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छपरा : दुहरा तो नहीं रहा इतिहास?

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विकास कुमार
24 मई 2024
Patna : बहुत सारी राजनीतिक विशिष्टताओं के साथ 2024 के संसदीय चुनाव (parliamentary elections) की सरगर्मी अब अवसान की ओर है. राज्य के चालीस में से अधिसंख्य संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव कार्य पूरे हो गये हैं. मतदाताओं ने उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला कर दिया है. वह ईवीएम (EVM) में लॉक है. इस चुनाव के दौरान चिंता बढ़ाने वाली बात यह दिखी कि लाठीतंत्र – बंदूकतंत्र की भूमिका बिहार में नये सिरे से तय करने की कोशिश सरजमीं पर दिखने लगी है. मताधिकार के अपहरण की कोशिश. खून बहाने का बेखौफ अंदाज !

तब आम बात थी यह
चुनावों में बूथ लूट- बूथ कब्जा पिछली शताब्दी में दशकों तक आम बात रही. इससे बिहार के चुनाव रक्तरंजित होते रहे. देव योग से इस लाठीतंत्र- बंदूकतंत्र के जहरीले – नुकीले दांत को निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी के जे राव (K J Rao) ने तोड़ा. यहां मतपत्रों के लुटेरे जनतांत्रिक दुश्मन को काले इतिहास का हिस्सा मान लिया गया. पर, के जे राव अब फिर शिद्दत से याद आ रहे हैं. 2019 में भी याद आये थे. उस चुनाव में ही लोगों ने देखा और सुना कि बिहार (Bihar) में बूथ लूट और बूथ कब्जा की प्रवृत्ति नये सिरे से सिर उठाने लगी है.

2019 में भी हुई थी कोशिश
हैरान करने वाली बात यह कि इस प्रवृत्ति को प्रशासन (Administration) की मदद भी मिल रही है. 2019 में नवादा (Nawada) और मुंगेर (Munger) संसदीय क्षेत्रों में बूथ लूट व बूथ कब्जा की सुनियोजित कोशिश हुई थी, मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) व सारण (saran) में मतदान व्यवस्था को दूषित करने में प्रशासनिक सहयोग का नजारा देखने को मिला था. इस बार मुंगेर और छपरा में वैसा ही कुछ हुआ. छपरा (Chhapra) में मतदान बाद राजद और भाजपा (B J P) समर्थकों के बीच खूनी झड़प हुई. राजद (RJD) का एक समर्थक मारा गया. मुंगेर की राजद प्रत्याशी कुमारी अनिता और सारण की राजद प्रत्याशी रोहिणी आचार्य के साथ मतदान केंद्रों पर अभद्रता हुई. बूथ कब्जा के आरोप उछले.


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विडम्बना ही कहेंगे
2019 और 2024 की इन घटनाओं के बाद बूथ लूट व बूथ कब्जा के फिर से परिपाटी बन जाने की आशंका बड़ा आकार लेने लगी है. विडम्बना देखिये, इन घटनाओं को उन लोगों के संरक्षण में अंजाम दिया जा रहा है जिन्होंने 1985 में कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) की अगुवाई में चुनाव में राजनीतिक शुचिता व बूथ को बचाने के लिए पटना में ही बड़ा सम्मेलन किया था. कांग्रेस व भाजपा को छोड़ राज्य के सभी राजनीतिक दल और उनके नेता उस सम्मेलन के आयोजकों में थे जिनमें कुछ आज गैर कांग्रेसी तो कुछ गैर भाजपाई राजनीति के पैरोकार बने हुए हैं, देश में पूजित हो रहे हैं.

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