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सहरसा : ख्वाबों में ही हो चाहे, ओवरब्रिज तो है…!

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राजकिशोर सिंह
28 अक्तूबर 2023

Saharsa : स्थानीय लोगों की मानें, तो क्षेत्र के राजनीतिज्ञों, खासकर जदयू (JDU) सांसद दिनेश चन्द्र यादव ने इधर के वर्षों में इस रेलवे ओवरब्रिज को ‘दुधारु गाय’ बना रखा था. क्यों और कैसे, इसको इस रूप में समझने की जरूरत है. प्रस्तावित रेलवे ओवरब्रिज के नक्शे में बंगाली बाजार और आसपास के अन्य कई बाजारों की ढेर सारी दुकानें आती हैं. पूर्व विधान पार्षद इसराइल राईन के बहुचर्चित होटल का बड़ा हिस्सा भी. सामान्य धारणा है कि इस होटल को वोट की राजनीति से जोड़ देने की वजह से भी रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण टलता रहा है. वर्तमान में चिन्ह्ति दायरे के तमाम व्यवसायी रेलवे ओवरब्रिज (Railway Overbridge) के स्वीकृत एलाइंमेंट के विरोध में संगठित हैं.

बाजार नहीं उजड़े
वैसे, यह व्यवसायी वर्ग भी चाहता है कि रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण हो, परन्तु ऐसा कि उससे व्यवसाय को कम से कम नुकसान पहुंचे. उसके दायरे में आने वाले बाजार नहीं उजड़ें. व्यवसायियों के प्रतिनिधि संगठन ने इसी तर्क के साथ पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) का दरवाजा खटखटाया था. जानकार बताते हैं कि ऐसा ही कुछ समाधान निकलने की संभावना बनने पर बिहार राज्य पुल निर्माण निगम ‘कम से कम नुकसान’ पर लगभग सहमत हो गया है.

अघोषित ‘हितरक्षक’
शहर के लोग कहते हैं कि यह सब इधर के दिनों का घटनाक्रम है. इससे पहले सांसद दिनेश चन्द्र यादव (Dinesh Chandra Yadav) वैसे व्यवसायियों के अघोषित ‘हितरक्षक’ की भूमिका में थे. कहा जाता है कि ऐसा वह सहरसा नगर निगम के महापौर पद के चुनाव में अपनी पत्नी रेणु सिन्हा को व्यवसायी वर्ग का समर्थन दिलाने के ख्याल से कर रहे थे. चुनाव तक उन सबको इस भ्रम में डाल रखे थे कि रेलवे ओवरब्रिज का जो एलाइंमेंट है उसे वह बदलवा देंगे. ओवरब्रिज को रेलवे के क्षेत्र में समेट बाजारों को बचा लेंगे. यानी यह मुख्य बाजार होकर नहीं जायेगा.

सहरसा में रेलवे ओवरब्रिज के लिए सत्याग्रह. (फाइल फोटो )

खारिज कर दिया
दिनेश चन्द्र यादव की पहल पर सड़क जाम की समस्या के गहरा जाने की आशंका को आधार बना इस आशय का प्रस्ताव संभवतः रेलवे के समक्ष रखा भी गया था जिसे उसने खारिज कर दिया. मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के समक्ष भी गया. बताया जाता है कि स्पष्ट शब्दों में उन्होंने कहा कि दो-चार सौ लोगों के हितों के लिए दो लाख की आबादी को लंबे समय तक परेशानियों में नहीं रखा जा सकता. नीतीश कुमार की इस भावना को समझते हुए निविदा निकाली गयी.

पूर्व में भी कई बार…
हालांकि, ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ. पूर्व में भी कई बार निविदाएं निकलीं और रद्द हो गयीं. इस बार भी कुछ वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है. वैसे, अभी यह निविदा रद्द नहीं हुई है, डेढ़ माह के लिए विस्तारित की गयी है. यहां यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि 1996 में यह योजना 09 करोड़ की थी. 2014 में 55 करोड़ की हो गयी. उस दौरान इसे स्वीकृति भी मिल गयी. अब यह 183 करोड़ की हो गयी है. इसी की निविदा प्रकाशित हुई है.

रेलवे को अब मतलब नहीं
पहले यह रेलवे और बिहार सरकार (Bihar Government) की संयुक्त परियोजना थी. अब रेलवे इससे अलग है. उसकी भूमिका रेलवे की जमीन पर निर्माण की स्वीकृति देने तक में सिमट गयी है. ओवरब्रिज के लिए भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने 60 करोड़ 90 लाख 77 हजार की राशि स्वीकृत की है. शेष राशि बिहार सरकार देगी. उसमें से 105 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण पर खर्च होंगे. शेष संबंधित दूसरे कार्यों पर. 620 मीटर लंबे रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण बिहार राज्य पुल निर्माण निगम करेगा. जानकारों के मुताबिक डीबी रोड, कपड़ा पट्टी, शंकर चौक आदि में कुछ ऐसी जमीनें हैं जिनके भूधारियों को मुआवजा 1962 और 1964 में दिये जा चुके हैं. कल क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता, अभी के स्वीकृत नक्शे के मुताबिक निर्माण हुआ तब रेलवे ओवरब्रिज पूरब बाजार स्थित राइस मिल के समीप से शुरू होगा और वीआईपी रोड, बंगाली बाजार एवं डीबी रोड होते हुए शंकर चौक पर जायेगा. वहां यह दो दिशाओं में मुड़ जायेगा. एक खादी भंडार से पहले खत्म हो जायेगा तो दूसरा दहलान चौक और महावीर चौक होते हुए धर्मशाला रोड तक जायेगा.


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दायरा सिमट गया
एक दिशा को पहले खादी भंडार से आगे उतरना था. आरोप उछल रहे हैं कि पूर्व मंत्री आलोक रंजन ने अपनी और अपने भाई की दुकानों को इसकी चपेट में आने से बचाने के लिए उसका दायरा खादी भंडार से पहले ही खत्म करा दिया. इस आरोप में सच्चाई कितनी है, यह आलोक रंजन ही बता सकते हैं. तापमान लाइव डॉट कॉम ने उनसे सच्चाई जानने की कोशिश की. मिटिंग का बहाना बना कन्नी काट गये. इसका मतलब यह निकलता है कि आरोप में दम है.

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