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गोपालगंज : मिलती नहीं जीत दोबारा!

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महर्षि अनिल शास्त्री
24 मई 2024
Gopalganj : बगैर किसी भूमिकाबाजी के सीधे तौर पर कहें, तो अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित गोपालगंज संसदीय क्षेत्र कांटे के मुकाबले में इत्मीनान किसी तरफ नहीं है. वैसे, धुंधले तौर पर ही सही, बदलाव के आसार दिख रहे हैं. इस आसार को मजबूती इससे मिल रही है कि परिवर्तित भौगोलिक व सामाजिक स्वरूप वाले इस संसदीय क्षेत्र की परम्परा रही है कि यहां दुबारा सांसद बनने का सौभाग्य किसी को प्राप्त नहीं हुआ है. सत्ता विरोधी रुझान को नजरअंदाज कर दोबारा जदयू (JDU) के उम्मीदवार बना दिये गये डा. आलोक कुमार सुमन (Dr. Alok Kumar Suman) इस मिथक को तोड़ देंगे, चुनाव की दृष्टि से इतनी कूबत उनमें नहीं दिखती है.

दूर-दूर ही रहे
इस संदर्भ में सामान्य तर्क है कि पांच वर्षीय सांसद कार्यकाल में उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे कि लोग उनसे प्रभावित हों. जनता से संवाद कायम करने की बात छोड़िये, आमतौर पर दूर-दूर ही रहे. उनके सुख-दुख का कभी ख्याल नहीं रखा. मदद के लिए कोई दरवाजे पर गया तो उसकी मुसीबतों के प्रति गंभीरता नहीं दिखायी. यह धारणा विपक्षी दलों के समर्थकों की नहीं, एनडीए के समर्थकों की है. विश्लेषकों का मानना है कि सामान्य जन से इस दुराव का असर तो है ही, एनडीए समर्थकों की उदासीनता भी परेशानी का बड़ा कारण बनी हुई है.

कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं
पांच चरणों के मतदान के रूख से साफ संकेत मिल रहा है कि सिर्फ ‘मोदी की गारंटी’ के भरोसे रह गये तो फिर बेड़ा गर्क ! जीत के लिए कार्यकर्ताओं को उत्साहित रखना आवश्यक है. एनडीए की तरफ वैसा कुछ नहीं दिख रहा है. मतदान के दिन रूख बदल जाये तो वह अलग बात होगी. डा. आलोक कुमार सुमन के खिलाफ जन सरोकार से जुड़ीं अनेक प्रकार की शिकवा – शिकायतों के साथ सत्ता विरोधी रुझान है, कार्यकर्ताओं – समर्थकों में थकान है, तो दूसरी तरफ महागठबंधन (grand alliance) ने जिस प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान (Premnath Chanchal alias Chanchal Paswan) को अखाड़े में उतारा है उनमें युवा जोश है. कार्यकर्ताओं – समर्थकों में उफान है. प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार हैं.


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तब भी आश्वस्ति नहीं
महागठबंधन के राजनीतिक व सामाजिक समीकरण से सरसरी तौर पर मजबूती मिलती दिख रही है. पिता सुदामा मांझी (Sudama Manjhi) के लम्बे समय तक भाजपा से जुड़े रहने का लाभ भी मिल रहा है. लोग कहते हैं कि सुदामा मांझी सामाजिक सरोकार से भी जुड़े रहे हैं. इसका भी फ़ायदा मिल सकता है. पर, इन सबके बाद भी आश्वस्ति नहीं है तो प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान की अनुभवहीनता उसमें आड़े आ रही है. महागठबंधन के स्थानीय नेताओं- कार्यकर्ताओं में समन्वय का अभाव भी बड़ी समस्या बनी हुई है. वीआईपी (vip) के समर्थक भी इस बात को महसूस कर रहे हैं, पर बेबस हैं.

परेशानी बढ़ायेगी उनकी
सुरेन्द्र राम (Surendra Ram) बसपा के उम्मीदवार हैं. 2014 और 2019 में वह स्वतंत्र उम्मीदवार थे. 2014 में 15 हजार 600 और 2019 में 13 हजार 807 मतदाताओं का समर्थन मिला था. इससे यह माना जा सकता है कि तकरीबन 15 हजार मत उनके खुद के प्रभाव के हैं. 2019 में बसपा की उम्मीदवारी कुणाल किशोर विवेक (Kunal Kishore Vivek) को मिली थी. उनकी उपलब्धि 36 हजार 016 मतों की थी. बसपा प्रत्याशी के तौर पर इस बार सुरेन्द्र राम क्या कुछ हासिल कर सकते हैं, इन आंकड़ों से आसानी से समझा जा सकता है. वैसे, उनकी प्राप्ति जदयू प्रत्याशी डा. आलोक कुमार सुमन की ही परेशानी बढ़ायेगी.

एमआईएम की उम्मीदवारी
इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2022 के विधानसभा उपचुनाव में अपनी मौजूदगी से गोपालगंज में राजद (RJD) की सेहत खराब कर देने वाली असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी एमआईएम (mim) ने संसदीय चुनाव में भी उम्मीदवार उतार रखा है. उसकी उम्मीदवारी दीनानाथ मांझी (Dinanath Manjhi) को मिली है जो गोपालगंज जिला चौकीदार दफादार संघ के अध्यक्ष हैं. 2019 में वह निर्दलीय उम्मीदवार थे. अपने बूते 15 हजार 600 मत बटोरने में सफल रहे थे. इस बार उन्हें एमआईएम की उम्मीदवारी दिलवाने में गोपालगंज में पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे अनस सलाम की बड़ी भूमिका है. अनस सलाम विधानसभा उपचुनाव में एमआईएम के उम्मीदवार रहे अब्दुल सलाम उर्फ असलम मुखिया के पुत्र हैं.

हार गये मामूली अंतर से
उपचुनाव में अब्दुल सलाम उर्फ असलम मुखिया को 12 हजार 214 मत मिले थे. राजद प्रत्याशी मोहन प्रसाद गुप्ता 01 हजार 794 मतों के मामूली अंतर से हार गये थे. ऐसा माना गया कि अब्दुल सलाम उर्फ असलम मुखिया मैदान में नहीं होते, तो राजद की जीत हो जाती. पूर्व मुखिया अब्दुल सलाम उर्फ असलम मुखिया एमआईएम के प्रदेश सचिव थे. 12 फरवरी 2024 को उनकी हत्या हो गयी.

अवसर मिल गया
सामाजिक सरोकार से जुड़े वसीम खान (Wasim Khan) की मानें, तो मुस्लिम समुदाय में अंदरूनी तौर पर खौल रहे असंतोष का लाभ इस बार एमआईएम को मिल जाये तो वह चौंकने – चौंकाने वाली बात नहीं होगी. राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर यह समुदाय महागठबंधन, विशेष कर राजद से क्षुब्ध तो है ही, सीवान (siwan) में हीना शहाब (Heena Shahab) के साथ हुए उपेक्षापूर्ण बर्ताव ने सुलगती आग में घी डाल दिया है. वसीम खान के मुताबिक मुस्लिम समुदाय को इस उपेक्षा के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शित करने का अवसर मिल गया है. इसे वह खोना नहीं चाहेगा. श्विलेषकों का मानना है कि ऐसा हुआ तो प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान की नाव मझधार में फंस जा सकती है.

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