सुन रहे हैं नीतीश जी ! … यह सब भी करते थे मुकेश के अब्बा!
विकास कुमार
26 जुलाई 2024
Patna : हर गांव और हर शहर में हैं जीतन सहनी जैसे ढेर सारे पैसाखोर. राजधानी पटना में भी हैं. तरीका नैतिक हो या अनैतिक, वैध हो या अवैध , पैसे की प्राप्ति होती रहनी चाहिये, तिजोरियों का आकार बढ़ते रहना चाहिये. पैसाखोरों को इसके अलावा कुछ नहीं सूझता. सत्ता और सियासत की सरपरस्ती हो, तो फिर क्या कहना! पाप की कमाई की रफ़्तार राकेट सरीखी हो जाती है. सच क्या है, यह पुलिस का अनुसंधान पूरा होने के बाद ही पता चल पायेगा. फिलहाल तफ्तीश (Investigation) के क्रम में जो तथ्य सामने आये हैं उससे इस आरोप को मजबूती मिलती है कि जीतन सहनी सूद पर पैसा लगाने का कानून विरुद्ध काम तो करते ही थे, शराबबंदी कानून (Prohibition Law) की भी बेखौफ धज्जियां उड़ा रहे थे.
पिलाते थेघर में बैठा कर !
कथित रूप से निर्माणाधीन (Under Construction) दोमंजिला मकान से प्रतिबंधित दारू, गांजा, भांग आदि बेचते थे. खुद पीते था या नहीं , यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. खास – खास लोगों को घर में बैठा दारू पिलाते थे. निर्माणाधीन मकान में मिले शीशा के तीन खाली गिलास, उनमें दिखे तरल पेय पदार्थ के अंश और 38 खाली पाउच तात्कालिक तौर पर तो यही कुछ बयां करते हैं. आरोप यह भी उछल रहा है कि ख्वाहिश वालों को ऊंचे ब्याज पर पैसा दे संपत्ति बंधक रख लेते थे. इन आरोपों में सच्चाई कितनी है, यह कहना कठिन है.
सामाजिक दबंगता भी थी
सामान्य धारणा है कि खोखले बुनियाद पर ही सही , बिहार की जाति आधारित सत्ता राजनीति की जरूरत बन गये वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) के वह पिता थे. मुकेश सहनी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उनकी हैसियत के मद्देनजर पुलिस ने जीतन सहनी की कथित गैरकानूनी करतूतों को नजरंदाज कर रखा था. वैसे, पुत्र के राजनीतिक (Political) रुतबे से अलग उनकी खुद की सामाजिक दबंगता भी थी जिसका अहसास स्थानीय लोगों को वह अक्सर कराते रहते थे.
गैरकानूनी करतूतों से जुड़ा है तार
जीतन सहनी के पुत्रों मुकेश सहनी और संतोष सहनी भले इससे इत्तेफाक नहीं रखते हों, दरभंगा पुलिस के प्रारंभिक अनुसंधान का निष्कर्ष है कि हत्या का तार इन्हीं गैरकानूनी (Illegal) करतूतों से जुड़ा हुआ है. जीतन सहनी की हत्या 15 -16 जुलाई 2024 की मध्य रात्रि में हुई. मुकेश सहनी का पैतृक घर विरौल नगर पंचायत के सुपौल बाजार में है. यह बस्ती दरभंगा (Darbhanga) जिले के विरौल और घनश्यामपुर थाना क्षेत्रों की सीमा पर है . जीतन सहनी पुश्तैनी घर में नहीं रहते थे. भव्यता का स्वरूप लिये आलीशान पुश्तैनी मकान से लगभग 150 मीटर दूर घनश्यामपुर थाना क्षेत्र के जिरात गांव में निर्माणाधीन दोमंजिला मकान में रहते थे. बिल्कुल अकेले. उसी मकान के एक कमरे में उनका क्षत -विक्षत शव मिला.
पेट भी फाड़ दिया
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आतताइयों ने धारदार हथियार से उनके शरीर पर इतने प्रहार किये जितना वे कर सकते थे. 23 लगातार प्रहार के बाद थक गये तब खून से लथपथ छोड़ भाग निकले. नफरत इतनी कि हथियार घुसा कर जीतन सहनी का पेट भी फाड़ दिया . आंत बाहर निकल आयी. हर अंग पर ऐसा निर्मम प्रहार कि मानवता भी सिहर उठी. पुलिस को इस नृशंसता (Brutality) में सूदखोरी के दंश से उत्पन्न प्रतिशोध दिखा. जीतन सहनी से चार रुपये प्रति सैंकड़ा ब्याज पर तीन किस्तों में डेढ़ लाख रुपये कर्ज ले रखे जिरात गांव के ही काजिम अंसारी की गिरफ्तारी हुई.
बरामद हुआ हथियार
काजिम अंसारी (Kazim Ansari) से मिली जानकारी के आधार पर उसी गांव के मोहम्मद सितारे , छोटे लहेरी और आजाद लहेरी को दबोचा गया. बाद में उधार में चाकू उपलब्ध कराने वाले की भी गिरफ्तारी हुई. हत्या में प्रयुक्त चाकू की बरामदगी उसी के घर से हुई थी. पुलिस के इस प्रारंभिक निष्कर्ष से मुकेश सहनी संतुष्ट नहीं हैं.
बलराम सहनी पर संदेह
दूसरी तरफ हत्यारोपितों के परिजनों का भी कहना है कि हत्याकांड (Massacre) में उन सब की संलिप्तता नहीं है, सभी बेगुनाह हैं. उन सब ने शक जताया है कि इसमें बलराम सहनी और कन्हैया सहनी का हाथ हो सकता है. आधार यह कि एक – दो दिन पहले रास्ते पर पानी बहाने को लेकर इन दोनों भाइयों का जीतन सहनी से झगड़ा हुआ था. कथित रूप से कन्हैया सहनी के बेटा ने उन पर थप्पड़ चला दिया था. मार देने की धमकी भी दी गयी थी.
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परिजनों का है यह आरोप
आरोप और संदेह अपनी जगह है, जीतन सहनी की हत्या जेल में बंद चारो आरोपितों ने की या किसी और ने, हत्या का करण सूदखोरी (Usury) है या कुछ और इसका निर्धारण अदालत करेगी. बहरहाल, इस आरोप को एकबारगी खारिज कर देना आसान नहीं होगा कि जीतन सहनी सूदखोरी का धंधा करते थे, दारू बेचते थे. इसलिए कि इस बाबत पुलिस को तो साक्ष्य मिले ही हैं, हत्यारोपित काजिम अंसारी और उसके तथाकथित तीन शागिर्दाें के परिजन भी दबी जुबान से नहीं, सोशल मीडिया पर ऊंचे स्वर में बार – बार दुहरा रहे हैं कि मुकेश सहनी के अब्बा यानी जीतन सहनी दारू बेचते थे.आज से नहीं, वर्षों से.
है कोई अब औचित्य?
उनके इस आरोप में यदि सच्चाई है तो जीतन सहनी तब भी दारू बेचते थे जब उनके पुत्र मुकेश सहनी मंत्री पद पर आसीन थे? परिजनों का आरोप यह भी है कि जीतन सहनी चार प्रतिशत सैंकड़ा मासिक सूद पर पैसा लगाते थे. उनकी इन बातों की तसदीक़ सिर्फ जिरात गांव और सुपौल बाजार के लोग ही नहीं, आसपास के गांवों के लोग भी करते हैं. सोशल मीडिया की बातों को सरकार (Government) भी सुन रही होगी. शराबबंदी कानून की निरर्थकता (Futility) को समझ रही होगी. ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि मरते दम तक शराबबंदी खत्म नहीं करने के नीतीश कुमार के हठ का अब कोई औचित्य रह गया है क्या?
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