मिनी चितौड़गढ़ की चुनौती झेल पायेगी इस बार भाजपा?
विष्णुकांत मिश्र
11 अप्रैल 2024
Aurangabad : बिहार के चुनावों में जन सरोकार से जुड़े मुद्दे अलंकार की तरह होते हैं. नेताओं के कहने और समर्थक मतदाताओं (Voters) के सुनने के अलावा उन मुद्दों का और कोई मायने मतलब नहीं होता है. चुनावों की राजनीति (Politics) और रणनीति मुख्यतः जाति पर आधारित होती है. इसलिए इधर-उधर न भटक सीधे जातीय समीकरण व धुव्रीकरण की बात की जा रही है. मसलन इस संसदीय क्षेत्र में किस जाति की कितनी आबादी है, राजनीतिक रुझान क्या है. किस राजनीतिक दल से जुड़ाव है. चुनावों पर उसका क्या असर पड़ता रहा है, इस बार क्या पड़ सकता है आदि.
बड़ी आबादी राजपूतों की
पहले विभिन्न जातियों की आबादी क्या है यह जानते हैं. वैसे, जातियों की आबादी का क्षेत्रवार वैसा कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है जिसे विश्वसनीय माना जाये. अनुमानित आंकड़ों पर भरोसा करें तो औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र में राजपूत बिरादरी की बड़ी जनसंख्या है. वहां का इतिहास भी है कि स्वतंत्र भारत (India) में प्रथम चुनाव से लेकर 2019 के चुनाव तक इसी समाज के सांसद निर्वाचित होते रहे हैं. इस कारण इसे ‘मिनी चित्तौड़गढ़’ कहा जाता है. राजपूत मतों की संख्या तीन लाख के आसपास रहने की बात कही जाती है.
यादव मत भी कम नहीं
दूसरी बड़ी आबादी यादव (Yadav) समाज की है. इसके मतों की संख्या भी लगभग राजपूतों जितनी ही है. तकरीबन तीन लाख. जातीय राजनीति में रुचि रखने वालों के मुताबिक राजपूत और यादव के बाद बड़ी आबादी मुस्लिम और दांगी-कुशवाहा समाज की है. दो लाख के आसपास मुस्लिम मत हैं तो सवा लाख के करीब दांगी- कुशवाहा (Kushwaha) मत. 20 हजार की संख्या वाले कुर्मी मत प्रभावकारी भूमिका में नहीं हैं. ब्राह्मण व भूमिहार मतों की अनुमानित संख्या लगभग डेढ़ लाख है. आलग-अलग इतनी ही संख्या में रविदास और पासवान मत हैं. पौने दो लाख वैश्य मतदाता हैं. शेष अन्य जातियों के हैं. उनमें कहार और मुसहर समाज के मतों की संख्या अधिक बतायी जाती है.
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राजनीतिक रुझान
बात अब इन जातियों के राजनीतिक रुझान और दलों से जुड़ाव की. अपवाद हर जगह होते हैं, इस मामले में भी होंगे. सामान्य समझ में सवर्ण समाज का एकनिष्ठ जुड़ाव राजग (NDA) से है. इस वर्ग को भाजपा समर्थक सामाजिक समूह माना जाता है. वैश्य समाज के बारे में भी ऐसी ही धारणा है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के चलते कुर्मी, चिराग पासवान (Chirag Paswan) को लेकर पासवान और जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) के चलते मुसहर समाज के मत राजग से जुड़े माने जाते हैं. कथित रूप से जाति की राजनीति करने वाले उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) भी अभी राजग में हैं. औरंगाबाद में राजद के कुशवाहा उम्मीदवार के मामले में उनकी भूमिका क्या होती है, इस पर सब की नजर रहेगी.
बसपा की हैसियत
औरंगाबाद में बसपा की हैसियत भी उल्लेख करने लायक है. रविदास समाज को बसपा का समर्थक माना जाता है. पर, चुनावों में उसकी मुकम्मल झलक नहीं दिखती है. उम्मीदवार हर चुनाव में उतरते हैं, कुछ हजार मतों में सिमट कर रह जाते हैं.
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