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राजमहल : दिख रहा रंग बगावत का!

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अमन राय
25 मई 2024

Sahibganj : बिहार के चुनावी मुकाबले में ‘बगावत’ को जन समर्थन का जो दृश्य पूर्णिया में था, वैसा ही कुछ इस संसदीय क्षेत्र में दिख रहा है. पूर्णिया (Purnea) में महागठबंधन से नाराज राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav) ने निर्दलीय मैदान में कूद राजद को नाको दम कर दिया. जाने-अनजाने वह तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) के लिए ऐसी चुनौती बन गये कि संपूर्ण ताकत खपाने के बाद भी राजद मुख्य मुकाबले में‌ नहीं आ पाया. राजमहल (Rajmahal) में झामुमो के लिए ठीक वैसी ही भूमिका में विधायक लोबिन हेम्ब्रम (Lobin Hembram) नजर आ रहे हैं. जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की राजनीति के ‘स्थायी सिरदर्द’ वैद्यराज लोबिन हेम्ब्रम बोरियो से झामुमो के विधायक हैं. एक बार नहीं, इस क्षेत्र से पांच ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ बार निर्वाचित हुए हैं. एक चुनाव में झामुमो (JMM) ने नजरंदाज कर दिया, निर्दलीय जीत गये. वैसे, कभी-कभी पराजय का भी मुंह देखना पड़ा है.

बढ़ गयी परेशानी
बोरियो विधानसभा क्षेत्र राजमहल संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. लोबिन हेम्ब्रम मंत्री-पद की चाहत रखते थे. आस अधूरी रह गयी. आखिरी कोशिश उनकी राजमहल से पुत्र अजय हेम्ब्रम (Ajay Hembram) को झामुमो की उम्मीदवारी दिलाने की हुई. पार्टी नेतृत्व ने नकार दिया. तमाम जन असंतोष और आक्रोश को नजरअंदाज कर अवसर इकलौते सीटिंग सांसद विजय कुमार हांसदा (Vijay Kumar Hansda) को ही उपलब्ध करा दिया. इससे खिन्न लोबिन‌ हेम्ब्रम खुद निर्दलीय मैदान में उतर गये. अनुशासनिक कार्रवाई के तहत पार्टी नेतृत्व ने उन्हें झामुमो से बाहर तो कर दिया, पर उनकी उम्मीदवारी से राजमहल संसदीय क्षेत्र की जो तस्वीर उभर रही है वह झामुमो (JMM) की चिंता बढ़ा रही है. इसलिए कि सर्वाधिक सुरक्षित समझे जाने वाले क्षेत्र में झामुमो और हेमंत सोरेन की सियासी साख दांव पर लग गयी है. वैसे, बहुकोणीय मुकाबले से सुकून निकल आये, तो वह अलग बात होगी.

मजबूत जनाधार
कांग्रेस के सांसद रहे थामस हांसदा के पुत्र हैं विजय हांसदा (Vijay Hansda). तब के जमाने में राजमहल में थामस हांसदा का अच्छा खासा जनाधार था. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह विजय हासिल कर लेते थे. विरासत के रूप में वह जनाधार विजय हांसदा को मिल गया. ऐसा कहा जाता है कि 2014 और 2019 में ‘मोदी लहर’ के बीच झामुमो का झंडा लहराने का मुख्य आधार वही जनाधार था. दोनों ही चुनावों में विजय हांसदा का मुकाबला झामुमो से भाजपा में आये पूर्व सांसद हेमलाल मुर्मू से हुआ था. राजमहल (Rajmahal) का राजनीतिक व सामाजिक समीकरण भाजपा (BJP) के अनुकूल नहीं रहने के बाद भी कांटे की टक्कर हुई थी. जीत के लिए विजय हांसदा को नाको चने चबाने पड़ गये थे. हालांकि, ऐसे ही हालात में भाजपा को यहां‌ दो बार – 1998 और 2009 में जीत भी मिल चुकी है.

झामुमो में लौट गये
भाजपा उम्मीदवार के तौर पर हेमलाल मुर्मू (Hemlal Murmu) को लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में भी पराजय का मुंह देखना पड़ गया था. लगातार हार से भाजपा में कोई संभावना नहीं देख साल भर पहले शहर झामुमो में लौट गये. राजमहल संसदीय क्षेत्र में भाजपा की उम्मीदवारी इस बार पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी (Tala Marandi) को मिली है. ताला मरांडी गोड्डा (Godda) जिले के बोआरीजोर प्रखंड क्षेत्र के रहने वाले हैं. 2005 और 2014 में वह भाजपा उम्मीदवार के तौर पर बोरियो से विधायक निर्वाचित हुए थे. उसी बोरियो से जहां से लोबिन हेम्ब्रम अभी विधायक हैं.


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हाथ धोना पड़ गया
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते ताला मरांडी विवादों में घिर गये थे. अध्यक्ष पद से तो हाथ धोना पड़ ही गया था, विधानसभा की उम्मीदवारी से भी वंचित कर दिये गये. इस खुन्नस में भाजपा छोड़ आजसू में शामिल हो गये . वहां कुछ हासिल नहीं हुआ तो लोजपा (Lojpa) से जुड़ गये. अंततः भाजपा में लौट आये. विश्लेषकों का मानना है कि राजमहल में ताला मरांडी के‌ समक्ष‌ पहचान का संकट नहीं है इसलिए सत्ता विरोधी रूझान से जूझ रहे झामुमो प्रत्याशी विजय हांसदा को वह कड़ी टक्कर दे सकते हैं.

ये भी हैं मैदान में
वैसे, विजय हांसदा की राह रोकने के लिए झामुमो के बागी विधायक लोबिन हेम्ब्रम के अलावा माकपा के गोपिन सोरेन (Gopin Soren) और एमआईएम के पाल सोरेन (Pal Soren) भी ताल ठोक रहे हैं. राजमहल मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. इस समुदाय के मत 35.25 प्रतिशत हैं. आदिवासी समाज के मत 34.45 प्रतिशत यानी‌ 0.80 प्रतिशत कम हैं. मुस्लिम मतों की बड़ी संख्या को देख कर ही एमआईएम ने अपना उम्मीदवार उतारा है. माकपा इस क्षेत्र से पहले भी उम्मीदवार उतारती रही है. बहरहाल, माकपा के गोपिन सोरेन और एमआईएम के पाल सोरेन क्या कुछ हासिल कर पायेंगे यह वक्त के गर्भ में है. लोबिन हेम्ब्रम के मतदान के दिन तक डटे रहने की स्थिति में परिणाम का अनुमान लगाना ज्यादा कठिन नहीं है.

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