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राजनीति है हैरान : कहां खिलेगी मुस्कान !

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अविनाश चन्द्र मिश्र
27 मई 2024

बिहार में संसदीय चुनाव के तीसरे चरण में 07 मई 2024 को अररिया, मधेपुरा, सुपौल, झंझारपुर और खगड़िया में मतदान हुए. 2019 में इन सभी सीटों पर एनडीए (NDA) की जीत हुई थी. इस बार उसकी पकड़ बरकरार रही पायेगी, इसमें संदेह है. राजधानी (Capital) तक आती खबरों के अनुसार मुस्लिम बहुल अररिया (Araria) के एनडीए के हाथ से निकल जाने की प्रबल संभावना है. धार्मिक आधार पर कामयाबी लायक मतों का धु्रवीकरण नहीं होने से भाजपा (BJP) प्रत्याशी प्रदीप सिंह (Pradeep Singh) का बेड़ा पार लगना कठिन है. राजद (RJD) उम्मीदवार शाहनवाज आलम (Shahnawaz Alam) से उन्हें कड़ी चुनौती मिली है. ‘मोदी की गारंटी’ और ‘भाई के भितरघात’ ने अंदरूनी तौर पर हालात बदल दिये हों तो वह अलग बात होगी.

‘चमत्कार’ मानेगी राजनीति
अररिया की तरह खगड़िया को बचाये रखना भी एनडीए के लिए मुश्किल दिख रहा है. भागलपुर निवासी राजेश वर्मा (Rajesh Verma) लोजपा-आर (LJP-R) के उम्मीदवार हैं. समाजिक समीकरण की दृष्टि से क्षेत्र के अनुकूल नहीं रहने के बाद भी मुस्कान खिल जाये तो राजनीति उसे ‘चमत्कार’ ही मानेगी. मधेपुरा में जदयू (JDU) के दिनेश चन्द्र यादव, सुपौल में दिलेश्वर कामत और झंझारपुर में रामप्रीत मंडल के खिलाफ उफनता असंतोष मतदान केन्द्रों पर भाप बन गया. शुरुआती दौर की अपेक्षा हालात अनुकूल हो गये. 13 मई 2024 को चौथे चरण में दरभंगा, समस्तीपुर, उजियारपुर, बेगूसराय एवं मुंगेर में मतदान हुए. ये तमाम सीटें भी एनडीए के खाते की हैं. इन सीटों पर इस बार कांटे की टक्कर है.

अगड़ा बनाम पिछड़ा
लम्बे अरसे बाद राज्य की राजनीति को फिर से अगड़ा बनाम पिछड़ा (forward vs backward) की राह धराने जैसा संघर्ष बेगूसराय और मुंगेर में हुआ. बेगूसराय में एनडीए के कट्टर हिन्दूवादी चेहरा गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) और मुंगेर में अहंकारी चेहरा राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh alias Lalan Singh) को इससे कम परेशानी नहीं हुई है. चौथे चरण की सीटों को लेकर जीत-हार के बारे में किसी राजनीतिक गठबंधन के लिए कुछ भी कहना मुश्किल है. पर, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इस बार एनडीए की एकतरफा जीत कठिन है. एनडीए कुछ सीटें गंवा सकता है. हालांकि, दरभंगा, समस्तीपुर और उजियारपुर में बदलाव के शोर के बीच जीत का दुहराव हो जाये तो वह हैरान करने वाली बात नहीं होगी.

एनडीए की प्रतिष्ठा दांव पर
पर, पांचवें चरण की मधुबनी, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, सारण और हाजीपुर की सीटों पर एनडीए की प्रतिष्ठा दांव पर है. इन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में 20 मई 2024 को मतदान हुए. मधुबनी में अली अशरफ फातमी (Ali Ashraf Fatmi) की राजद की उम्मीदवारी से एनडीए को थोड़ी राहत है. लोग बताते हैं कि धार्मिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण हो गया है. भाजपा प्रत्याशी अशोक कुमार यादव (Ashok Kumar Yadav) को किस्मत का साथ नहीं मिला तो वह अलग बात होगी. सीतामढ़ी में अनेक जतन के बावजूद महागठबंधन (grand alliance) की बढ़त दिख रही है. एनडीए के जदयू उम्मीदवार देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) तब भी आशान्वित हैं तो उसका आधार ‘मोदी की गारंटी’ ही हो सकता है.मुजफ्फरपुर पर एनडीए का कब्जा बरकरार रहेगा, ऐसा लगता है. इसलिए कि एनडीए समर्थक सामाजिक समूहों के मतों में ज्यादा बिखराव नहीं हुआ है.


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मुकाबला कांटे का
इस चरण में सबसे महत्वपूर्ण सारण और हाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र बन गये हैं. सारण में एनडीए के लिए लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की पुत्री रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) बड़ी चुनौती बन गयी हैं. भाजपा के राजीव प्रताप रूडी (Rajiv Pratap Rudy) के खिलाफ उन्हें ही राजद का उम्मीदवार बनाया गया है. लालू – राबड़ी परिवार और पार्टी ने पूरी ताकत लगा रखी है. तमाम तरह के चुनावी हथकंडे भी अपनाये गये हैं. इसके बाद भी इत्मीनान नहीं है. इत्मीनान एनडीए में भी नहीं है. मुकाबला कांटे का है. किसकी मुस्कान खिलेगी और किसको मायूसी मिलेगी, अनुमान लगाना कठिन है. दुर्भाग्यवश मायूसी रोहिणी आचार्य को मिल गयी तो फिर राजद और तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) की राजनीति का क्या होगा, इसको बड़ी सहजता से समझा जा सकता है. जहां तक हाजीपुर संसदीय क्षेत्र की बात है तो लोजपा- आर सुप्रीमो चिराग पासवान (Chirag Paswan) पहली बार पिता रामविलास पासवान की विरासत संभालने के लिए वहां के मैदान में उतरे हैं.

कोई नयी हवा नहीं
मुकाबला राजद के दलित नेता शिवचंद्र राम (Shivchandra Ram) से है. शिवचंद्र राम 2019 में भी उम्मीदवार थे. चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) से मात खा गये थे. मतदान के बाद मिली खबरों के मुताबिक हाजीपुर में कोई नयी हवा नहीं चलने वाली है. रामविलास पासवान किसी एक समुदाय व जमात के नेता नहीं थे. उनकी पकड़ सभी समुदायों में थी. सभी सामाजिक समूहों में वह प्रिय थे. हाजीपुर में लगभग वैसी ही जनप्रियता चिराग पासवान ने हासिल कर ली है. वैसे, मतदान के रूझानों में एनडीए को ही नुकसान होता दिख रहा है. इन चरणों में महागठबंधन को खोने के लिए कुछ भी नहीं, पाने के लिए बहुत कुछ है.

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