तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

नीतीश कुमार की सरकार : कांटे की नोंक पर ओस का कतरा !

शेयर करें:

अविनाश चन्द्र मिश्र
01 मार्च 2024

बिहार की सियासत में अभी समुद्र के अंदर जैसी हलचल है. समुद्र के भीतर जब कभी तेज हलचल होती है तो उसमें उफान आता है. लम्बी और ऊंची लहरें उठती हैं जो विध्वंस का वाहक बन जाती हैं. बिहार की सत्ता-राजनीति करीब-करीब वैसी ही स्थिति से गुजर रही है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की ‘राजग संस्करण’ वाली नयी सरकार के विश्वास मत हासिल करने से पहले कोई ऐसी अस्थिरता पैदा होने की बात करता था, विधानसभा के विघटन और राष्ट्रपति शासन की संभावना जताता था तो ऐसी तमाम बातें तर्कहीन लगती थीं. इसलिए कि तब ऐसे कयास का कोई ठोस आधार नहीं था. दूर-दूर तक ऐसी कोई आशंका नहीं दिखती थी.

विस्मयकारी खेल
छोटे अंतर से ही सही, नीतीश कुमार की सरकार को भरोसे लायक बहुमत था. विधायकों का लगभग डेढ़ साल का कार्यकाल भी बचा हुआ था . ऐसे में विधानसभा को भंग कर नये चुनाव में जाने का जोखिम उठाने की बात अर्थहीन लगती थी. लेकिन, विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान दलीय निष्ठा बदलने का जो विस्मयकारी खेल (Amazing Game) हुआ उससे राजनीति में समुद्र के अंदर जैसी हलचल होने और विध्वंसकारी लहरें उठने का खतरा स्पष्ट रूप से दिखने लगा है. यानी विधानसभा के भंग होने और राज्य के नये चुनाव की राह बढ़ने के आसार नजर आने लगे हैं. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार की सरकार कांटे की नोंक पर ओस के कतरा जैसे हालात में है. किस क्षण पतन हो जायेगा, कहना कठिन है. वैसे, भाजपा (BJP) की कोशिश कम से कम लोकसभा के चुनाव तक इसे बचाये रखने की हो रही है. इस कोशिश से हालात बदल जाये, संकट टल जाये तो वह अलग बात होगी.

सूत्र नहीं समझाते तब…
पहले अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास मत के दौरान हुए राजनीतिक (Political) खेल की बात. 128 यानी सात मतों के अंतर का बहुमत… अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास मत के दौरान विधायकों में टूट की आशंका के बावजूद सत्ता के दोनों मुख्य साझीदार भाजपा और जदयू के रणनीतिकार किला फतह कर लेने के प्रति आश्वस्त थे. इतने कि अपने विधायकों में विपक्ष की सेंधमारी का उन्हें तनिक भी अहसास नहीं हुआ. राजद (RJD) के राष्ट्रीय प्रवक्ता सांसद मनोज कुमार झा (Manoj Kumar Jha) अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से संबंधित 122 सदस्यों ( कुल 243 सदस्यों के आधे से एक अधिक ) के समर्थन की अनिवार्यता के सूत्र को सार्वजनिक नहीं करते, सत्ता पक्ष के सिर्फ सात विधायकों के भीतरघात से तख्ता पलट जाने के खतरे की तरफ इशारा नहीं करते, तो नेतृत्व की आत्ममुग्धता में राजग (NDA) की नयी सत्ता विलीन हो जाती.

अमित शाह की ‘करामात’
भाजपा के तीन विधायकों – मिश्री लाल यादव, रश्मि वर्मा और भागीरथी देवी तथा जदयू के पांच विधायकों डा. संजीव कुमार, सुदर्शन कुमार, मनोज यादव, दिलीप राय और बीमा भारती की निष्ठा तो कथित रूप से डगमगा गयी ही थी, भीतरघात की हद तक असंतोष जदयू के अन्य कई विधायकों में भी था. ऐसे पांच- सात नहीं, इक्कीस विधायक मौके की ताक में थे. अब इसे नित्यानंद राय (Nityanand Rai) की ‘बाजीगरी’ मानिये या उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा की, अंतिम समय में विपक्षी बेंच से राजद के तीन विधायकों-चेतन आनंद,नीलम देवी और प्रहलाद यादव को सत्ता पक्ष में बिठा सरकार बचा ली गयी. वैसे, कहा गया कि यह सब केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की ‘राजनीतिक करामात’ थी. विधानसभा (Assembly) के चलते सत्र में कांग्रेस के दो विधायकों मुरारी गौतम और सिद्धार्थ सिंह तथा राजद की संगीता कुमारी के सत्ता पक्ष से अप्रत्याशित जुड़ाव से राजनीति (Politics) चकित रह गयी. सत्र के अंतिम दिन राजद के एक और विधायक भरत बिन्द (Bharat Bind) सत्ता पक्ष से जुड़ गये.

दृश्य कुछ और होता
राजद के तीन विधायकों के पाला बदल के पीछे का स्वार्थ विवेचना का एक अलग विषय है. विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी (Awadh Bihari Chaudhary) के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव महागठबंधन के 112 के मुकाबले 125 मतों से पारित हो गया. लेकिन, यहां समझने वाली बात है कि अंतिम क्षण में राजद के तीन विधायकों का ‘जुगाड़’ नहीं किया जाता तो क्या यह पारित हो पाता ? ये तीनों विधायक राजद का साथ छोड़ने को तैयार नहीं होते, तो राजनीति का दृश्य आज कुछ और होता. तमाम कोशिशों के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के पक्ष में 125 की जगह 121 मत ही जुट पाते. सरकार अल्पमत में आ जाती. मूल राजग के सदस्यों की संख्या 122 इसलिए हो गयी कि रणनीति के विफल होते देख इस पूरे प्रकरण के कथित सूत्रधार डा. संजीव कुमार (Dr. Sanjeev Kumar) सदन में प्रकट हो गये. पर, पांच अनुपस्थित ही रहे.

सभी उपस्थित हो गये
अनुपस्थित रहने वालों में भाजपा के तीन- मिश्री लाल यादव, रश्मि वर्मा और भागीरथी देवी तथा जदयू के दो- बीमा भारती और दिलीप राय थे. हालांकि, ह्वीप के उल्लंघन में सदस्यता खत्म हो जाने के डर से सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव के वक्त जदयू के दिलीप राय को छोड़ सभी उपस्थित हो गये. विपक्षी सदस्यों के सदन से बहिर्गमन के बीच 129 सदस्यों के समर्थन से विश्वास का मत पारित हो गया. आसन पर उपाध्यक्ष विराजमान थे. इस आधार पर विश्वास मत को 130 विधायकों का समर्थन प्राप्त होना माना गया. यह सब तो हुआ, पर यक्ष प्रश्न बना ही हुआ है कि क्या नीतीश कुमार की सरकार ‘खतरा मुक्त’ हो गयी है?


ये भी पढें :
इस समाजवादी नेता से ऐसी उम्मीद नहीं थी सुशासन बाबू को!
जयप्रकाश नारायण के सपनों को अपनों ने रौंदा!
लालू – राबड़ी शासन को ‘जंगल राज’ की संज्ञा दिलाने वाला यह मामला…!


खतरा खत्म नहीं
राजनीति की हल्की- फुल्की समझ रखने वाला भी तपाक से कह बैठेगा- खतरा खत्म नहीं हुआ है. कदम-कदम पर बना हुआ है. नीतीश कुमार की सरकार को निगल जाने को मुंह खोल कर खड़ा है. आशंका इसके बजट सत्र के दौरान ही जमीन सूंघ लेने की थी. मंत्रिमंडल का विस्तार संभवतः इसी खतरे के कारण लंबित है. समझ यह कि मंत्रिमंडल विस्तार (Cabinet Expansion) के बाद असंतुष्ट विधायकों में उपजने वाला गुस्सा कोई नया गुल खिला दे सकता है. वैसे, सदस्यता समाप्ति का भय संजीवनी का काम करे तो वह अलग बात होगी. ऐसी ही संजीवनी के लिए राजद और कांग्रेस के विधायकों का पाला बदल कराया जा रहा है. इसका एक मकसद भाजपा और जदयू के असंतुष्ट विधायकों के दबाव से मुक्त होना भी हो सकता है.

सरकार गिर गयी तब!
सरकार के अस्तित्व पर खतरा जदयू (JDU) के दस से अधिक विधायकों में लोकसभा का चुनाव लड़ने की उफनती महत्वाकांक्षा भी पैदा कर दे सकती है. राजग में उम्मीदवारी की संभावना नहीं के बराबर है. महागठबंधन में अवसर उपलब्ध हो गया तब उनके पांव उस ओर बढ़ जा सकते हैं. वैसे, अध्यक्ष ‘अपना’ हैं. ‘संकट कटे हरे सब पीरा!’ इन सब के बाद भी सरकार गिर गयी तो फिर…! इस परिप्रेक्ष्य में लोकसभा चुनाव के साथ नहीं, तो उसके बाद विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की संभावना को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. इसलिए कि दोनों ही हालात में ऐसी परिस्थितियां बन सकती हैं. राजग की बड़ी कामयाबी विधानसभा में बड़े बहुमत के लिए नये चुनाव का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. नाकामयाबी सरकार के पतन का कारण बन जा सकती है. असंतुष्ट विधायकों के सुरक्षित ठांव तलाशने का प्रयास मध्यावधि चुनाव (Midterm Elections) का आधार बना दे तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. बहरहाल, हलचल भरी सियासत से लहरें कैसी उठती हैं और उसका असर क्या और किस पर पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा.

#Tapmanlive

अपनी राय दें