना ने दिसम्बर 1987 में किया था. वह अंतराष्ट्रीय सुन्नी इस्लामिक संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड की फिलिस्तीनी शाखा से जुड़े थे. इस आधार पर उसे मुस्लिम ब्रदरहुड की राजनीतिक इकाई के रूप में जाना-माना गया. उसी दौरान फिलिस्तीन में दो इंतिफादा (विद्रोह) हुए. इंतिफादा अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ हिला देना होता है.

इजराइल हमास युद्ध में बर्बादी का एक खौफनाक दृश्य.

चाहिये इजरायल से आजादी
इंतिफादा का मतलब इजरायल से आजादी हासिल करना था. वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी येरुशलम को इजरायली कब्जे से मुक्त करवाना. यह 1987 का मूवमेंट कहलाता है. 1988 में उसने अपना चार्टर जारी किया. उसके दो प्रमुख लक्ष्य थे – इजरायल का विनाश और फिलस्तीन के ऐतिहासिक भू-भाग में इस्लामिक सोसायटी की स्थापना. इस इंतिफादा का इजरायल-फिलिस्तीनी संबंधों पर गहरा असर पड़ा. दोनों इंतिफादा में हमास की भागीदारी थी. हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर (International Level) पर इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद सुलझाने की पूरी कोशिश की गयी. उसी मशक्कत के तहत 1993 में ओस्लो समझौता (Oslo Agreement) हुआ.


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पीएलओ था प्रमुख संगठन
ओस्लो समझौते के अनुरूप फिलिस्तीनी नेतृत्व की ओर से इजरायल को मान्यता दे दी गयी और गाजा एवं वेस्ट बैंक में स्वशासन के लिए फिलिस्तीनियों की अंतरिम सरकार पर सहमति बन गयी. समझौते पर इजरायल की ओर से प्रधानमंत्री यितजाक रॉबिन और फिलिस्तीनियों की तरफ से यासिर अराफात ने हस्ताक्षर किये. यासिर अराफात (Yasser Arafat) फिलिस्तीनी लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (पीएलओ) के लीडर थे. पीएलओ फिलिस्तीन की आजादी के संघर्ष से जुड़ा प्रमुख संगठन था. यहां गौर करने वाली बात यह कि उसके द्वारा किये गये समझौते से अधिसंख्य फिलिस्तीनी सहमत नहीं थे. कई लोग अपने अधिकार छोड़े जाने का विरोध कर रहे थे. उन्हें बंटवारा मंजूर नहीं था. उन्हीें में एक हमास भी था. वह ओस्लो समझौते पर वार्ता का भी विरोधी था. इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के पांच माह पूर्व अप्रैल 1993 में उसने इजरायल पर अपना पहला फियादीन हमला किया. इसकी प्रेरणा उसे हेजबोल्लाह से मिली थी. जो हो, 1993 के फियादीन हमले के बाद हमास फिलिस्तीनी रेजिस्टेंस का सबसे बड़ा चेहरा बन गया.

जारी रहे आत्मघाती हमले
ओस्लो समझौते के मुताबिक, गाजा (Gaza) और वेस्ट बैंक (West Bank)के प्रशासन के लिए ‘फिलिस्तीनियन ऑथोरिटी’ (पीए) का गठन हुआ. इसके बाद भी हमास ने आत्मघाती हमले (Suicide Attacks) जारी रखे. इसके पीछे उसकी मुख्य रूप से दो मंशा थी. फिलिस्तीनी आबादी का समर्थन जुटाना और शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारना. कभी बस में, कभी कार में, कभी बाजार में हमास ने कई फियादीन हमले किये. उसकी खूनी हरकतों को देखते हुए 1997 में अमेरिका (America) ने उसे आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर दिया. इजरायल ने भी हमास को नेस्तनाबूद करने की बहुत कोशिश की. इसके बावजूद उसका प्रभाव, उसकी ताकत बढ़ती रही. उसे ईरान जैसे इजरायल विरोधी देशों से धन मिलने लगे. इससे उसका वजूद और मजबूत हुआ. उसकी बढ़ी आक्रामकता से ओस्लो समझौते से शांति की जो उम्मीदें बंधी थीं, वे पूरी नहीं हुईं.  (शेष अगली कड़ी में )

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