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गड़बड़ गणित गठबंधन का : जदयू की मुनादी ने भर दी मायूसी!

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संजय वर्मा
25 जनवरी 2024

Patna : राजनीति के वर्तमान दौर में रीति-नीति, सिद्धांत और विचार तो महत्वहीन हो ही गये हैं, विश्वास जमाने लायक नेताओं का ऐसा कोई चरित्र भी नहीं रह गया है जिसको आधार बना राजनीतिक हालात का आकलन-विश्लेषण किया जा सके. सुबह में कुछ, शाम में कुछ, तनिक भी स्थायित्व नहीं. इसके बावजूद पाठकीय भूख मिटाने के लिए राजनीति का आकलन-विश्लेषण तो करना पड़ता ही है. यह कहने में कोई लज्जा या संकोच नहीं कि नेताओं के बात-विचार में अस्थिरता के कारण अधिकतर विश्लेषण विश्वसनीयता (Analysis Reliability) की कसौटी पर खरा नहीं उतरते. ऐसी ही परिस्थितियों में बिहार की राजनीति (Politics) में इन दिनों क्या कुछ हो रहा है, जो हो रहा है उसका फलाफल क्या निकल सकता है, उसकी चर्चा यहां की जा रही है.

बिखराव का खतरा
विपक्षी दलों के गठबंधन- आईएनडीआईए के संयोजक पद (Coordinator Post) के लिए दबाव की राजनीति कहें या भाजपा (BJP) की तरफ मुड़ जाने की घुड़की, जदयू ने बिहार की16-17 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ने और पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा वर्ग के अपने सासंदों की सीटिंग सीटें दूसरे किसी सहयोगी दल के लिए नहीं छोड़ने की मुनादी कर महागठबंधन की राजनीति में अनिश्चितता भर दी है. जदयू (JDU) के प्रदेश प्रवक्ता से लेकर राष्ट्रीय प्रवक्ता तक इस मुनादी को दुहरा-तिहरा रहे हैं. अंतिम परिणति क्या होगी, यह वक्त बतायेगा. फिलहाल इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जदयू के इस निर्णय पर अडिग रहने से या तो महागठबंधन बिखर जायेगा या चुनाव में घटक दलों के बीच भितरघात का ऐसा खेल होगा कि नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को केन्द्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने का संकल्प और लक्ष्य उसी में उलझ कर रह जायेगा. महागठबंधन के बड़े घटक राजद (RJD) के जनाधार में भटकाव का खतरा उत्पन्न हो जायेगा सो अलग.


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फिर बचेगा क्या?
ऐसे एक नहीं, अनेक संसदीय क्षेत्र (Parliamentary Area) हैं जहां जदयू की दावेदारी से राजद का हित प्रभावित होता दिख रहा है. उसकी दावेदारी इसी तरह बनी रही, तो राजद समर्थक सामाजिक समूह राजनीति की दूसरी धारा में बह जा सकते हैं.जदयू के कब्जे वाले झंझारपुर, मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया, बांका, भागलपुर, जहानाबाद, काराकाट आदि ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं, जहां राजद का मजबूत जनाधार है. एक-दो को छोड़ इन तमाम क्षेत्रों में यादव मतों की बहुलता है. ऐसे में महागठबंधन में ये सीटें फिर से जदयू के हिस्से में जाती हैं, तो राजद में यादव के लिए बचेगा क्या?

भितरघात का खतरा
श्राजद नेतृत्व मानने को मजबूर हो भी जाता है, तो क्या इन क्षेत्रों के दावेदार नेता, कार्यकर्ता और राजद समर्थक सामाजिक समूह, विशेष कर यादव समाज के लोग उसे आसानी से पचा पायेंगे? ऐसा भी नहीं कि यह संकट राजद में ही है, जदयू को भी समान रूप से ऐसे हालात का सामना करना पड़ सकता है. गठबंधन (Alliance) की विवशता के आगे वह झुक जाता है, तो उसके समर्थक (Supporter) सामाजिक समूहों की निष्ठा उससे बंधी रह पायेगी? नहीं, तो फिर वे राजनीति की दूसरी राह नहीं बढ़ जायेंगे? यही कुछ सवाल हैं, जो महागठबंधन में भितरघात की आशंका को बल दे रहे हैं. (जारी)

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