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अतीत की बात: हरिहरक्षेत्र मेला में हुआ था बिहार प्रांतीय किसान सभा का गठन

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अवध किशोर शर्मा
29 अक्तूबर 2024

Sonpur : हरिहरक्षेत्र मेला में 95 वर्ष पूर्व 17 नवम्बर 1929 को बिहार प्रांतीय किसान सम्मेलन (Provincial Farmers Conference) हुआ था. अध्यक्षता प्राप्त दंडी संन्यासी व किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती (Swami Sahajanand Saraswati) ने की थी. उसी सम्मेलन में प्रांतीय किसान सभा का गठन हुआ था जिसके प्रथम प्रांतीय अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती ही बने थे. वही किसान सभा वर्तमान में अखिल भारतीय स्वरूप लिये हुए है. देश के शीर्ष दो वामपंथी दलों का अनुषांगिक संगठन बना हुआ है. दावा है कि इसके देश भर में 01 करोड़ 70 लाख से ज्यादा सदस्य हैं.

जमींदार भी थे संगठन में
स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में किसान सभा ने बिहार के किसानों के हित में निरंतर संघर्ष किया और अपना वाजिब हक प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त की. हालांकि, तब यह किसान सभा किसी दल विशेष का हितैषी संगठन नहीं था. उसमें सामान्य किसान (Farmer) भी थे तो राष्ट्रवादी जमींदार भी. विभिन्न दलीय विचारधाराओं वाले कार्यकर्ता और नेता भी थे. प्रथम बिहार प्रांतीय सम्मेलन में राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे डा. श्रीकृष्ण सिंह सर्वसम्मति से महामंत्री निर्वाचित हुए थे. भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे डा. राजेन्द्र प्रसाद, बिहार विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष रहे राम दयालु सिंह, मंत्री रहे अनुग्रह नारायण सिंह आदि कई कांग्रेसी नेता्रा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य चुने गये.

रामवृक्ष बेनीपुरी भी थे वक्ता
सम्मेलन की पहली सफलता यह थी कि मेला में प्रांतीय किसान सभा का गठन हुआ जिसमें तत्कालीन सरकार के किसान विरोधी निर्णयों की आलोचना की गयी. ‘मेरा जीवन संघर्ष’ नामक अपनी पुस्तक में स्वामी सहजानंद सरस्वती (Sahajanand Saraswati) ने लिखा है कि मेले में खासा लम्बा चौड़ा शामियाना खड़ा था. लोगों का जमावड़ा भी अच्छा था. एक तो सभा, दूसरे मेला. फिर जमावड़े में कमी क्यों हो? इस किसान सम्मेलन के वक्ता रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri) भी थे. सम्मेलन में बिहार व्यवस्थापिका सभा द्वारा काश्तकारी बिल के नाम पर किये जाने वाले खतरनाक संशोधनों पर जमकर बहस हुई .बिल को किसानों के हितों पर कुठाराघात बताया गया. स्वामी सहजानंद सरस्वती ने काश्तकारी बिल की पोल खोल कर रख दी. परिणामस्वरूप काश्तकारी बिल (Kashtakaree Bil) को वापस ले लिया गया.

नाम बदल गया संगठन का
सम्मेलन में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने खुद जमींदारी प्रथा समाप्त कर देने का प्रस्ताव स्वीकृत कराया.जमींदारी सदा के लिए खत्म हो गयी. मात्र 5 वर्षों के अंदर ही प्रांतीय किसान सभा देश के किसानों के दिलों की धड़कन बन गयी. 11 अप्रैल 1936 को लखनऊ में भारतीय किसान कांग्रेस की स्थापना हुई जिसकी अध्यक्षता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने की. बाद में इसका नाम बदलकर अखिल भारतीय किसान सभा (All India Kisan Sabha) कर दिया गया. सम्मेलन में कांग्रेस अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वयं उपस्थित होकर किसान संगठन (Farmers Organization) का स्वागत और अभिनंदन किया.


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संस्थापक सदस्य
आंध्र के किसान नेता आचार्य एनपी रंगा संगठन के महासचिव चुने गये. स्वामी सहजानंद सरस्वती के अलावा आचार्य एनपी रंगा, गुजरात के किसान नेता इन्दु लाल याज्ञिक, बाबा सोहन सिंह भखना, बंकिम मुखर्जी, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, यमुना कार्यी, यदुनंदन शर्मा, कार्यानंद शर्मा, मोहनलाल गौतम, एमएस नम्बुदरीपाद, जेडए अहमद अखिल भारतीय किसान सभा के संस्थापकों में थे.

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