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लौंगी मांझी पगला गया है!

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अश्विनी आलोक

02 सितम्बर 2024

Gaya : गयाजी से करीब सौ किलोमीटर दूर है बांके बाजार. बंगेठा पहाड़ (Bangetha Pahaad) से घिरा हुआ यह इलाका भले बाजार कहा जाता है, परंतु बाजार होने में इसकी रुचि बेमतलब की है, बेकार का मन. असल में यह नक्सलियों (Naksaliyon) का इलाका है. इसकी यही पहचान पुलिस ने गढ़ी है. बांके बाजार (Banke Bazaar) की पहचान पर बात करने का मन तो बहुत था, पर यह भी न हुआ. पता नहीं, मेरा मन आसमान में चढ़ क्यों जाता है, जबकि पताने लगता है. मनुआ तो पंछी भया. पता नहीं और कहां-कहां उड़ेगा! मुझे जाना था मोहनलाल महतो ‘वियोगी’ के घर और पहुंच गया लौंगी मांझी (Laungee Maanjhee) का पागलपन समझने.

जनमजुग्गी जवानी

बंगेठा पहाड़ (Bangetha Pahaad) से पानी जो गिरता है तो हहाता नहीं है, छितराकर छहल जाता है. पानी की आवारगी कभी बूढ़ी नहीं होती, यह जनमजुग्गी जवानी है. आजन्म कुंवारी रहनेवाले जलप्रपातों को पहाड़ों ने कभी बांधने की कोशिश नहीं की, विचर जाने दिया. लेकिन, यह पानी आपरूपी बिला जाता था. पास ही है लुटुआ पंचायत. वहां तक भी पानी का पानीपन नहीं जमा. बरसा का क्या, हुई न हुई. मनमौजी है,मन हुआ तो बरसी नहीं तो तरसते रहो ठोपेठोप पानी को. ऐसे में कोठिलबा गांव में रहनेवाले सवा सौ मुसहरों और पचास-साठ घर भोक्ताओं के लिए खेती के भरोसे रहना सहज नहीं था. खेती सूखती थी, तो किसानों के शरीरों का रंग भी कैसा दो होने लगता था. आहर-पाइन के लिए सरकार ने पानी की तरह पैसे बहाये, पर नीयत की घुन खुरपियों-कुदालों को खखोरती रही.

नहीं माना लौंगी मांझी ने

तब पैंतीस-चालीस का रहा होगा लौंगी मांझी,जब वह पगलाया था. उसने हमउम्र मजदूरों को समझाया था कि गांव की जमीन को ही ताम-कोर कर बोये-सींचे, दिल्ली-पंजाब की मजदूरी (Delhi-Panjaab kee Majadooree) के चक्कर में गांव की जमीन बिलट जाती है. लेकिन कोठिलबा गांव में सिर्फ लौंगी मांझी ही पगलाया था, और लोग ठीक थे. उसके पागलपन पर हर कोई फब्तियां कसता रहा. पर लौंगी मांझी ने नहीं माना. उसने तीस सालों में अकेले बंगेठा पहाड़ का सीना चीर कर रख दिया, बना डाला तीन किलोमीटर लंबा आहर. अब बंगेठा की जल कुमारिकाएं छटपटाकर लौंगी मांझी की नहर में रुक रही हैं.


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कब उतरेगा यह पागलपन?

लौंगी को आज भी लोग पागल कहते हैं, लेकिन समूचा गांव उसी की खोदी हुई नहर में नहाता-धोता है. लौंगी उसी में मछलियां पालना चाहता है. लौंगी के आहर से कोठिलबा गांव के खेतों की हरियाली भी हलसती है. लेकिन, लौंगी मांझी के चार बेटों में से कोई यह नहीं कहता कि उनका बाप पागल नहीं है. लौंगी मांझी का पागलपन कब उतरेगा ?

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