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नागार्जुन और तरौनी :  अन्याय के विरुद्ध साहित्य रचना

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जन कवि नागार्जुन की जयंती पर तापमान लाइव की खास प्रस्तुति की यह चौथी किस्त है :

अश्विनी कुमार आलोक

04 जुलाई 2024

नागार्जुन का वास्तविक नाम बैद्यनाथ मिश्र (Baidyanath Mishra) था. उनका जन्म 30 जून 1911 को दरभंगा (Darbhanga) जिले के सतलखा (Satlakha) गांव में हुआ था. यह उनका ननिहाल था. उनका पैतृक गांव तरौनी (Tarauni) था. उनका विवाह मधुबनी (Madhubani) जिले के हरिपुर बस्तीटोला (Bastitola) गांव में हुआ था. नागार्जुन (Nagarjun) के पिता गोकुल मिश्र (Gokhul Mishra) के पास अच्छी खेतीबारी थी. लेकिन, अधिकांश कृषि भूमि दूसरे गांवों में थी. पिता से किसी बात पर नाराज होकर नागार्जुन ने छोटी उम्र में ही गांव छोड़ दिया था. लेकिन, उनकी गद्य-पद्य रचनाओं में उनका गांव उनसे संपूर्ण आत्मीयता के साथ उद्धृत हुआ. वह हिन्दी में नागार्जुन और मैथिली में यात्री के नाम से लिखते रहे. हिन्दी और मैथिली के अतिरिक्त उन्होंने संस्कृत और बांग्ला भाषाओं में भी लिखा.

ये हैं समृद्ध रचनाएं

उनकी कथा रचना पर बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का प्रभाव माना जाता है. उनके ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, ‘बाबा बटेसर नाथ’, ‘नयी पौध’, ‘वरुण के बेटे’, ‘दुखमोचन’, ‘उग्रतारा’, ‘कुंभीपाक’, ‘आसमान में चांद’ उपन्यास, ‘अन्नहीनम क्रियाहीनम’ निबंध, ‘अपने खेत में’, ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘तालाब की मछलियां’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘हजार-हजार बाहों वाली’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘तुमने कहा था’, ‘आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘इस गुबार की छाया में’, ‘ओम मंत्र’, ‘भूल जाओ पुराने सपने’, ‘रत्नगर्भ’ कविताएं हिन्दी साहित्य को अत्यंत समृद्ध करनेवाली रचनाओं में गिनी जाती हैं.

साहित्य अकादमी पुरस्कार

मैथिली (Maithli) में उन्होंने ‘चित्रा’ और ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ नामक कविता पुस्तकें लिखीं. ‘पारो’ और ‘नवतुरिया’ उपन्यास लिखे. प्रौढ़ साहित्य के अतिरिक्त नागार्जुन ने बाल-साहित्य के क्षेत्र में भी प्रचुर रचनाएं कीं. उन्हें उनकी मैथिली कविता ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए 1965 में साहित्य अकादमी पुस्कार दिया गया था. 1994 में उन्हें साहित्य अकादमी फैलो भी बनाया गया. नागार्जुन के साहित्य पर शोध-अध्ययन का क्षेत्र भी कम विस्तृत नहीं रहा. राजेश जोशी, शोभाकांत ने उनके रचना संचयन का संपादन किया. शोभाकांत ने नागार्जुन के व्यक्तिगत जीवन एवं ग्रामीण संदर्भों से जुड़ी पृष्ठभूमि पर दो महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं ‘नागार्जुन: मेरे बाबूजी’ और ‘ढक्कन थे नागार्जुन’.

किशोरावस्था में छोड़ दिया गांव

नागार्जुन छोटी उम्र से ही लिखना शुरू कर चुके थे. लेकिन, किशोरवय में ही उन्होंने गांव छोड़ दिया था. वाराणसी में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के सान्निध्य प्रभाव में आकर वह बौद्ध धर्म की ओर झुके. 5 नवम्बर 1998 को उनका निधन हो गया. नागार्जुन ने निम्न एवं वंचित वर्ग के लिए अपनी रचनाओं में अगाध सहानुभूति रखी. उन्होंने अन्याय के विरुद्ध न सिर्फ साहित्य रचना की, बल्कि जीवन भी जीया. आपातकाल के दिनों में उनकी कविताओं का स्वर इतना मुखर हुआ कि सरकार तिलमिला गयी थी.


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विशेष पुरस्कार

कहते हैं, कविताओं में तल्ख तेवर के कारण ही नागार्जुन को राजनीति (Poltics) के क्षेत्र के वर्चस्ववादी लोगों ने ऐसी उपेक्षा की कि उन्हें जितने पुरस्कार मिलते, उतने नहीं मिले. उनकी हिन्दी रचनाओं पर तो कोई विशेष पुरस्कार मिला ही नहीं. अकादमी पुरस्कार तो मैथिली साहित्य के लिए मिला. उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘भारत भारती’, मध्य प्रदेश सरकार ने मैथिली शरण गुप्त, पश्चिम बंगाल सरकार ने राहुल सांकृत्यायन और बिहार सरकार ने राजेन्द्र शिखर सम्मान दिया था.

निर्भीकता की कविताएं

बाबा नागार्जुन ने आजीवन निर्भीकता की कविताएं लिखीं. कबीर की तरह जो भी कहा, मुंह पर कहा. उनकी कविताओं में व्यक्ति का दुर्गम होता जीवन, समाज का छल-छद्म युक्त चरित्र और राजनीति का प्रपंच अपने स्पष्ट स्वरूप में उभरे. उन्होंने दलित वर्ग के लिए निरंतर विषम होतीं परिस्थितियों को कविताओं के माध्यम से झकझोरा तो उपन्यासों में गांव की निर्मल और निष्कलुष प्रकृति की जीवंत रेखा खींची.

लोग नहीं जानते

श्यामाकांत हमसे नागार्जुन के विषय और उनके लेखकीय चरित्र पर बहुत देर बातें न कर सके. दोपहर ढल रहा था. तभी उनका कोई मित्र गमछे में लपेटकर न जाने कौन-सा सामान लाया था कि उसके इशारे पर वह कमरे में खिंचे चले गये. हम लौट रहे थे. जोड़ा मंदिर और नागार्जुन के घर के बीच में दो अधनंगे लोगों को देखकर हमने गाड़ी रुकवायी. गोढ़िया पोखर के समीप इस बात की तफ्तीश हो चुकी थी कि ‘वरूण के बेटे’ लिखनेवाले नागार्जुन को लोग नहीं जानते. वे लोग तो और नहीं, जिनके जीवन और परिस्थिति को नागार्जुन ने अपना विषय बनाया.

जीते जी नहीं देखा

अब देखना यह बचा था कि जिस वंचित वर्ग के पक्ष में नागार्जुन ने कविताएं लिखीं, वह उन्हें कितना याद करता है? रास्ते में मिले गणेश कामती और बालकृष्ण कामती से हमने पूछा. गणेश कामती को बस इतना पता था कि नागार्जुन अच्छे आदमी थे, पर गांव में कम ही रह पाये. बालकृष्ण कामती ने कहा कि नागार्जुन गरीब आदमी थे. गणेश कामती और बालकृष्ण कामती ने नागार्जुन को जीते जी नहीं देखा, लाश देखी थी. बताया, ‘हेलिकाप्टर से लाश आयी थी. मैदान में हेलीकाप्टर उतारने के लिए ईंट मंगवायी गयी थी. बाद में उसी ईंट से काली मंदिर बनवाया गया.’ एक स्त्री से पूछा, तो उसने नाम तो नहीं बताया, पर यह कहा कि बाबा बहुत हंसोड़ और मुंहफट थे.

पांचवीं किस्त : नागार्जुन और तरौनी (5)

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