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सम्राट चौधरी : इस वजह से हुई अध्यक्ष पद से विदाई

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महेश कुमार सिन्हा

29 जुलाई 2024

Patna : सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) की बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष (Bihar State BJP President) पद से रुखसती उसी दिन तय हो गयी थी जिस दिन उन्होंने उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) पद की शपथ ली थी.अन्य दलों में जो हो, भाजपा (B J P) में आमतौर पर ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के नियम का अनुपालन होता है. इसको दृष्टिगत रख कहा जा सकता है कि केन्द्रीय नेतृत्व (Central leadership) का इरादा सम्राट चौधरी को प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद पर बनाये रखने का होता,तो उपमुख्यमंत्री बनने का अवसर उनकी जगह किसी और को उपलब्ध करा दिया जाता. मार्च 2023 में अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के लगभग दस माह बाद 28 जनवरी 2024 को सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाये जाने का सीधा मतलब प्रदेश भाजपा की कमान किसी और को सौंपा जाना था.

और कोई राजनीति नहीं

वैसा उसी वक्त हो सकता था, पर संसदीय चुनाव (parliamentary elections) सन्निकट रहने के कारण छह माह लम्बा खींच गया. दुर्भाग्यवश संसदीय चुनाव में भाजपा की उपलब्धि संतोषजनक नहीं रही. अन्य जातियों-वर्गों की बात दूर, सजातीय कुशवाहा समाज (Kushwaha Samaj) पर भी सम्राट चौधरी के नेतृत्व का प्रभाव नहीं दिखा. परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में एनडीए (NDA) का चुनावी हित प्रभावित हो गया. परन्तु, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद से उनकी विदाई इसी वजह से हुई, यह कहना तर्कसंगत नहीं है. विदाई होनी थी, हुई. हां, इतना जरूर हुआ कि ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के नियम के तहत उपमुख्यमंत्री का पद त्याग वह प्रदेश अध्यक्ष (State President) के पद पर बने रहना चाहते थे, केन्द्रीय नेतृत्व को यह मंजूर नहीं हुआ. इसके अलावा इसमें किसी भी रूप में और कोई राजनीति नहीं हुई.

खुन्नस इस बात का था

अकाट्य है कि संसदीय चुनाव में कुशवाहा समाज का साथ एनडीए, विशेष कर भाजपा को नहीं मिला. सरसरी तौर पर कहा जा सकता है कि स्वजातीय समाज पर सम्राट चौधरी का जोर नहीं चला. लेकिन, सवाल यहां यह है कि सम्राट चौधरी का जोर पहले चलता था क्या? कुशवाहा समाज उन्हें नेता मानता था क्या? जवाब नकारात्मक ही होगा. वैसे, कुछ इलाकों में उनकी स्वीकार्यता है,पर राज्यस्तरीय नहीं है. ऐसा भी नहीँ कि महागठबंधन में उम्मीदवारी अधिक मिलने से इस समाज ने भाजपा से मुंह फेर लिया. विश्लेषकों की नजर में कुशवाहा समाज को खुन्नस नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के एनडीए में लौटने से संभावना समाप्त हो जाने को लेकर था.

फिलहाल संभावना नहीं

कुशवाहा समाज सम्राट चौधरी को अध्यक्ष का पद मिलने के बाद उन्हें भाजपा के संभावित मुख्यमंत्री के रूप में देखने लग गया था. नीतीश कुमार की वापसी से भ्रम टूट गया, गुस्सा मतदान केन्द्रों पर फूट पड़ा. हकीकत यही है. वैसे, सम्राट चौधरी की उपमुख्यमंत्री पद से विदाई ह़ो गयी, तो उसे संसदीय चुनाव की निराशा भरी उपलब्धियों से जोड़ कर देखा जा सकता है. हालांकि, ऐसा होगा इसकी संभावना फिलहाल नहीं दिखती है. सम्राट चौधरी को हाशिये पर धकेलने का मतलब कुशवाहा समाज को मुक्कमल रूप से भाजपा से दूर कर देना होगा. इस समझ के बाद भी पार्टी नेतृत्व उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से मुक्त कर देता है, तो भाजपा की राजनीति के दृष्टिकोण से उसे अविवेकपूर्ण निर्णय ही माना जायेगा.


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आक्रामकता तो है ही

बिहार की राजनीति पर गहन नजर रखने वालों के मुताबिक सम्राट चौधरी में कोई विशेष राजनीतिक गुण हो या नहीं, कार्यशैली भाजपा की कार्य-संस्कृति से मेल खाती हो या नहीं, बिहार में दबंगई वाली राजद (RJD) की राजनीति को उसी की शैली में उतने ही जोर से जवाब देने का माद्दा तो उनमें है ही. ऐसा भाजपा के किसी दूसरे नेता में नहीं है. यह हर कोई देख और समझ रहा है कि तकरीबन सोलह माह के अध्यक्ष कार्यकाल में उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से देकर राजद नेतृत्व की नाक में दम कर रखा था. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद से उनकी विदाई पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की सिंगापुर वासिनी पुत्री रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) एवं अन्य नेताओं की जो व्यंग्यात्मक टिप्पणी आयी है उससे भी इसकी पुष्टि हो जाती है.

कहने के लिए कुछ नहीं

सम्राट चौधरी उपमुख्यमंत्री पद पर बने रहे तो उनकी आक्रामकता बनी रहेगी. हटा दिये गये तो बात दूसरी हो जायेगी. उनकी जगह प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बने डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dilip Jaiswal) ने तो पद संभालने से पहले ही सरेंडर बोल दिया! खुले तौर पर कह दिया कि उनके मधुर संबंध सभी राजनीतिक दलों (Political parties) और नेताओं से है. डा. दिलीप जायसवाल के इस कथन के बाद कहने के लिए कुछ बच नहीं जाता है कि उनके कार्यकाल में बिहार भाजपा का भविष्य क्या होगा.

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