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नाट्य उत्सव : एक नहीं, कई रंग संस्थाएं हैं इस गांव में

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राजेश कुमार
27 अक्तूबर 2023

पंडारक (पटना): सौम्या भारती के पंडारक रंगमंच से जुड़ने की कहानी कुछ यूं है. वह छह वर्ष की थी तभी उसके पिता अजय कुमार ने अपने निर्देशन में मंचित नाटक ‘जल्लाद’ में बाल कलाकार के रूप में भूमिका निभाने का अवसर उपलब्ध कराया था. तब से वह तीन वर्षों तक रंगमंच (Stage) से जुड़ी रही. 2007 में पुंज प्रकाश के प्रयास एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) के सौजन्य से पंडारक में आयोजित नाट्य कार्यशाला में उसने भाग लिया था. उसके बाद 2014 तक वह रंगमंच से अलग रही. उस कालखंड में पंडारक में महिलाओं एवं बालिकाओं को रंगमंच से जुड़ने के लिए प्रेरित किया गया, लेकिन घूंघट की ओट से बाहर निकलने को कोई तैयार नहीं हुई. सिर्फ राममनोहर शर्मा की पौत्री अपर्णा का बाल कलाकार के रूप में जुड़ाव हुआ.

पुत्री को उतार दिया मंच पर
2015 में अजय कुमार पूर्व की तरह महिला रंगकर्मी के लिए पटना (Patna) गये तो उनके समक्ष यह सवाल उठा कि नाट्य मंचन के सौ वर्षों का इतिहास समेट रखे पंडारक ने इतने वर्षों में एक अदद भी महिला रंगकर्मी तैयार नहीं कर पाया? कहते हैं कि यह सवाल अजय कुमार को छू गया और उन्होंने तमाम अघोषित सामाजिक बंदिशों को ताक पर रख सौम्या भारती उर्फ आरती को मंच पर उतार दिया. इतना ही नहीं, अपनी छोटी बेटी गौरी को तबला वादन से जोड़ दिया. अजय कुमार स्वर्गीय हो चुके हैं. सौम्या भारती उर्फ आरती अलग-अलग छह नाटकों में भूमिका अदा कर चुकी है. उसे केन्द्र सरकार (Central Government) के कला-संस्कृति मंत्रालय से थियेटर श्रेणी में छात्रवृत्ति (Scholarship) भी मिली है.

पंडारक में है सूर्य मंदिर
बाढ़ (Barh) के समीप पवित्र पावन गंगा के किनारे बसा पंडारक गांव सूर्य मंदिर (Sun Temple) को लेकर भी प्रसिद्ध है. इस गांव का प्राचीन नाम पुन्यार्क है, ऐसा इतिहास की जानकारी रखने वालों का मानना है. पुन्यार्क मतलब पुण्य अर्क यानी देवों की भूमि. यहां स्थापित सूर्य मंदिर के बारे में आमधारणा है कि इसकी स्थापना द्वापर युग में हुई थी. जनश्रुतियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब ने श्राप से मुक्त होने के बाद इसका निर्माण कराया था. पंडारक आर्थिक रूप से समृद्ध और राजनीतिक रूप से चेतना संपन्न क्षेत्र माना जाता है. इसी पंडारक में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (NTPC) का बाढ़ संयंत्र स्थापित है.

एक नाटक का दृश्य.

आधुनिकता का समावेश
बिहार (Bihar) के ग्रामीण क्षेत्रों में नाट्य कला धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. पहले प्रायः सभी महत्वपूर्ण गांवों में नाट्य संस्था होती थी जो आमतौर पर दशहरा, दिवाली, काली पूजा और छठ पर्व के दौरान उत्साही गंवई कलाकारों के सहयोग से बांस-बल्ला और चौकी से बनाये गये अस्थायी मंच पर नाटकों का मंचन करती थी. कहीं-कहीं सरस्वती पूजा के अवसर पर भी नाटक खेले जाते थे. अब यह कुछ खास गांवों में सिमट गया है. उन गांवों में पंडारक अब भी मिसाल है. यहां की नाट्य कला (Theater Arts) में निरंतर निखार ही आ रहा है. नाट्य मंचन की पारंपरिक शैली में आधुनिकता का समावेश भी हो रहा है.

हिन्दी नाटक समाज
पंडारक में छोटी-बड़ी आधा दर्जन से अधिक नाट्य मंडलियां (नाट्य संस्थाएं) हैं-हिन्दी नाटक समाज, पुण्यार्क कला निकेतन, किरण कला निकेतन, कला मंदिर, आजाद कला परिषद, आजाद कला निकेतन नव आर्ट्स नाट्य परिषद आदि. इनमें हिन्दी नाटक समाज सबसे पुरानी संस्था है. जानकार बताते हैं कि पहले नाट्य मंचन का कोई नियत समय नहीं था. मंडली की जब इच्छा होती थी तब नाटकों का मंचन हो जाता था. 1922 से नियमित रूप से दुर्गा पूजा (Durga Puja) के अवसर पर नाट्य मंचन होने लग गया. हिन्दी नाटक समाज के अध्यक्ष रहे प्रेमशरण शर्मा तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अपने इस दायित्व का ईमानदार निर्वहन करते रहे हैं.


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नूर फातिमा का जुड़ाव
महत्वाकांक्षा (Ambition) को लेकर मतभेद कमोबेश हर संस्था में उभरता है. हिन्दी नाटक समाज में भी उभरा और उसका परिणाम दूसरी नाट्य संस्था – कला मंदिर के रूप में – सामने आयी. नवम्बर 1957 में मरांची गांव के विशुनदेव शर्मा ने इसकी बुनियाद रखी. पंडारक रंगमंच पर पहले पुरुष ही भेष बदल महिला चरित्र निभाते थे. कला मंदिर ने इस परम्परा को तोड़ पटना की महिला कलाकार (Female Artist) पी. श्रीवास्तव को पहली बार यहां के रंगमंच पर उतारा. उसके बाद यह चलन में आ गया. उसी क्रम में नूर फातिमा का जुड़ाव हुआ. महिला कलाकारों के अभिनय एवं नृत्य को रंगमंचीय विकृति बता कमलेश्वरी प्रसाद शर्मा कला मंदिर से अलग हो किरण कला निकेतन का अध्यक्ष बन गये. परन्तु, इस संस्था से भी उनका जुड़ाव लम्बा नहीं रह पाया और 2008 में इससे संबंध तोड़ वह पुण्यार्क कला निकेतन का अध्यक्ष पद संभालने लगे.

सराहनीय भूमिका
उधर, नाट्य संस्था कला मंदिर कुछ वर्षों की सक्रियता के बाद परिदृश्य से ओझल हो गयी. जहां तक किरण कला निकेतन की बात है, तो फिलहाल अमित कुमार इसके अध्यक्ष हैं. पूर्व अध्यक्ष राममनोहर शर्मा के पुत्र रविशंकर कुमार पेशे से अधिवक्ता हैं, पर इलाके में उनकी कुशल रंगकर्मी की भी पहचान है. भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) के सेवानिवृत्त सहायक महाप्रबंधक शिवकुमार शर्मा किरण कला निकेतन से जुड़े रहे हैं. रंगमंच के क्षेत्र में उनका अपना अलग रंग रहा है. किरण कला निकेतन के सचिव रमेश प्रसाद सिंह, रंगकर्मी चंदनदेव, लालजी चंदन, विकास कुमार, संजय जायसवाल, श्याम सुंदर सिंह, संजय सिंह, परमानन्द चौबे, उपेन्द्र शर्मा, पीयूष कुमार, दीपक कुमार, रामनगीना दास आदि की भूमिका भी काफी सराहनीय रहा करती थी. पटना की महिला कलाकार श्यामली चक्रवर्ती, इतु घोष, कल्पना दास एवं रूबी खातून का भी इस संस्था से जुड़ाव रहा है.

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