डा. दिलीप जायसवाल : यह रहस्य है ताजपोशी का!
महेश कुमार सिन्हा
30 जुलाई 2024
Patna : डा. दिलीप जायसवाल की ताजपोशी हो गयी. सोमवार को उन्होंने बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद का दायित्व संभाल लिया. प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित भव्य समारोह में जीवित पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के साथ निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) ने उन्हें दायित्व ग्रहण कराया. इस अवसर पर विधानसभा के अध्यक्ष नंदकिशोर यादव (Nand Kishore Yadav) और विधानपरिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह (Avadhesh Narayan Singh) समेत प्रदेश भाजपा के प्रायः सभी नेता मौजूद थे. केन्द्रीय नेतृत्व का प्रतिनिधित्व (Representation) क्षेत्रीय संगठन मंत्री नागेन्द्र जी ने किया.
संभाल रहे एक साथ तीन पद
मुस्लिम बहुल पूर्णिया – अररिया – किशनगंज स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से लगातार तीन बार विधान पार्षद निर्वाचित हुए डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dilip Jaiswal) वर्तमान में एक साथ तीन पद संभाल रहे हैं. वर्षों से वह प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष हैं. जनवरी 2024 में मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग मिला. फिर प्रदेश अध्यक्ष के रूप में तीसरे पद की प्राप्ति हुई . ‘एक व्यक्ति, एक पद’ का नियम इन पर भी लागू हुआ तो देर सबेर दो पद छोड़ देना पड़ेगा. मंत्री का पद और प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष (Treasurer) का पद.
सिमटा दिखा औपचारिकताओं में
खैर, यह बाद की बात है. राजनीति (Politics) के विशेषकों को डा. दिलीप जायसवाल के दायित्व ग्रहण समारोह में वह उत्साह नहीं दिखा जो सोलह माह पहले मार्च 2023 में सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष का पद संभालने के दौरान दिखा था. इस बार सब कुछ औपचारिकताओं में सिमटा नजर आया. महत्वपूर्ण बात यह कि डा. दिलीप जायसवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद जो सवाल राजनीतिक (Political) हलकों में उठा था वह ताजपोशी स्थल पर मौजूद छोटे कद वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच तैरता रहा. सवाल यह कि डा. दिलीप जायसवाल में सांगठनिक (Organizational) दृष्टि से ऐसी क्या खासियत है कि उन्हें प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद पर काबिज करा दिया गया?
अप्रत्याशित सौभाग्य
वैसे तो यह पार्टी का विशुद्ध आंतरिक मामला है. पार्टी नेतृत्व किसी भी नेता या कार्यकर्ता को अवसर उपलब्ध करा सकता है. पर, उस उसके निर्णय पर टीका – टिप्पणी भी होती है. डा. दिलीप जायसवाल के चयन पर भी हो रही है. वैसे, भाजपा कार्यकर्ताओं को हैरानी इस बात पर कुछ अधिक है कि कभी इस रूप में चर्चा में नहीं रहने वाले डा. दिलीप जायसवाल को यह अप्रत्याशित (Unexpected) सौभाग्य कैसे प्राप्त हो गया? सम्राट चौधरी की विदाई तय थी. संभावित नये प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर विधायक संजीव चौरसिया, विधान पार्षद जनक राम आदि के नाम चर्चा में थे.
दूसरा कोई फैक्टर नहीं
इसी बीच अचानक से डा. दिलीप जायसवाल को काबिज करा दिया गया. ऐसा क्यों और कैसे हुआ? सोशल मीडिया में कई तरह की बातें आयीं. किसी ने उनकी सांगठनिक क्षमता को चयन का आधार बताया तो किसी ने मिलनसार व्यक्तित्व को. बात वैश्यों को संतुष्ट करने की भी हुई. कुछ ने इस निर्णय को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से उनकी निकटता से जोड़ दिया. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो इसमें दूसरा कोई फैक्टर नहीं है. मुख्य रूप से यह ‘परिस्थितियों का निर्णय’ है. परिस्थितियां डा. दिलीप जायसवाल के उस बयान से पैदा हुईं जिसमें उन्होंने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के जर्रे – जर्रे में भ्रष्टाचार (Corruption) समाये रहने की बात कही थी.
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नागवार गुजरा उन्हें
उसी विभाग के मंत्री रहते खुले तौर पर यह भी कह दिया था कि वहां पैसा लिये बिना कोई काम नहीं होता है. डा. दिलीप जायसवाल ने रत्ती भर भी गलत नहीं कहा. लेकिन, ‘जीरो टॉलरेंस’ वाली सरकार को यह नागवार गुजरा. कुछ साल पूर्व कृषि मंत्री रहते ऐसा ही कुछ कहा था राजद के सुधाकर सिंह ने. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने महागठबंधन की सरकार से उन्हें निकाल दिया था. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि डा. दिलीप जायसवाल के मामले में भी उन्होंने वैसा ही कुछ रूख अख्तियार कर रखा है. बड़ी संजीदगी से मामले को भाजपा नेतृत्व के समक्ष रख दिया है.
इसलिए तैनात कर दिया
यहां समझने वाली बात है कि भाजपा नेतृत्व की ‘नाक के बाल’ डा. दिलीप जायसवाल का हश्र सुधाकर सिंह जैसा हो गया तो फिर उसका इकबाल क्या रह जायेगा? बदले राजनीतिक हालात में नीतीश कुमार के हर सियासी नखरे झेलने को विवश भाजपा नेतृत्व ने डा. दिलीप जायसवाल को अध्यक्ष पद पर तैनात कर दिया. ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के नियम के तहत उन्हें मंत्री का पद छोड़ देना पड़ेगा. यानी सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी!
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