‘माय’ पर एकाधिकार : तब भी रोहिणी गयीं हार… राजद में हाहाकार !
राजेश पाठक
12 जुलाई 2024
Chapra : चुनावों में असहयोग और भितरघात के आरोपों में घिरे विधायकों और नेताओं को राजद में चेतावनी पहले भी मिलती रही है. आरोप सिद्ध होने पर कार्रवाई भी होती रही है. लेकिन, इस बार नेतृत्व के स्तर पर तिलमिलाहट कुछ अधिक है. ऐसा स्वाभाविक भी है. इस रूप में कि संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) में राजद के 77 विधायकों में से सिर्फ 39 के ही क्षेत्रों में उसे बढ़त मिल पायी है. 38 क्षेत्रों में वह पिछड़ गया है. यह सब तो है ही, राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) को गुस्सा इस बार कुछ अधिक इस वजह से है कि अपनी किडनी देकर पिता लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की जान बचाने वाली रोहिणी आचार्य कथित रूप से असहयोग और भितरघात की चपेट में आ गयीं. राजद प्रत्याशी के रूप में पिता की कर्मभूमि सारण में परास्त हो गयीं.
यह कोई पहला अनुभव नहीं
हालांकि, इस परिवार के लिए ऐसी हार का यह कोई पहला अनुभव (Experience) नहीं है. यूं कहें कि यह सिलसिला- सा बना हुआ है. और की बात छोड़ दें, खुद लालू प्रसाद भी सारण के अखाड़े में धूल चाट चुके हैं. 2014 में रोहिणी आचार्य की मां राबड़ी देवी (Rabri Devi) इसी गति को प्राप्त हुई थीं. 2019 में राजद उम्मीदवार के तौर पर लालू प्रसाद के समधी डा. चन्द्रिका राय औंधे मुंह गिर गये थे. उधर, लालू- राबड़ी की बड़ी संतान मीसा भारती (Misa Bharti) को पाटलिपुत्र में लगातार दो चुनावों में पराजय का मुंह देखना पड़ गया था. उनकी हार पर तब इतना हायतौबा कहां मचा था? इस बार किस्मत का द्वार खुला और मीसा भारती लोकसभा में पहुंच गयीं.
सुलग रह सवाल
पाटलिपुत्र में हार का कसैला स्वाद लालू प्रसाद भी चख चुके हैं. लम्बे समय बाद राजद में ल़ौट आये बालसखा डा. रंजन प्रसाद यादव ने उन्हें वहां मात दी थी. इसी तरह यादवों के गढ़ मधेपुरा में शरद यादव ने लालू प्रसाद को चित कर दिया था. धीरे – धीरे ही सही राजद के अंदर सवाल सुलग रहा है कि जब उस दौरान कोहराम नहीं मचा, तो फिर रोहिणी आचार्य की हार पर ऐसा रोना धोना क्यों? इस हार से राजद नेतृत्व इतने गुस्से में क्यों है? इस क्यों पर विश्लेषकों का मानना है कि सामान्य परिस्थिति में रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) की हार होती तो राजद नेतृत्व मन मसोस कर रह जाता. गुस्सा इसलिए उबल रहा है कि जीत की चाक चौबंद व्यवस्था के बीच हार की परिस्थितियां पैदा कर दी गयीं. वह भी ‘अपनों’ द्वारा.
किसको मिलेगी सजा
ऐसा माना जा रहा है कि इन्हीं ‘अपनों’ को सबक सिखाने के लिए तेजस्वी प्रसाद यादव द्वारा उन विधायकों को उम्मीदवारी (Candidacy) से वंचित कर दिये जाने की चेतावनी – दर – चेतावनी दी जा रही है जिनके क्षेत्र में राजद को बढ़त नहीं मिली है. खुले तौर पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. सांकेतिक (Symbolic) रूप से भितरघातियों को सजा मिलने की बात कह रोहिणी आचार्य सिंगापुर (Singapore) लौट गयीं. तेजस्वी प्रसाद यादव सजा की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं. पर, सारण में सजा किसको मिलेगी इसका खुलासा कोई नहीं कर रहा है. सब कुछ कयासों में है. सारण में राजद चार विधानसभा क्षेत्रों पर काबिज है. रोहिणी आचार्य को तीन में बढ़त मिली. एक में वह पिछड़ गयीं. पूर्व मंत्री जीतेन्द्र कुमार राय (Jitendra Kumar Rai) के कब्जा वाले मढौरा विधानसभा क्षेत्र में.
पटकथा मढौरा में लिखी गयी
मढौरा में 2019 में भी राजद पिछड़ गया था. तनी मनी से नहीं, 22 हजार 319 मतों से. इस चुनाव में रोहिणी आचार्य को राजीव प्रताप रूड़ी से 04 हजार 123 मत कम मिले. इसमें लालू प्रसाद के निकटस्थों में शुमार जीतेन्द्र कुमार राय की कोई भितरघाती भूमिका थी या नहीं, यह कहना कठिन है. लेकिन, इस हकीकत को आधारहीन (Baseless) नहीं माना जा सकता कि हार की पटकथा मढौरा में ही लिखी गयी. बुनियाद उसी ‘माय’ ने डाल दी जिसके समर्थन (Support) पर राजद को गुमान है. बुनियाद इस रूप में डाली गयी कि यादव समाज के लक्ष्मण प्रसाद यादव और मुस्लिम समुदाय के शेख नौशाद निर्दलीय मैदान में उतर गये. लक्ष्मण प्रसाद यादव के बारे में बताया जाता है कि वह मढौरा के प्रभावशाली संपन्न किसान हैं और जुड़ाव उनका राजीव प्रताप रूड़ी से है. अपने इसी प्रभाव से 22 हजार 043 मत बटोर वह रोहिणी आचार्य की राह का रोड़ा बन गये.
मुगालते में रह गया राजद
हालांकि, इसके बाद भी जीत की संभावना बचती थी. शेख नौशाद ने 16 हजार 103 मत हासिल कर उस संभावना को भी समेट दिया. इन दोनों को मिले मतों का जोड़ 38 हजार 146 होता है. रोहिणी आचार्य की हार मात्र 13 हजार 661 मतों के अंतर से हुई. भाजपा प्रत्याशी राजीव प्रताप रूड़ी (Rajeev Pratap Rudy) को 04 लाख 71 हजार 752 मत मिले तो रोहिणी आचार्य को 04 लाख 58 हजार 091 मत. स्पष्ट है कि लक्ष्मण प्रसाद यादव और शेख नौशाद में से कोई एक भी मैदान में नहीं होते तो परिणाम रोहिणी आचार्य के पक्ष में जाता. ऐसा लगता है कि राजद के रणनीतिकारों ने लक्ष्मण प्रसाद यादव की ताकत को गंभीरता से नहीं लिया. ‘माय’ पर एकाधिकार (Monopoly) के मुगालते में रह गये. विधायक जीतेन्द्र कुमार राय ने भी इसको नजरंदाज कर दिया. मंशा क्या थी , भगवान जानें.
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भुगतना होगा खामियाजा
लोग कहते हैं कि राजद को पूर्व विधायक शत्रुघ्न तिवारी उर्फ चोकर बाबा की ‘उपलब्धियों’ से जीत की राह निकलने की उम्मीद थी. पर, चोकर बाबा के 03 हजार 687 मतों में सिमट जाने से वह भी खत्म हो गयी. बहरहाल, राजनीति (Politics) के गलियारों में चर्चा है कि रोहिणी आचार्य की हार का खामियाजा विधायक जीतेन्द्र कुमार राय को भुगतना पड़ जा सकता है. पर, राजद नेतृत्व इतना हिम्मत शायद ही जुटा पायेगा. ऐसा क्यों, खुलासा अगली प्रस्तुति में.
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