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राजपाट और कायस्थ : बौद्धिकता का लाभ उठाया, कोई बड़ा पद नहीं दिया

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
07 अक्तूबर 2023

Patna : सत्ता और सियासत में कायस्थों की इससे बड़ी उपेक्षा और क्या हो सकती है कि लंबे समय तक इस समाज के किसी व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाया गया. रणवीर नंदन ने हाल के वर्षों में जद(यू) को मजबूत बनाने में खूब पसीना बहाया. उन्हें विधान परिषद की सदस्यता के एक कार्यकाल के अलावा और कुछ नहीं मिला. जबकि हर दृष्टि से वह मंत्री बनने की पात्रता रखते हैं, ऐसा कायस्थ समाज के लोगों का मानना है. इसी तरह प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी के साथ जद(यू) में शामिल हुए कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता सुमन कुमार मल्लिक, जिनकी नैतिकता (Morality) के सभी कायल हैं, उन्हें पार्टी के प्रदेश सचिव पद का ‘सांगठनिक झुनझुना’ थमाकर छोड़ दिया गया. विश्लेषकों की समझ है कि सुमन कुमार मल्लिक के अनुभव का लाभ सदन की सदस्यता दिलाकर लिया जा सकता था. उपेक्षा से त्रस्त रणवीर नंदन भाजपा (BJP) में और सुमन कुमार मल्लिक कांग्रेस (Congress) में लौट गये.

ऊपर उठने नहीं दिया गया
कुछ चुनावों में चूक गये राजीव रंजन प्रसाद को विधान परिषद की सदस्यता और मंत्री का पद मिलना ही चाहिये था. परन्तु, उन्हें प्रवक्ता (Spokesman) के पद से ऊपर नहीं उठने दिया जा रहा है. जबकि पार्टी के अन्य प्रवक्ताओं की तुलना में वह अपने दायित्व का बेहतरीन निर्वहन कर रहे हैं. प्रखर प्रवक्ता रहे अजय आलोक की भी कायस्थ समाज पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. इनके जरिये जद(यू) को जब-तब लाभ मिलता रहा है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि प्रवक्ता के तौर पर कायस्थ समाज की बौद्धिक क्षमता का जद(यू) भरपूर लाभ उठाता रहा और अब भी उठा रहा है. पर, सत्ता का अंशमात्र सुख भी उन्हें नहीं भोगने दिया. संगठन में भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी है. खिन्न होकर अजय आलोक (Ajay Alok) भाजपा में शामिल हो गये.


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फंसा रखा है भ्रमजाल में
जो हो, बुद्धि से परिपूर्ण और कलम को ही हथियार समझने वाली कायस्थ जाति को मुकम्मल रूप में सभी पार्टियों ने भ्रमजाल में फंसा रखा है. तमाम दलों की यह मंशा इस वजह से भी फलीभूत हो रही है कि चित्रगुप्त के वंशज सदा शालीनता से कर्त्तव्यनिष्ठा में जुड़े रहकर समाज की भलाई में लगे रहते हैं. सबसे बड़ी विशेषता यह कि व्यक्तिगत समस्याओं का भी सार्वजनिक और सर्वजन के हित में हल ढूंढ़ते हैं. लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. 1974 के छात्र आंदोलन को नेतृत्व देने से पूर्व वह ‘सर्वोदयी साधु’ थे. समाज की पीड़ा ने उनकी अंतरात्मा (Conscience) को जगा दिया. फिर जो कुछ हुआ उसका गवाह सारा विश्व है.

भूल गये सभी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद (Lalu Prasad) दोनों इसी आंदोलन की उपज हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी. ये तीनों लोकनायक जयप्रकाश नारायण के काफी निकट थे. उन्हीं की बदौलत इन्हें सत्ता सुख नसीब हुआ. लेकिन, सत्ता में आने के बाद उसी जाति को भूल गये जिसने इन्हें अपना मानकर आगे का रास्ता दिखाया. वैसे, महत्वपूर्ण बात यह कि पिछड़ा वर्ग के प्रभुत्व वाली सत्ता की वर्तमान राजनीति (Politics) में समस्त सवर्ण समाज की ही सांसें फूली हैं तो उसमें कायस्थ समाज की बिसात क्या बचती है?

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