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विधि – व्यवस्था : इसलिए कुंद पड़ जाती है काबिलियत

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महेश कुमार सिन्हा

13 अगस्त 2024

Patna : आरएस भट्टी (RS Bhatti) की संभावित विदाई की चर्चाओं के बीच यह सवाल बड़ा आकार लिये हुए है कि बिहार में काबिल से काबिल पुलिस महानिदेशक नियंत्रित विधि – व्यवस्था की कसौटी पर खरा क्यों नहीं उतर पाते हैं?‌ इस संदर्भ में सियासी गलियारों से लेकर गांव के चौपालों तक की धारणा लगभग समान है. यह कि थाना से लेकर पुलिस मुख्यालय तक दीर्घकाल से जड़ जमा रखी अंदरुनी गुटबंदी और राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference) इसका सबसे बड़ा कारण है. एक तरह से यह पुलिस महकमे की नियति बन गयी है. इससे निजात पाना नामुमकिन (Impossible) नहीं तो कठिन जरूर है.

यह है बड़ी चिंता की बात

पुलिस के ही कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों का मानना है कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को प्रभावित करने वाली यह गुटबंदी टूट गयी तब विधि-व्यवस्था (Law and Order) बहुत हद तक नियंत्रित हो जा सकती है. पर, अमन पसंद वर्ग की चिंता यह है कि आर एस भट्टी के कार्यकाल में जब यह अदृश्य गुटबंदी नहीं टूट पायी तब आगे क्या होगा कोई नहीं बता सकता. हालांकि, महकमे में ऐसी किसी गुटबंदी की कोई आधिकारिक बात नहीं होती है.

असर विधि – व्यवस्था पर

बात अब राजनीतिक हस्तक्षेप की. विश्लेषकों की समझ में यह बहुत कुछ सत्ताशीर्ष की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है. सुशासन (Good Governance) के प्रथम सोपान में सरकार संयमित थी. जाति नहीं जमात की नीति पर चल रही थी. परिणाम सुकूनदायक रहा. बाद के दिनों में विकृतियां समा गयीं. पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण -पदस्थापन में पूर्व की तरह ‘सामाजिक संतुलन’ बनाया जाने लगा. धनदोहन के आरोप भी उछलने लगे. इससे सक्षमता और कर्मठता कुंठित हुई. असर विधि-व्यवस्था पर पड़ा.

प्रशासनिक परम्परा

सोबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विधि-व्यवस्था के लिए जिम्मेवार पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण – पदस्थापन में ऐसी प्रशासनिक परंपरा का निर्वहन हो रहा है जिसमें पुलिस महानिदेशक की काबिलियत का कुंद पड़ जाना स्वाभाविक है. कांग्रेस के शासनकाल से ही हो यह रहा है कि पुलिस महानिदेशक के रूप में सक्षम-समर्थ पदस्थापन (Posting) तो कर दिया जाता है, पर उसके अनुकूल पुलिस-तंत्र विकसित करने की छूट नहीं दी जाती है.


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यही है सामान्य समझ

आमतौर पर सत्ताशीर्ष या उनके सलाहकार- रणनीतिकार ही पुलिस-तंत्र खड़ा करते हैं जिनके अपने सामाजिक एवं राजनीतिक स्वार्थ होते हैं. फिर सारा कुछ सत्ताशीर्ष के भरोसेमंद अधिकारियों का गुट विशेष करता है. परिणामस्वरूप पुलिस महानिदेशक (Director General of Police) की काबिलियत पुलिस मुख्यालय में सिमट कर रह जाती है. सत्ता शीर्ष और उनके सलाहकार- रणनीतिकार इससे इनकार कर सकते हैं, पर अनियंत्रित (Uncontrolled) विधि – व्यवस्था को लेकर सामान्य समझ यही है.

ऐसी बात भी नहीं

ऐसा ‘सुशासन’ में ही हो रहा है ऐसी बात भी नहीं. बड़े – बुजुर्गों की मानें , तो शुरुआत इसकी कांग्रेस के शासनकाल में हुई थी. लालू – राबड़ी शासन काल में मजबूती मिली. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार पारदर्शिता प्रदर्शित करने की कोशिशों के बीच उसका अनुसरण कर रही है.

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